पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
अय्यूब
1. [QS]“अय्यूब, क्या तू जानता है कि पहाड़ी बकरी कब ब्याती हैं? [QE][QS2]क्या तूने कभी देखा जब हिरणी ब्याती है? [QE]
2. [QS]अय्यूब, क्या तू जानता है पहाड़ी बकरियाँ और माता हरिणियाँ कितने महीने अपने बच्चे को गर्भ में रखती हैं? [QE][QS2]क्या तूझे पता है कि उनका ब्याने का उचित समय क्या है? [QE]
3. [QS]वे लेट जाती हैं और बच्चों को जन्म देती है, [QE][QS2]तब उनकी पीड़ा समाप्त हो जाती है। [QE]
4. [QS]पहाड़ी बकरियों और हरिणी माँ के बच्चे खेतों में हृष्ट—पुष्ट हो जाते हैं। [QE][QS2]फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं, और फिर लौट कर वापस नहीं आते। [QE][PBR]
5. [QS]“अय्यूब, जंगली गधों को कौन आजाद छोड़ देता है [QE][QS2]किसने उसके रस्से खोले और उनको बन्धन मुक्त किया [QE]
6. [QS]यह मैं (यहोवा) हूँ जिसने बनैले गधे को घर के रूप में मरुभूमि दिया। [QE][QS2]मैंने उनको रहने के लिये रेही धरती दी। [QE]
7. [QS]बनैला गधा शोर भरे नगरों के पास नहीं जाता है [QE][QS2]और कोई भी व्यक्ति उसे काम करवाने के लिये नहीं साधता है। [QE]
8. [QS]बनैले गधे पहाड़ों में घूमते हैं [QE][QS2]और वे वहीं घास चरा करते हैं। [QE][QS2]वे वहीं पर हरी घास चरने को ढूँढते रहते हैं। [QE][PBR]
9. [QS]“अय्यूब, बता, क्या कोई जंगली सांड़ तेरी सेवा के लिये राजी होगा [QE][QS2]क्या वह तेरे खलिहान में रात को रुकेगा [QE]
10. [QS]अय्यूब, क्या तू जंगली सांड़ को रस्से से बाँध कर [QE][QS2]अपना खेत जुता सकता है क्या घाटी में तेरे लिये वह पटेला करेगा [QE]
11. [QS]अय्यूब, क्या तू किसी जंगली सांड़ के भरोसे रह सकता है [QE][QS2]क्या तू उसकी शक्ति से अपनी सेवा लेने की अपेक्षा रखता है [QE]
12. [QS]क्या तू उसके भरोसे है कि वह तेरा अनाज इकट्ठा [QE][QS2]तेरे और उसे तेरे खलिहान में ले जाये [QE][PBR]
13. [QS]“शुतुरमुर्ग जब प्रसन्न होता है वह अपने पंख फड़फड़ाता है किन्तु शुतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता। [QE][QS2]उसके पर और पंख सारस के जैसे नहीं होते। [QE]
14. [QS]शुतुरमुर्ग धरती पर अण्डे देती है, [QE][QS2]और वे रेत में सेये जाते हैं। [QE]
15. [QS]किन्तु शुतुरमुर्ग भूल जाता है कि कोई उसके अण्डों पर से चल कर उन्हें कुचल सकता है, [QE][QS2]अथवा कोई बनैला पशु उनको तोड़ सकता है। [QE]
16. [QS]शुतुरमुर्ग अपने ही बच्चों पर निर्दयता दिखाता है [QE][QS2]जैसे वे उसके बच्चे नहीं है। [QE][QS2]यदि उसके बच्चे मर भी जाये तो भी उसको उसकी चिन्ता नहीं है। [QE]
17. [QS]ऐसा क्यों क्योंकि मैंने (परमेश्वर) उस शुतुरमुर्ग को विवेक नहीं दिया था। [QE][QS2]शुतुरमुर्ग मूर्ख होता है, मैंने ही उसे ऐसा बनाया है। [QE]
18. [QS]किन्तु जब शुतुरमुर्ग दौड़ने को उठती है तब वह घोड़े और उसके सवार पर हँसती है, [QE][QS2]क्योंकि वह घोड़े से अधिक तेज भाग सकती है। [QE][PBR]
19. [QS]“अय्यूब, बता क्या तूने घोड़े को बल दिया [QE][QS2]और क्या तूने ही घोड़े की गर्दन पर अयाल जमाया है? [QE]
20. [QS]अय्यूब, बता जैसे टिड्डी कूद जाती है क्या तूने वैसा घोड़े को कुदाया है? [QE][QS2]घोड़ा घोर स्वर में हिनहिनाता है और लोग डर जाते हैं। [QE]
21. [QS]घोड़ा प्रसन्न है कि वह बहुत बलशाली है [QE][QS2]और अपने खुर से वह धरती को खोदा करता है। युद्ध में जाता हुआ घोड़ा तेज दौड़ता है। [QE]
22. [QS]घोड़ा डर की हँसी उड़ाता है क्योंकि वह कभी नहीं डरता। [QE][QS2]घोड़ा कभी भी युद्ध से मुख नहीं मोड़ता है। [QE]
23. [QS]घोड़े की बगल में तरकस थिरका करते हैं। [QE][QS2]उसके सवार के भाले और हथियार धूप में चमचमाया करते हैं। [QE]
24. [QS]घोड़ा बहुत उत्तेजित है, मैदान पर वह तीव्र गति से दौड़ता है। [QE][QS2]घोड़ा जब बिगुल की आवाज सुनता है तब वह शान्त खड़ा नहीं रह सकता। [QE]
25. [QS]जब बिगुल की ध्वनि होती है घोड़ा कहा करता है “अहा!” [QE][QS2]वह बहुत ही दूर से युद्ध को सूँघ लेता हैं। [QE][QS2]वह सेना के नायकों के घोष भरे आदेश और युद्ध के अन्य सभी शब्द सुन लेता है। [QE][PBR]
26. [QS]“अय्यूब, क्या तूने बाज को सिखाया अपने पंखो को फैलाना और दक्षिण की ओर उड़ जाना? [QE]
27. [QS]अय्यूब, क्या तू उकाब को उड़ने की [QE][QS2]और ऊँचे पहाड़ों में अपना घोंसला बनाने की आज्ञा देता है? [QE]
28. [QS]उकाब चट्टान पर रहा करता है। [QE][QS2]उसका किला चट्टान हुआ करती है। [QE]
29. [QS]उकाब किले से अपने शिकार पर दृष्टि रखता है। [QE][QS2]वह बहुत दूर से अपने शिकार को देख लेता है। [QE]
30. [QS]उकाब के बच्चे लहू चाटा करते हैं [QE][QS2]और वे मरी हुई लाशों के पास इकट्ठे होते हैं।” [QE][PBR]
Total 42 अध्याय, Selected अध्याय 39 / 42
1 “अय्यूब, क्या तू जानता है कि पहाड़ी बकरी कब ब्याती हैं? क्या तूने कभी देखा जब हिरणी ब्याती है? 2 अय्यूब, क्या तू जानता है पहाड़ी बकरियाँ और माता हरिणियाँ कितने महीने अपने बच्चे को गर्भ में रखती हैं? क्या तूझे पता है कि उनका ब्याने का उचित समय क्या है? 3 वे लेट जाती हैं और बच्चों को जन्म देती है, तब उनकी पीड़ा समाप्त हो जाती है। 4 पहाड़ी बकरियों और हरिणी माँ के बच्चे खेतों में हृष्ट—पुष्ट हो जाते हैं। फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं, और फिर लौट कर वापस नहीं आते। 5 “अय्यूब, जंगली गधों को कौन आजाद छोड़ देता है किसने उसके रस्से खोले और उनको बन्धन मुक्त किया 6 यह मैं (यहोवा) हूँ जिसने बनैले गधे को घर के रूप में मरुभूमि दिया। मैंने उनको रहने के लिये रेही धरती दी। 7 बनैला गधा शोर भरे नगरों के पास नहीं जाता है और कोई भी व्यक्ति उसे काम करवाने के लिये नहीं साधता है। 8 बनैले गधे पहाड़ों में घूमते हैं और वे वहीं घास चरा करते हैं। वे वहीं पर हरी घास चरने को ढूँढते रहते हैं। 9 “अय्यूब, बता, क्या कोई जंगली सांड़ तेरी सेवा के लिये राजी होगा क्या वह तेरे खलिहान में रात को रुकेगा 10 अय्यूब, क्या तू जंगली सांड़ को रस्से से बाँध कर अपना खेत जुता सकता है क्या घाटी में तेरे लिये वह पटेला करेगा 11 अय्यूब, क्या तू किसी जंगली सांड़ के भरोसे रह सकता है क्या तू उसकी शक्ति से अपनी सेवा लेने की अपेक्षा रखता है 12 क्या तू उसके भरोसे है कि वह तेरा अनाज इकट्ठा तेरे और उसे तेरे खलिहान में ले जाये 13 “शुतुरमुर्ग जब प्रसन्न होता है वह अपने पंख फड़फड़ाता है किन्तु शुतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता। उसके पर और पंख सारस के जैसे नहीं होते। 14 शुतुरमुर्ग धरती पर अण्डे देती है, और वे रेत में सेये जाते हैं। 15 किन्तु शुतुरमुर्ग भूल जाता है कि कोई उसके अण्डों पर से चल कर उन्हें कुचल सकता है, अथवा कोई बनैला पशु उनको तोड़ सकता है। 16 शुतुरमुर्ग अपने ही बच्चों पर निर्दयता दिखाता है जैसे वे उसके बच्चे नहीं है। यदि उसके बच्चे मर भी जाये तो भी उसको उसकी चिन्ता नहीं है। 17 ऐसा क्यों क्योंकि मैंने (परमेश्वर) उस शुतुरमुर्ग को विवेक नहीं दिया था। शुतुरमुर्ग मूर्ख होता है, मैंने ही उसे ऐसा बनाया है। 18 किन्तु जब शुतुरमुर्ग दौड़ने को उठती है तब वह घोड़े और उसके सवार पर हँसती है, क्योंकि वह घोड़े से अधिक तेज भाग सकती है। 19 “अय्यूब, बता क्या तूने घोड़े को बल दिया और क्या तूने ही घोड़े की गर्दन पर अयाल जमाया है? 20 अय्यूब, बता जैसे टिड्डी कूद जाती है क्या तूने वैसा घोड़े को कुदाया है? घोड़ा घोर स्वर में हिनहिनाता है और लोग डर जाते हैं। 21 घोड़ा प्रसन्न है कि वह बहुत बलशाली है और अपने खुर से वह धरती को खोदा करता है। युद्ध में जाता हुआ घोड़ा तेज दौड़ता है। 22 घोड़ा डर की हँसी उड़ाता है क्योंकि वह कभी नहीं डरता। घोड़ा कभी भी युद्ध से मुख नहीं मोड़ता है। 23 घोड़े की बगल में तरकस थिरका करते हैं। उसके सवार के भाले और हथियार धूप में चमचमाया करते हैं। 24 घोड़ा बहुत उत्तेजित है, मैदान पर वह तीव्र गति से दौड़ता है। घोड़ा जब बिगुल की आवाज सुनता है तब वह शान्त खड़ा नहीं रह सकता। 25 जब बिगुल की ध्वनि होती है घोड़ा कहा करता है “अहा!” वह बहुत ही दूर से युद्ध को सूँघ लेता हैं। वह सेना के नायकों के घोष भरे आदेश और युद्ध के अन्य सभी शब्द सुन लेता है। 26 “अय्यूब, क्या तूने बाज को सिखाया अपने पंखो को फैलाना और दक्षिण की ओर उड़ जाना? 27 अय्यूब, क्या तू उकाब को उड़ने की और ऊँचे पहाड़ों में अपना घोंसला बनाने की आज्ञा देता है? 28 उकाब चट्टान पर रहा करता है। उसका किला चट्टान हुआ करती है। 29 उकाब किले से अपने शिकार पर दृष्टि रखता है। वह बहुत दूर से अपने शिकार को देख लेता है। 30 उकाब के बच्चे लहू चाटा करते हैं और वे मरी हुई लाशों के पास इकट्ठे होते हैं।”
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