2. लोग वह सारा अन्न खा गए जो वे मिस्र से लाये थे। जब अन्न समाप्त हो गया, याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, “फिर मिस्र जाओ। हम लोगों के खाने के लिए कुछ और अन्न खरीदो।”
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3. किन्तु यहूदा ने याकूब से कहा, “उस देश के प्रसाशक ने हम लोगों को चेतावनी दी है। उसने कहा है, “यदि तुम लोग अपने भाई को मेरे पास वापस नहीं लाओगे तो मैं तुम लोगों से बात करने से मना भी कर दूँगा।”
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5. किन्तु यदि तुम बिन्यामीन को भेजने से मना करोगे तब हम लोग नहीं जाएँगे। उस व्यक्ति ने चेतावनी दी कि हम लोग उसके बिना वापस न आए।”
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6. इस्राएल (याकूब) ने कहा, “तुम लोगों ने उस व्यक्ति से क्यों कहा, कि तुम्हारा अन्य भाई भी है।” तुम लोगों ने मेरे साथ ऐसी बुरी बात क्यों की?”
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7. भाईयों ने उत्तर दिया, “उस व्यक्ति ने सावधानी से हम लोगों से प्रश्न पूछे। वह हम लोगों तथा हम लोगों के परिवार के बारे में जानना चाहता था। उसने हम लोगों से पूछा, “क्या तुम लोगों का पिता अभी जीवित है? क्या तुम लोगों का अन्य भाई घर पर है? हम लोगों ने केाल उसके प्रश्नों के उत्तर दिए। हम लोग नहीं जानते थे के वह हमारे दूसरे भाई को अपने पास लाने को कहेगा।”
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8. तब यहूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, “बिन्यामीन को मेरे साथ भेजो। मैं उसकी देखभाल करूँगा हम लोग मिस्र अवश्य जाएँगे और भोजन लाएँगे। यदि हम लोग नहीं जाते हैं तो हम लोगों के बच्चे भी मर जाएँगे।
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9. मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगा। मैं इसका उत्तरदायी रहूँगा। यदि मैं उसे तुम्हारे लौटाकर न लाऊँ तो तुम सदा के लिए मुझे दोषी ठहरा सकते हो।
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11. तब उनके पिता इस्राएल ने कहा, “यदि यह सचमुच सही है तो बिन्यामीन को अपने साथ ले जाओ। किन्तु प्रशासक के लिए कुछ भेंट ले जाओ। उन चीजों में से कुछ ले जाओ जो हम लोग अपने देश में इकट्ठा कर सके हैं। उसके लिए कुछ शहद, पिस्ते, बादाम, गोंद और लोबान ले जाओ।
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12. इस समय, पहले से दुगुना धन भी ले लो जो पिछली बार देने के बाद लौटा दिया गया था। संभव है कि प्रशासक से गलती हुई हो।
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14. मैं प्रार्थना करता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम लोगों की उस समय सहायता करेगा जब तुम प्रशासक के सामने खड़े होओगे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह बिन्यामीन और शिमोन को भी सुरक्षित आने देगा। यदि नहीं तो मैं अपने पुत्र से हाथ धोकर फिर दुःखी होऊँगा।”
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15. इसलिए भाईयों ने प्रशासक को देने के लिए भेंटे ली और उन्होंने जितना धन पहले लिया था उसका दुगना धन अपने साथ लिया। बिन्यामीन भाईयों के साथ मिस्र गया।
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16. मिस्र में यूसुफ ने उनके साथ बिन्यामीन को देखा। यूसुफ ने अपने सेवक से कहा, “उन व्यक्तियों को मेरे घर लाओ। एक जानवर मारो और पकाओ। वे व्यक्ति आज दोपहर को मेरे साथ भोजन करेंगे।”
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18. भाई डरे हुए थे जब वे यूसुफ के घर लाए गए। उन्होंने कहा, “हम लोग यहाँ उस धन के लिए लाए गए हैं जो पिछली बार हम लोगों की बोरियों में रख दिया गया था। वे हम लोगों को अपराधी सिद्ध करने लिए उनका उपयोग करेंगे। तब वे हम लोगों के गधों को चुरा लेंगे और हम लोगों को दास बनाएँगे।”
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20. उन्होंने कहा, “महोदय, मैं प्रतिज्ञापूर्वक सब कहता हूँ कि पिछली बार हम आए थे। हम लोग भोजन खरीदने आए थे।
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23. किन्तु सेवक ने उत्तर दिया, “डरो नहीं, मुझ पर विश्वास करो। तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने तुम लोगों के धन को तुम्हारी बोरियों में भेंट के रूप में रखा होगा। मुझे याद है कि तुम लोगों ने पिछली बार अन्न का मूल्य मुझे दे दिया था।” सेवक शिमोन को कारागार से बाहर लाया।
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24. सेवक उन लोगों को यूसुफ के घर ले गया। उसने उन्हें पानी दिया और उन्होंने अपने पैर धोए। तब तक उसने उनके गधों को खाने के लिए चारा दिया।
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25. भाईयों ने सुना कि वे यूसुफ के साथ भोजन करेंगे। इसलिए उसके लिए अपनी भेंट तैयार करने में वे दोपहर तक लगे रहे।
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26. यूसुफ घर आया और भाईयों ने उसे भेंट दीं जो वे अपने साथ लाए थे। तब उन्होंने धरती पर झुककर प्रणाम किया।
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27. यूसुफ ने उनकी कुशल पूछी। यूसुफ ने कहा, “तुम लोगों का वृद्ध पिता जिसके बारे में तुम लोगों ने बताया, ठीक तो है? क्या वह अब तक जीवित है?”
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28. भाईयों ने उत्तर दिया, “महोदय, हम लोगों के पिता ठीक हैं। वे अब तक जीवित है” और वे फिर यूसुफ के सामने झुके।
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29. 9तब यूसुफ ने अपने भाई बिन्यामीन को देखा। (बिन्यामीन और यूसुफ की एक ही माँ थी) यूसुफ ने कहा, “क्या यह तुम लोगों का सबसे छोटा भाई है जिसके बारे में तुम ने बताया था?” तब यूसुफ ने बिन्यामीन से कहा, “परमेश्वर तुम पर कृपालु हो।”
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30. तब यूसुफ कमरे से बाहर दौड़ गया। यूसुफ बहुत चाहता थी कि वह अपने भाईयों को दिखाए कि वह उनसे बहुत प्रेम करता है। वह रोने-रोने सा हो रहा था, किन्तु वह नहीं चाहता था कि उसके भाई उसे रोता देखें। इसलिए वह अपने कमरे में दौड़ता हुआ पहुँचा और वहीं रोया।
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32. यूसुफ ने अकेले एक मेज पर भोजन किया। उसके भाईयों ने दूसरी मेज पर एक साथ भोजन किया। मिस्री लोगों ने अन्य मेज पर एक साथ खाया। उनका विश्वास था कि उनके लिए यह अनुचित है कि वे हिब्रू लोगों के साथ खाएँ।
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33. यूसुफ के भाई उसके सामने की मेज पर बैठे थे। सभी भाई सबसे बड़े भाई से आरम्भ कर सबसे छोटे भाई तक क्रम में बैठे थे। सभी भाई एक दूसरे को, जी हो रहा था उस पर आश्चर्य करते हुए देखते जा रहे थे।
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34. सेवक यूसुफ की मेज से उनको भोजन ले जाते थे। किन्तु औरों की तुलना में सेवकों ने बिन्यामीन को पाँच गुना अधिक दिया। यूसुफ के साथ वे सभी भाई तब तक खाते और दाखमधु पीते रहे जब तक वे नशे में चूर नहीं हो गया।
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