1. इस प्रकार, यहोवा ने यरदन नदी को तब तक सूखी रखा जब तक इस्राएल के लोगों ने उसे पार नहीं कर लिया। यरददन नदी के पश्चिम में रहने वाले एमोरी राजाओं और भूमध्य सागर के तट पर रहने वाले कनानी राजाओं ने इसके विषय में सुना और वे बहुत अधिक भयभीत हो गए। उसके बाद वे इस्राएल के लोगों के विरुद्ध युद्ध में खड़े रहने योग्य साहसी नहीं रह गए।
|
9. उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, “जब तुम मिस्र में दास थे तब तुम लज्जित थे। किन्तु आज मैंने तुम्हारी वह लज्जा दूर कर दी है।” इसलिए यहोशू ने उस स्थान का नाम गिलगाल रखा और वह स्थान आज भी गिलगाल कहा जाता है।
|
10. जिस समय इस्राएल के लोग यरीहो के मैदान में गिलगाल के स्थान पर डेरा डाले थे, वे फसह पर्व मना रहे थे। यह महीने के चौदहवें दिन की सन्धया को था।
|
11. फसह पर्व के बाद, अगले दिन लोगों ने वह भोजन किया जो उस भूमि पर उगाया गया था। उन्होंने अखमीरी रोटी और भुने अन्न खाए।
|
12. उस दिन जब लोगों ने वह भोजन कर लिया, उसके बाद स्वर्ग से विशेष भोजन आना बन्द हो गया। उसके बाद, इस्राएएल के लोगों ने स्वर्ग से विशेष भोजन न पाया। उसके बाद उन्होंने वही भोजन खाया जो कनान में पैदा किया गया था।
|
13. जब यहोशू यरीहो के निकट था तब उसने ऊपर आँख उठायी और उसने अपने सामने एक व्यक्ति को देखा। उस व्यक्ति के हाथ में तलवार थी। यहोशू उस व्यक्ति के पास गया और उससे पूछा, “क्या तुम हमारे मित्रों में से कोई हो या हमारे शत्रुओं में से?”
|
14. उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “मैं शत्रु नहीं हूँ। मैं यहोवा की सेना का एक सेनापति हूँ। मैं अभी-अभी तुम्हारे पास आया हूँ।” तब यहोशू न अपना सिर भूमि तक झुकाया। यह उसने सम्मान प्रकट करने के लिए किया। उसने पूछा, “क्या मेरे स्वामी का मुझ दास के लिए कोई आदेश है?”
|
15. यहोवा की सेना के सेनापति ने उत्तर दिया, “अपने जूते उतारो। जिस स्थान पर तुम खड़े हो वह स्थान पवित्र है।” इसलिए यहोशू ने उसकी आज्ञा मानी।
|