2. “अरे ओ विवेकी पुरुषों तुम ध्यान से सुनो जो बातें मैं कहता हूँ। अरे ओ चतुर लोगों, मुझ पर ध्यान दो।
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4. सो आओ इस परिस्थिति को परखें और स्वयं निर्णय करें की उचित क्या है। हम साथ साथ सीखेंगे की क्या खरा है।
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6. मैं अच्छा हूँ लेकिन लोग सोचते हैं कि मैं बुरा हूँ। वे सोचते हैं कि मैं एक झूठा हूँ और चाहे मैं निर्दोंष भी होऊँ फिर भी मेरा घाव नहीं भर सकता।”
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9. क्योंकि अय्यूब कहता है “यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञा मानने का जतन करता है तो इससे उस व्यक्ति का कुछ भी भला न होगा।
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10. अरे ओं लोगों जो समझ सकते हो, तो मेरी बात सुनो, परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करता है। सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करेगा।
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13. परमेश्वर सर्वशक्तिशाली है, धरती का अधिकारी, उसे किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया। किसी भी व्यक्ति ने उसे इस समूचे जगत का उत्तरदायित्व नहीं दिया।
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17. कोई ऐसा व्यक्ति जो न्याय से घृणा रखता है शासक नहीं बन सकता। अय्यूब, तू क्या सोचता है, क्या तू उस उत्तम और सुदृढ़ परमेश्वर को दोषी ठहरा सकता है
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18. केवल परमेश्वर ऐसा है जो राजाओं से कहा करता है कि “तुम बेकार के हो।” परमेश्वर मुखियों से कहा करता है कि “तुम दुष्ट हो।”
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19. परमेश्वर प्रमुखों से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक प्रेम नहीं करता, और परमेश्वर धनिकों की अपेक्षा गरीबों से अधिक प्रेम नहीं करता है। क्योंकि सभी परमेश्वर ने रचा है।
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20. सम्भव है रात में कोई व्यक्ति मर जाये, परमेश्वर बहुत शीघ्र ही लोगों को रोगी करता है और वे प्राण त्याग देते हैं। परमेश्वर बिना किसी जतन के शक्तिशाली लोगों को उठा ले जाता है, और कोई भी व्यक्ति उन लोगों को मदद नहीं दे सकता है।
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22. कोई जगह अंधेरे से भरी हुई नहीं है, और कोई जगह ऐसी नहीं है जहाँ इतना अंधेरा हो कि कोई भी दुष्ट व्यक्ति अपने को परमेश्वर से छिपा पाये।
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24. परमेश्वर को प्रश्नों के पूछने की आवश्यकता नहीं, किन्तु परमेश्वर बलशालियों को नष्ट करेगा और उनके स्थान पर किसी और को बैठायेगा।
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25. सो परमेश्वर जानता है कि लोग क्या करते हैं। इसलिये परमेश्वर रात में दुष्टों को हरायेगा, और उन्हें नष्ट कर देगा।
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26. परमेश्वर बुरे लोगों को उनके बुरे कर्मो के कारण नष्ट कर देगा और बुरे व्यक्ति के दण्ड को वह सब को देखने देगा।
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27. क्योंकि बुरे व्यक्ति ने परमेश्वर की आज्ञा मानना छोड़ दिया और वे बुरे व्यक्ति परवाह नहीं करते हैं उन कामों को करने की जिनको परमेश्वर चाहता है।
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28. उन बुरे लोगों ने गरीबों को दु:ख दिया और उनको विवश किया परमेश्वर को सहायता हेतू पुकारने को। गरीब सहायता के लिये पुकारता है, तो परमेश्वर उसकी सुनता है।
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29. किन्तु यदि परमेश्वर ने गरीब की सहायता न करने का निर्णय लिया तो कोई व्यक्ति परमेश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकता है। यदि परमेश्वर उनसे मुख मोड़ता है तो कोई भी उस को नहीं पा सकता है। परमेश्वर जातियों और समूची मानवता पर शासन करता है।
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30. तो फिर एक ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के विरुद्ध है और लोगों को छलता है, तो परमेश्वर उसे राजा बनने नहीं दे सकता है।
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32. हे परमेश्वर, तू मुझे वे बातें सिखा जो मैं नहीं जानता हूँ। यदि मैंने कुछ बुरा किया तो फिर, मैं उसको नहीं करूँगा।
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33. किन्तु अय्यूब, जब तू बदलने को मना करता है, तो क्या परमेश्वर तुझे वैसा प्रतिफल दे, जैसा प्रतिफल तू चाहता है यह तेरा निर्णय है यह मेरा नहीं है। तू ही बता कि तू क्या सोचता है
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34. कोई भी व्यक्ति जिसमें विवेक है और जो समझता है वह मेरे साथ सहमत होगा। कोई भी विवेकी जन जो मेरी सुनता, वह कहेगा,
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36. मेरी यह इच्छा है कि अय्यूब को परखने को और भी अधिक कष्ट दिये जाये। क्यों क्योंकि अय्यूब हमें ऐसा उत्तर देता है, जैसा कोई दुष्ट जन उत्तर देता हो।
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37. अय्यूब पाप पर पाप किए जाता है और उस पर उसने बगावत की। तुम्हारे ही सामने वह परमेश्वर को बहुत बहुत बोल कर कलंकित करता रहता है!”
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