2. “अय्यूब तूने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से तर्क किया। तूने बुरे काम करने का मुझे दोषी ठहराया। अब तू मुझको उत्तर दे।”
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4. “मैं तो कुछ कहने के लिये बहुत ही तुच्छ हूँ। मैं तुझसे क्या कह सकता हूँ मैं तुझे कोई उत्तर नहीं दे सकता। मैं अपना हाथ अपने मुख पर रख लूँगा।
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5. मैंने एक बार कहा किन्तु अब मैं उत्तर नहीं दूँगा। फिर मैंने दोबारा कहा किन्तु अब और कुछ नहीं बोलूँगा।”
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7. अय्यूब, तू पुरुष की तरह खड़ा हो, मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछूँगा और तू उन प्रश्नों का उत्तर मुझे देगा।
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8. अय्यूब क्या तू सोचता है कि मैं न्यायपूर्ण नहीं हूँ क्या तू मुझे बुरा काम करने का दोषी मानता है ताकि तू यह दिखा सके कि तू उचित है
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9. अय्यूब, बता क्या मेरे शस्त्र इतने शक्तिशाली हैं जितने कि मेरे शस्त्र हैं क्या तू अपनी वाणी को उतना ऊँचा गरजा सकता है जितनी मेरी वाणी है
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10. यदि तू वैसा कर सकता है तो तू स्वयं को आदर और महिमा दे तथा महिमा और उज्वलता को उसी प्रकार धारण कर जैसे कोई वस्त्र धारण करता है।
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11. अय्यूब, यदि तू मेरे समान है, तो अभिमानी लोगों से घृणा कर। अय्यूब, तू उन अहंकारी लोगों पर अपना क्रोध बरसा और उन्हें तू विनम्र बना दे।
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12. हाँ, अय्यूब उन अहंकारी लोगों को देख और तू उन्हें विनम्र बना दे। उन दुष्टों को तू कुचल दे जहाँ भी वे खड़े हों।
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13. तू सभी अभिमानियों को मिट्टी में गाड़ दे और उनकी देहों पर कफन लपेट कर तू उनको उनकी कब्रों में रख दे।
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14. अय्यूब, यदि तू इन सब बातों को कर सकता है तो मैं यह तेरे सामने स्वीकार करूँगा कि तू स्वयं को बचा सकता है।
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15. अय्यूब, देख तू, उस जलगज को मैंने (परमेश्वर) ने बनाया है और मैंने ही तुझे बनाया है। जलगज उसी प्रकार घास खाती है, जैसे गाय घास खाती है।
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17. जल गज की पूँछ दृढ़ता से ऐसी रहती है जैसा देवदार का वृक्ष खड़ा रहता है। उसके पैर की माँसपेशियाँ बहुत सुदृढ़ होती हैं।
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22. कमल के पौधे जलगज को अपनी छाया में छिपाते है। वह बाँस के पेड़ों के तले रहता हैं, जो नदी के पास उगा करते है।
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23. यदि नदी में बाढ़ आ जाये तो भी जल गज भागता नहीं है। यदि यरदन नदी भी उसके मुख पर थपेड़े मारे तो भी वह डरता नहीं है।
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