8. बुरे लोग अपनी संतानों को अपने साथ बढ़ते हुए देखते हैं। बुरे लोग अपनी नाती-पोतों को देखने को जीवित रहा करते हैं।
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9. उनके घर सुरक्षित रहते हैं और वे नहीं डरते हैं। परमेश्वर दुष्टों को सजा देने के लिये अपना दण्ड काम में नहीं लाता है।
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10. उनके सांड कभी भी बिना जोड़ा बांधे नहीं रहे, उनकी गायों के बे छरे होते हैं और उनके गर्भ कभी नहीं गिरते हैं।
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13. बुरे लोग अपने जीवन भर सफलता का आनन्द लेते हैं। फिर बिना दु:ख भोगे वे मर जाते हैं और अपनी कब्रों के बीच चले जाते हैं।
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14. किन्तु बुरे लोग परमेश्वर से कहा करते है, “हमें अकेला छोड़ दे। और इसकी हमें परवाह नहीं कि तू हमसे कैसा जीवन जीना चाहता है।”
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15. दुष्ट लोग कहा करते हैं, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर कौन है हमको उसकी सेवा की जरूरत नहीं है। उसकी प्रार्थना करने का कोई लाभ नहीं।”
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16. दुष्ट जन सोचते है कि उनको अपने ही कारण सफलताऐं मिलती हैं, किन्तु मैं उनको विचारों को नहीं अपना सकता हूँ।
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17. किन्तु क्या प्राय: ऐसा होता है कि दुष्ट जन का प्रकाश बुझ जाया करता है कितनी बार दुष्टों को दु:ख घेरा करते हैं क्या परमेश्वर उनसे कुपित हुआ करता है, और उन्हें दण्ड देता है
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18. क्या परमेश्वर दुष्ट लोगों को ऐसे उड़ाता है जैसे हवा तिनके को उड़ाती है और तेज हवायें अन्न का भूसा उड़ा देती हैं
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19. किन्तु तू कहता है: “परमेश्वर एक बच्चे को उसके पिता के पापों का दण्ड देता है।” नहीं, परमेश्वर को चाहिये कि बुरे जन को दण्डित करें। तब वह बुरा व्यक्ति जानेगा कि उसे उसके निज पापों के लिये दण्ड मिल रहा है।
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21. जब बुरे व्यक्ति की आयु के महीने समाप्त हो जाते हैं और वह मर जाता है; वह उस परिवार की परवाह नहीं करता जिसे वह पीछे छोड़ जाता है।
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25. किन्तु कोई एक और व्यक्ति कठिन जीवन के बाद दु:ख भरे मन से मरता है, उसने जीवन का कभी कोई रस नहीं चखा।
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27. किन्तु मैं जानता हूँ कि तू क्या सोच रहा है, और मुझको पता है कि तेरे पास मेरा बुरा करने को कुचक्र है।
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28. मेरे लिये तू यह कहा करता है कि “अब कहाँ है उस महाव्यक्ति का घर कहाँ है वह घर जिसमें वह दुष्ट रहता था?”
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31. ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो उसके मुख पर ही उसके कर्मों की बुराई करे, उसके बुरे कर्मों का दण्ड कोई व्यक्ति उसे नहीं देता।
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