पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
अय्यूब
1. “मेरा मन टूट चुका है। [QBR2] मेरा मन निराश है। [QBR] मेरा प्राण लगभग जा चुका है। [QBR2] कब्र मेरी बाट जोह रही है। [QBR]
2. लोग मुझे घेरते हैं और मुझ पर हँसते हैं। [QBR2] जब लोग मुझे सताते हैं और मेरा अपमान करते है, मैं उन्हें देखता हूँ।
3. “परमेश्वर, मेरे निरपराध होने का शपथ—पत्र मेरा स्वीकार कर। [QBR2] मेरी निर्दोषता की साक्षी देने के लिये कोई तैयार नहीं होगा। [QBR]
4. मेरे मित्रों का मन तूने मूँदा अत: [QBR2] वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं। [QBR2] कृपा कर उन को मत जीतने दे। [QBR]
5. लोगों की कहावत को तू जानता है। [QBR2] मनुष्य जो ईनाम पाने को मित्र के विषय में गलत सूचना देते हैं, [QBR2] उनके बच्चे अन्धे हो जाया करते हैं। [QBR]
6. परमेश्वर ने मेरा नाम हर किसी के लिये अपशब्द बनाया है [QBR2] और लोग मेरे मुँह पर थूका करते हैं। [QBR]
7. मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ। [QBR2] मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है। [QBR]
8. मेरी इस दुर्दशा से सज्जन बहुत व्याकुल हैं। [QBR2] निरपराधी लोग भी उन लोगों से परेशान हैं जिनको परमेश्वर की चिन्ता नहीं है। [QBR]
9. किन्तु सज्जन नेकी का जीवन जीते रहेंगे। [QBR2] निरपराधी लोग शक्तिशाली हो जायेंगे।
10. “किन्तु तुम सभी आओ और फिर मुझ को दिखाने का यत्न करो कि सब दोष मेरा है। [QBR2] तुममें से कोई भी विवेकी नहीं। [QBR]
11. मेरा जीवन यूँ ही बात रहा है। [QBR2] मेरी याजनाऐं टूट गई है और आशा चली गई है। [QBR]
12. किन्तु मेरे मित्र रात को दिन सोचा करते हैं। [QBR2] जब अन्धेरा होता है, वे लोग कहा करते हैं, ‘प्रकाश पास ही है।’
13. “यदि मैं आशा करूँ कि अन्धकारपूर्ण कब्र [QBR2] मेरा घर और बिस्तर होगा। [QBR]
14. यदि मैं कब्र से कहूँ ‘तू मेरा पिता है’ [QBR2] और कीड़े से ‘तू मेरी माता है अथवा तू मेरी बहन है।’ [QBR]
15. किन्तु यदि वह मेरी एकमात्र आशा है तब तो कोई आशा मुझे नहीं हैं [QBR2] और कोई भी व्यक्ति मेरे लिये कोई आशा नहीं देख सकता है। [QBR]
16. क्या मेरी आशा भी मेरे साथ मृत्यु के द्वार तक जायेगी [QBR2] क्या मैं और मेरी आशा एक साथ धूल में मिलेंगे” [PE]

Notes

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Total 42 अध्याय, Selected अध्याय 17 / 42
अय्यूब 17:12
1 “मेरा मन टूट चुका है। मेरा मन निराश है। मेरा प्राण लगभग जा चुका है। कब्र मेरी बाट जोह रही है। 2 लोग मुझे घेरते हैं और मुझ पर हँसते हैं। जब लोग मुझे सताते हैं और मेरा अपमान करते है, मैं उन्हें देखता हूँ। 3 “परमेश्वर, मेरे निरपराध होने का शपथ—पत्र मेरा स्वीकार कर। मेरी निर्दोषता की साक्षी देने के लिये कोई तैयार नहीं होगा। 4 मेरे मित्रों का मन तूने मूँदा अत: वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं। कृपा कर उन को मत जीतने दे। 5 लोगों की कहावत को तू जानता है। मनुष्य जो ईनाम पाने को मित्र के विषय में गलत सूचना देते हैं, उनके बच्चे अन्धे हो जाया करते हैं। 6 परमेश्वर ने मेरा नाम हर किसी के लिये अपशब्द बनाया है और लोग मेरे मुँह पर थूका करते हैं। 7 मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ। मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है। 8 मेरी इस दुर्दशा से सज्जन बहुत व्याकुल हैं। निरपराधी लोग भी उन लोगों से परेशान हैं जिनको परमेश्वर की चिन्ता नहीं है। 9 किन्तु सज्जन नेकी का जीवन जीते रहेंगे। निरपराधी लोग शक्तिशाली हो जायेंगे। 10 “किन्तु तुम सभी आओ और फिर मुझ को दिखाने का यत्न करो कि सब दोष मेरा है। तुममें से कोई भी विवेकी नहीं। 11 मेरा जीवन यूँ ही बात रहा है। मेरी याजनाऐं टूट गई है और आशा चली गई है। 12 किन्तु मेरे मित्र रात को दिन सोचा करते हैं। जब अन्धेरा होता है, वे लोग कहा करते हैं, ‘प्रकाश पास ही है।’ 13 “यदि मैं आशा करूँ कि अन्धकारपूर्ण कब्र मेरा घर और बिस्तर होगा। 14 यदि मैं कब्र से कहूँ ‘तू मेरा पिता है’ और कीड़े से ‘तू मेरी माता है अथवा तू मेरी बहन है।’ 15 किन्तु यदि वह मेरी एकमात्र आशा है तब तो कोई आशा मुझे नहीं हैं और कोई भी व्यक्ति मेरे लिये कोई आशा नहीं देख सकता है। 16 क्या मेरी आशा भी मेरे साथ मृत्यु के द्वार तक जायेगी क्या मैं और मेरी आशा एक साथ धूल में मिलेंगे”
Total 42 अध्याय, Selected अध्याय 17 / 42
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