1. अय्यूब ने कहा: “मेरी आँखों ने यह सब पहले देखा है [QBR2] और पहले ही मैं सुन चुका हूँ जो कुछ तुम कहा करते हो। [QBR2] इस सब की समझ बूझ मुझे है। [QBR]
2. मैं भी उतना ही जानता हूँ जितना तू जानता है, [QBR2] मैं तुझ से कम नहीं हूँ। [QBR]
3. किन्तु मुझे इच्छा नहीं है कि मैं तुझ से तर्क करूँ, [QBR2] मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से बोलना चाहता हूँ। [QBR2] अपने संकट के बारे में, मैं परमेश्वर से तर्क करना चाहता हूँ। [QBR]
4. किन्तु तुम तीनो लोग अपने अज्ञान को मिथ्या विचारों से ढकना चाहते हो। [QBR2] तुम वो बेकार के चिकित्सक हो जो किसी को अच्छा नहीं कर सकता। [QBR]
5. मेरी यह कामना है कि तुम पूरी तरह चुप हो जाओ, [QBR2] यह तुम्हारे लिये बुद्धिमत्ता की बात होगी जिसको तुम कर सकते हो!
6. “अब, मेरी युक्ति सुनो! [QBR2] सुनो जब मैं अपनी सफाई दूँ। [QBR]
7. क्या तुम परमेश्वर के हेतु झूठ बोलोगे [QBR2] क्या यह तुमको सचमुच विश्वास है कि ये तुम्हारे झूठ परमेश्वर तुमसे बुलवाना चाहता है [QBR]
8. क्या तुम मेरे विरुद्ध परमेश्वर का पक्ष लोगे [QBR2] check क्या तुम न्यायालय में परमेश्वर को बचाने जा रहे हो [QBR]
9. यदि परमेश्वर ने तुमको अति निकटता से जाँच लिया तो [QBR2] क्या वह कुछ भी अच्छी बातपायेगा [QBR] क्या तुम सोचते हो कि तुम परमेश्वर को छल पाओगे, [QBR2] ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को छलते हो [QBR]
10. यदि तुम न्यायालय में छिपे छिपे किसी का पक्ष लोगे [QBR2] तो परमेश्वर निश्चय ही तुमको लताड़ेगा। [QBR]
11. भव्य तेज तुमको डरायेगा [QBR2] और तुम भयभीत हो जाओगे। [QBR]
12. तुम सोचते हो कि तुम चतुराई भरी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करते हो, किन्तु तुम्हारे कथन राख जैसे व्यर्थ हैं। [QBR2] तुम्हारी युक्तियाँ माटी सी दुर्बल हैं।
13. “चुप रहो और मुझको कह लेने दो। [QBR2] फिर जो भी होना है मेरे साथ हो जाने दो। [QBR]
14. मैं स्वयं को संकट में डाल रहा हूँ [QBR2] और मैं स्वयं अपना जीवन अपने हाथों में ले रहा हूँ। [QBR]
15. चाहे परमेश्वर मुझे मार दे। [QBR2] मुझे कुछ आशा नहीं है, तो भी मैं अपना मुकदमा उसके सामने लड़ूँगा। [QBR]
16. किन्तु सम्भव है कि परमेश्वर मुझे बचा ले, क्योंकि मैं उसके सामने निडर हूँ। [QBR2] कोई भी बुरा व्यक्ति परमेश्वर से आमने सामने मिलने का साहस नहीं कर सकता। [QBR]
17. उसे ध्यान से सुन जिसे मैं कहता हूँ, [QBR2] उस पर कान दे जिसकी व्याख्या मैं करता हूँ। [QBR]
18. अब मैं अपना बचाव करने को तैयार हूँ। [QBR2] यह मुझे पता है कि [QBR2] मुझको निर्दोष सिद्ध किया जायेगा। [QBR]
19. कोई भी व्यक्ति यह प्रमाणित नहीं कर सकता कि मैं गलत हूँ। [QBR2] यदि कोई व्यक्ति यह सिद्ध कर दे तो मैं चुप हो जाऊँगा और प्राण दे दूँगा।
20. “हे परमेश्वर, तू मुझे दो बाते दे दे, [QBR2] फिर मैं तुझ से नहीं छिपूँगा। [QBR]
21. मुझे दण्ड देना और डराना छोड़ दे, [QBR2] अपने आतंको से मुझे छोड़ दे। [QBR]
22. फिर तू मुझे पुकार और मैं तुझे उत्तर दूँगा, [QBR2] अथवा मुझको बोलने दे और तू मुझको उत्तर दे। [QBR]
23. कितने पाप मैंने किये हैं [QBR2] कौन सा अपराध मुझसे बन पड़ा [QBR2] मुझे मेरे पाप और अपराध दिखा। [QBR]
24. हे परमेश्वर, तू मुझसे क्यों बचता है [QBR2] और मेरे साथ शत्रु जैसा व्यवहार क्यों करता है [QBR]
25. क्या तू मुझको डरायेगा [QBR2] मैं (अय्यूब) एक पत्ता हूँ जिसके पवन उड़ाती है। [QBR2] एक सूखे तिनके पर तू प्रहार कर रहा है। [QBR]
26. हे परमेश्वर, तू मेरे विरोध में कड़वी बात बोलता है। [QBR2] तू मुझे ऐसे पापों के लिये दु:ख देता है जो मैंने लड़कपन में किये थे। [QBR]
27. मेरे पैरों में तूने काठ डाल दिया है, तू मेरे हर कदम पर आँख गड़ाये रखता है। [QBR2] मेरे कदमों की तूने सीमायें बाँध दी हैं। [QBR]
28. मैं सड़ी वस्तु सा क्षीण होता जाता हूँ [QBR2] कीड़ें से खाये हुये [QBR2] कपड़े के टुकड़े जैसा।” [PE]