4. जो लोग लड़खड़ा रहे थे तेरे शब्दों ने उन्हें ढाढ़स बंधाया था। तूने निर्बल पैरों को अपने प्रोत्साहन से सबल किया।
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5. किन्तु अब तुझ पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है और तेरा साहस टूट गया है। विपदा की मार तुझ पर पड़ी और तू व्याकुल हो उठा।
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6. तू परमेश्वर की उपासना करता है, सो उस पर भरोसा रख। तू एक भला व्यक्ति है सो इसी को तू अपनी आशा बना ले।
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7. अय्यूब, इस बात को ध्यान में रख कि कोई भी सज्जन कभी नहीं नष्ट किये गये। निर्दोष कभी भी नष्ट नहीं किया गया है।
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8. मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो कष्टों को बढ़ाते हैं और जो जीवन को कठिन करते हैं। किन्तु वे सदा ही दण्ड भोगते हैं।
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10. दुर्जन सिंह की तरह गुरर्ते और दहाड़ते हैं, किन्तु परमेश्वर उन दुर्जनों को चुप कराता है। परमेश्वर उनके दाँत तोड़ देता है।
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11. बुरे लोग उन सिंहों के समान होते हैं जिन के पास शिकार के लिये कुछ भी नहीं होता। वे मर जाते हैं और उनके बच्चे इधर-उधर बिखर जाते है, और वे मिट जाते हैं।
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16. वह आत्मा चुपचाप ठहर गया किन्तु मैं नहीं जान सका कि वह क्या था। मेरी आँखों के सामने एक आकृति खड़ी थी, और वहाँ सन्नाटा सा छाया था। फिर मैंने एक बहुत ही शान्त ध्वनि सुनी।
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18. परमेश्वर अपने स्वर्गीय सेवकों तक पर भरोसा नहीं कर सकता। परमेश्वर को अपने दूतों तक में दोष मिल जातें हैं।
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19. सो मनुष्य तो और भी अधिक गया गुजरा है। मनुष्य तो कच्चे मिट्टी के घरौंदों में रहते हैं। इन मिट्टी के घरौंदों की नींव धूल में रखी गई हैं। इन लोगों को उससे भी अधिक आसानी से मसल कर मार दिया जाता है, जिस तरह भुनगों को मसल कर मारा जाता है।
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20. लोग भोर से सांझ के बीच में मर जाते हैं किन्तु उन पर ध्यान तक कोई नहीं देता है। वे मर जाते हैं और सदा के लिये चले जाते हैं।
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