1. {सोपर का अय्यूब से कथन} [PS] इस पर नामात नामक प्रदेश के सोपर ने अय्यूब को उत्तर देते हुये कहा,
2. “इस शब्दों के प्रवाह का उत्तर देना चाहिये। [QBR2] क्या यह सब कहना अय्यूब को निर्दोंष ठहराता है नहीं! [QBR]
3. अय्यूब, क्या तुम सोचते हो कि [QBR2] हमारे पास तुम्हारे लिये उत्तर नहीं है [QBR] क्या तुम सोचते हो कि जब तुम परमेश्वर पर [QBR2] हंसते हो तो कोई तुम्हें चेतावनी नहीं देगा। [QBR]
4. अय्यूब, तुम परमेश्वर से कहते रहे कि, [QBR2] ‘मेरा विश्वास सत्य है [QBR2] और तू देख सकता है कि मैं निष्कलंक हूँ!’ [QBR]
5. अय्यूब, मेरी ये इच्छा है कि परमेश्वर तुझे उत्तर दे, [QBR2] यह बताते हुए कि तू दोषपूर्ण है! [QBR]
6. काश! परमेश्वर तुझे बुद्धि के छिपे रहस्य बताता [QBR2] और वह सचमुच तुझे उनको बतायेगा! हर कहानी के दो पक्ष होते हैं, [QBR] अय्यूब, मेरी सुन परमेश्वर तुझे कम दण्डित कर रहा है, [QBR2] अपेक्षाकृत जितना उसे सचमुच तुझे दण्डित करना चाहिये।
7. “अय्यूब, क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य समझ सकते हो [QBR2] क्या तुम उसके विवेक की सीमा मर्यादा समझ सकते हो [QBR]
8. उसकी सीमायें आकाश से ऊँची है, [QBR2] इसलिये तुम नहीं समझ सकते हो! [QBR] सीमायें नर्क की गहराईयों से गहरी है, [QBR2] सो तू उनको समझ नहीं सकता है! [QBR]
9. वे सीमायें धरती से व्यापक हैं, [QBR2] और सागर से विस्तृत हैं।
10. “यदि परमेश्वर तुझे बंदी बनाये और तुझको न्यायालय में ले जाये, [QBR2] तो कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता है। [QBR]
11. परमेश्वर सचमुच जानता है कि कौन पाखण्डी है। [QBR2] परमेश्वर जब बुराई को देखता है, तो उसे याद रखता है। [QBR]
12. किन्तु कोई मूढ़ जन कभी बुद्धिमान नहीं होगा, [QBR2] जैसे बनैला गधा कभी मनुष्य को जन्म नहीं दे सकता है। [QBR]
13. सो अय्यूब, तुझको अपना मन तैयार करना चाहिये, परमेश्वर की सेवा करने के लिये। [QBR2] तुझे अपने निज हाथों को प्रार्थना करने को ऊपर उठाना चाहिये। [QBR]
14. वह पाप जो तेरे हाथों में बसा है, उसको तू दूर कर। [QBR2] अपने तम्बू में बुराई को मत रहने दे। [QBR]
15. तभी तू निश्चय ही बिना किसी लज्जा के आँख ऊपर उठा कर परमेश्वर को देख सकता है। [QBR2] तू दृढ़ता से खड़ा रहेगा और नहीं डरेगा। [QBR]
16. अय्यूब, तब तू अपनी विपदा को भूल पायेगा। [QBR2] तू अपने दुखड़ो को बस उस पानी सा याद करेगा जो तेरे पास से बह कर चला गया। [QBR]
17. तेरा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक उज्जवल होगा। [QBR2] जीवन की अँधेरी घड़ियाँ ऐसे चमकेगी जैसे सुबह का सूरज। [QBR]
18. अय्यूब, तू सुरक्षित अनुभव करेगा क्योंकि वहाँ आशा होगी। [QBR2] परमेश्वर तेरी रखवाली करेगा और तुझे आराम देगा। [QBR]
19. चैन से तू सोयेगा, कोई तुझे नहीं डरायेगा [QBR2] और बहुत से लोग तुझ से सहायता माँगेंगे! [QBR]
20. किन्तु जब बुरे लोग आसरा ढूढेंगे तब उनको नहीं मिलेगा। [QBR2] उनके पास कोई आस नहीं होगी। [QBR] वे अपनी विपत्तियों से बच कर निकल नहीं पायेंगे। [QBR2] मृत्यु ही उनकी आशा मात्र होगी।” [PE]