1. {#1एसाव के साथ फिर मेल } [PS]याकूब ने भी वह जगह छोड़ी। जब वह यात्रा कर रहा था उसने परमेश्वर के स्वर्गदूत को देखा।
2. जब याकूब ने उन्हें देखा तो कहा, “यह परमेश्वर का पड़ाव है।” इसलिए याकूब ने उस जगह का नाम महनैम रखा। [PE]
3. [PS]याकूब का भाई एसाव सेईर नामक प्रदेश में रहता था। यह एदोम का पहाड़ी प्रदेश था। याकूब ने एसाव के पास दूत भेजा।
4. याकूब ने दूत से कहा, “मेरे स्वामी एसाव को यह खबर दी: ‘तुम्हारा सेवक याकूब कहता है, मैं इन सारे वर्षों लाबान के साथ रहा हूँ।
5. मेरे पास मवेशी, गधे, रेवड़े और बहुत से नौकर हैं। मैं इन्हें तुम्हारे पास भेजता हूँ और चाहता हूँ कि तुम हमें स्वीकार करो।’ ” [PE]
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7. [PS]दूत याकूब के पास लौटा और बोला, “हम तुम्हारे भाई एसाव के पास गए। वह तुमसे मिलने आ रहा है। उसके साथ चार सौ सशस्त्र वीर हैं।” [PE][PS]उस सन्देश ने याकूब को डरा दिया। उसने अपने सभी साथीयों को दो दलों में बाँट दिया। उसने अपनी सभी रेवड़ों, मवेशियों के झुण्ड और ऊँटों को दो भागों में बाँटा।
8. याकूब ने सोचा, “यदि एसाव आकर एक भाग को नष्ट करता है तो दूसरा भाग सकता है और बच सकता है।” [PE]
9. [PS]याकूब ने कहा, “हे मेरे पूर्वज इब्राहीम के परमेश्वर। हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर। तूने मुझे अपने देश में लौटने और अपने परिवार में आने के लिए कहा। तूने कहा कि तू मेरी भलाई करेगा।
10. तू मुझ पर बहुत दयालु रहा है। तूने मेरे लिए बहुत अच्छी चीजें की हैं। पहली बार मैंने यरदन नदी के पास यात्रा की, मेरे पास टहलने की छड़ी[* छड़ी या गड़रिये की लाठी। ] के अतिरिक्त कुछ भी न था। किन्तु मेरे पास अब इतनी चीजें हैं कि मैं उनको पूरे दो दलों में बाँट सकूँ।
11. तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मुझे मेरे भाई एसाव से बचा। मैं उससे डरा हुआ हूँ। इसलिए कि वह आएगा और हम सभी को, यहाँ तक कि बच्चों सहित माताओं को भी जान से मार डालेगा।
12. हे यहोवा, तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारी भलाई करूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को बढ़ाऊँगा और तुम्हारे वंशजों को समुद्र के बालू के कणों के समान बढ़ा दूँगा। वे इतने अधिक होंगे कि गिने नहीं जा सकेंगे।’ ” [PE]
13. [PS]याकूब रात को उस जगह ठहरा। याकूब ने कुछ चीजें एसाव को भेंट देने के लिए तैयार की।
14. याकूब ने दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें तथा बीस नर भेड़े लिए।
15. याकूब ने तीस ऊँट और उनके बच्चें, चालीस गायें और दस बैल, बीस गदहियाँ और दस गदहे लिए।
16. याकूब ने जानवरों का हर एक झुण्ड नौकरों को दिया। तब याकूब ने नौकरों से कहा, “सब जानवरों के हर झुण्ड को अलग कर लो। मेरे आगे—आगे चलो और हर झुण्ड के बीच कुछ दूरी रखो।”
17. याकूब ने उन्हें आदेश दिया। जानवरों के पहले झुण्ड वाले नौकर से याकूब ने कहा, “मेरा भाई एसाव जब तुम्हारे पास आए और तुमसे पूछे, ‘यह किसके जानवर हैं? तुम कहाँ जा रहे हो? तुम किसके नौकर हो?’
18. तब तुम उत्तर देना, ‘ये जानवर आपके सेवक याकूब के हैं। याकूब ने इन्हें अपने स्वामी एसाव को भेंट के रूप में भेजे हैं, और याकूब भी हम लोगों के पीछे आ रहा है।’ ” [PE]
19. [PS]याकूब ने दूसरे नौकर, तीसरे नौकर, और सभी अन्य नौकरों को यही बात करने का आदेश दिया। उसने कहा, “जब तुम लोग एसाव से मिलो तो यही एक बात कहोगे।
20. तुम लोग कहोगे, ‘यह आपकी भेंट है, और आपका सेवक याकूब भी लोगों के पीछे आ रहा है।’ ” [PE][PS]याकूब ने सोचा, “यदि मैं भेंट के साथ इन पुरुषों को आगे भेजता हूँ तो यह हो सकता है कि एसाव मुझे क्षमा कर दे और मुझको स्वीकार कर ले।”
21. इसलिए याकूब ने एसाव को भेंट भेजी। किन्तु याकूब उस रात अपने पड़ाव में ही ठहरा। [PE]
22. [PS]बाद में उसी रात याकूब उठा और उस जगह को छोड़ दिया। याकूब ने अपनी दोनों पत्नियों, अपनी दोनों दासियों और अपने ग्यारह पुत्रों को साथ लिया। घाट पर जाकर याकूब ने यब्बोक नदी को पार किया।
23. याकूब ने अपने परिवार को नदी के उस पार भेजा। तब याकूब ने अपनी सभी चीजें नदी के उस पार भेज दीं। [PE]
24. {#1परमेश्वर से मल्ल युद्ध } [PS]याकूब नदी को पार करने वाला अन्तिम व्यक्ति था। किन्तु पार करने से पहले जब तक वह अकेला ही था, एक व्यक्ति आया और उससे मल्ल युद्ध करने लगा। उस व्यक्ति ने उससे तब तक मल्ल युद्ध किया जब तक सूरज न निकला।
25. व्यक्ति ने देखा कि वह याकूब को हरा नहीं सकता। इसलिए उसने याकूब के पैर को उसके कूल्हे के जोड़ पर छुआ। उस समय याकूब के कूल्हे का जोड़ अपने स्थान से हट गया। [PE]
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27. [PS]तब उस व्यक्ति ने याकूब से कहा, “मुझे छोड़ दो। सूरज ऊपर चढ़ रहा है।” [PE][PS]किन्तु याकूब ने कहा, “मैं तुमको नहीं छोड़ूँगा। मुझको तुम्हें आशीर्वाद देना होगा।” [PE]
28. [PS]और उस व्यक्ति ने उससे कहा, “तुम्हारा क्या नाम है?” [PE][PS]और याकूब ने कहा, “मेरा नाम याकूब है।” [PE]
29. [PS]तब व्यक्ति ने कहा, “तुम्हारा नाम याकूब नहीं रहेगा। अब तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। मैं तुम्हें यह नाम इसलिए देता हूँ कि तुमने परमेश्वर के साथ और मनुष्यों के साथ युद्ध किया है और तुम हराए नहीं जा सके हो।” [PE]
30. [PS]तब याकूब ने उससे पूछा, “कृपया मुझे अपना नाम बताएं।” [PE][PS]किन्तु उस व्यक्ति ने कहा, “तुम मेरा नाम क्यों पूछते हो?” उस समय उस व्यक्ति ने याकूब को आशीर्वाद दिया। [PE][PS]इसलिए याकूब ने उस जगह का नाम पनीएल रखा। याकूब ने कहा, “इस जगह मैंने परमेश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन किया है। किन्तु मेरे जीवन की रक्षा हो गई।”
31. जैसे ही वह पनीएल से गुजरा, सूरज निकल आया। याकूब अपने पैरों के कारण लंगड़ाकर चल रहा था।
32. इसलिए आज भी इस्राएल के लोग पुट्ठे की माँसपेशी को नहीं खाते क्योंकि इसी माँसपेशी पर याकूब को चोट लगी थी। [PE]