1. फिर एलीहू ने बात को जारी रखते हुये कहा:
2. “अरे ओ विवेकी पुरुषों तुम ध्यान से सुनो जो बातें मैं कहता हूँ। [QBR2] अरे ओ चतुर लोगों, मुझ पर ध्यान दो। [QBR]
3. कान उन सब को परखता है जिनको वह सुनता है, [QBR2] ऐसे ही जीभ जिस खाने को छूती है, उसका स्वाद पता करती है। [QBR]
4. सो आओ इस परिस्थिति को परखें और स्वयं निर्णय करें की उचित क्या है। [QBR2] हम साथ साथ सीखेंगे की क्या खरा है। [QBR]
5. अय्यूब ने कहा: ‘मैं निर्दोष हूँ, [QBR2] किन्तु परमेश्वर मेरे लिये निष्पक्ष नहीं है। [QBR]
6. मैं अच्छा हूँ लेकिन लोग सोचते हैं कि मैं बुरा हूँ। [QBR2] वे सोचते हैं कि मैं एक झूठा हूँ और चाहे मैं निर्दोंष भी होऊँ फिर भी मेरा घाव नहीं भर सकता।’
7. “अय्यूब के जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं है [QBR2] जिसका मुख परमेश्वर की निन्दा से भरा रहता है। [QBR]
8. अय्यूब बुरे लोगों का साथी है [QBR2] और अय्यूब को बुरे लोगों की संगत भाती है। [QBR]
9. क्योंकि अय्यूब कहता है [QBR2] ‘यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञा मानने का जतन करता है तो इससे उस व्यक्ति का कुछ भी भला न होगा।’
10. “अरे ओं लोगों जो समझ सकते हो, तो मेरी बात सुनो, [QBR2] परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करता है। [QBR2] सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करेगा। [QBR]
11. परमेश्वर व्यक्ति को उसके किये कर्मो का फल देगा। [QBR2] वह लोगों को जो मिलना चाहिये देगा। [QBR]
12. यह सत्य है परमेश्वर कभी बुरा नहीं करता है। [QBR2] सर्वशक्तिशाली परमेश्वर सदा निष्पक्ष रहेगा। [QBR]
13. परमेश्वर सर्वशक्तिशाली है, धरती का अधिकारी, उसे किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया। [QBR2] किसी भी व्यक्ति ने उसे इस समूचे जगत का उत्तरदायित्व नहीं दिया। [QBR]
14. यदि परमेश्वर निश्चय कर लेता कि [QBR2] लोगों से आत्मा और प्राण ले ले, [QBR]
15. तो धरती के सभी व्यक्ति मर जाते, [QBR2] फिर सभी लोग मिट्टी बन जाते।
16. “यदि तुम लोग विवेकी हो [QBR2] तो तुम उसे सुनोगे जिसे मैं कहता हूँ। [QBR]
17. कोई ऐसा व्यक्ति जो न्याय से घृणा रखता है शासक नहीं बन सकता। [QBR2] अय्यूब, तू क्या सोचता है, [QBR2] क्या तू उस उत्तम और सुदृढ़ परमेश्वर को दोषी ठहरा सकता है [QBR]
18. केवल परमेश्वर ऐसा है जो राजाओं से कहा करता है कि ‘तुम बेकार के हो।’ [QBR2] परमेश्वर मुखियों से कहा करता है कि ‘तुम दुष्ट हो।’ [QBR]
19. परमेश्वर प्रमुखों से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक प्रेम नहीं करता, [QBR2] और परमेश्वर धनिकों की अपेक्षा गरीबों से अधिक प्रेम नहीं करता है। [QBR2] क्योंकि सभी परमेश्वर ने रचा है। [QBR]
20. सम्भव है रात में कोई व्यक्ति मर जाये, परमेश्वर बहुत शीघ्र ही लोगों को रोगी करता है और वे प्राण त्याग देते हैं। [QBR2] परमेश्वर बिना किसी जतन के शक्तिशाली लोगों को उठा ले जाता है, [QBR2] और कोई भी व्यक्ति उन लोगों को मदद नहीं दे सकता है।
21. “व्यक्ति जो करता है परमेश्वर उसे देखता है। [QBR2] व्यक्ति जो भी चरण उठाता है परमेश्वर उसे जानता है। [QBR]
22. कोई जगह अंधेरे से भरी हुई नहीं है, और कोई जगह ऐसी नहीं है [QBR2] जहाँ इतना अंधेरा हो कि कोई भी दुष्ट व्यक्ति अपने को परमेश्वर से छिपा पाये। [QBR]
23. किसी व्यक्ति के लिये यह उचित नहीं है कि [QBR2] वह परमेश्वर से न्यायालय में मिलने का समय निश्चित करे। [QBR]
24. परमेश्वर को प्रश्नों के पूछने की आवश्यकता नहीं, [QBR2] किन्तु परमेश्वर बलशालियों को नष्ट करेगा [QBR] और उनके स्थान पर किसी [QBR2] और को बैठायेगा। [QBR]
25. सो परमेश्वर जानता है कि लोग क्या करते हैं। [QBR2] इसलिये परमेश्वर रात में दुष्टों को हरायेगा, और उन्हें नष्ट कर देगा। [QBR]
26. परमेश्वर बुरे लोगों को उनके बुरे कर्मो के कारण नष्ट कर देगा [QBR2] और बुरे व्यक्ति के दण्ड को वह सब को देखने देगा। [QBR]
27. क्योंकि बुरे व्यक्ति ने परमेश्वर की आज्ञा मानना छोड़ दिया [QBR2] और वे बुरे व्यक्ति परवाह नहीं करते हैं उन कामों को करने की जिनको परमेश्वर चाहता है। [QBR]
28. उन बुरे लोगों ने गरीबों को दु:ख दिया और उनको विवश किया परमेश्वर को सहायता हेतू पुकारने को। [QBR2] गरीब सहायता के लिये पुकारता है, तो परमेश्वर उसकी सुनता है। [QBR]
29. किन्तु यदि परमेश्वर ने गरीब की सहायता न करने का निर्णय लिया तो [QBR2] कोई व्यक्ति परमेश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकता है। [QBR] यदि परमेश्वर उनसे मुख मोड़ता है तो कोई भी उस को नहीं पा सकता है। [QBR2] परमेश्वर जातियों और समूची मानवता पर शासन करता है। [QBR]
30. तो फिर एक ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के विरुद्ध है और लोगों को छलता है, [QBR2] तो परमेश्वर उसे राजा बनने नहीं दे सकता है।
31. “सम्भव है कि कोई परमेश्वर से कहे कि [QBR2] मैं अपराधी हूँ और फिर मैं पाप नहीं करूँगा। [QBR]
32. हे परमेश्वर, तू मुझे वे बातें सिखा जो मैं नहीं जानता हूँ। [QBR2] यदि मैंने कुछ बुरा किया तो फिर, मैं उसको नहीं करूँगा। [QBR]
33. किन्तु अय्यूब, जब तू बदलने को मना करता है, [QBR2] तो क्या परमेश्वर तुझे वैसा प्रतिफल दे, [QBR] जैसा प्रतिफल तू चाहता है यह तेरा निर्णय है यह मेरा नहीं है। [QBR2] तू ही बता कि तू क्या सोचता है [QBR]
34. कोई भी व्यक्ति जिसमें विवेक है और जो समझता है वह मेरे साथ सहमत होगा। [QBR2] कोई भी विवेकी जन जो मेरी सुनता, वह कहेगा, [QBR]
35. अय्यूब, अबोध व्यक्ति के जैसी बातें करता है, [QBR2] जो बाते अय्यूब करता है उनमें कोई तथ्य नहीं। [QBR]
36. मेरी यह इच्छा है कि अय्यूब को परखने को और भी अधिक कष्ट दिये जाये। [QBR2] क्यों क्योंकि अय्यूब हमें ऐसा उत्तर देता है, जैसा कोई दुष्ट जन उत्तर देता हो। [QBR]
37. अय्यूब पाप पर पाप किए जाता है और उस पर उसने बगावत की। [QBR2] तुम्हारे ही सामने वह परमेश्वर को बहुत बहुत बोल कर कलंकित करता रहता है!” [PE]