पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
विलापगीत
1. {#1यहोवा द्वारा यरूशलेम का विनाश } [QS]देखें यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को, [QE][QS2]कैसे बादल से ढक दिया है। [QE][QS]उसने इस्राएल की महिमा [QE][QS2]आकाश से धरती पर फेंक दी। [QE][QS]यहोवा ने उसे याद तक नहीं रखा कि [QE][QS2]सिय्योन अपने क्रोध के दिन पर उसके चरणों की चौकी हुआ करता था। [QE]
2. [QS]यहोवा ने याकूब के भवन निगल लिये। [QE][QS2]वह दया से रहिन होकर उसको निगल गया। [QE][QS]उसने यहूदा की पुत्री के गढ़ियों को भर क्रोध में मिटाया। [QE][QS2]यहोवा ने यहूदा के राजा को गिरा दिया; और यहूदा के राज्य को धरती पर पटक दिया। [QE][QS2]उसने राज्य को बर्बाद कर दिया। [QE]
3. [QS]यहोवा ने क्रोध में भर कर के इस्राएल की सारी शक्ति उखाड़ फेंकी। [QE][QS2]उसने इस्राएल के ऊपर से अपने दाहिना हाथ उठा लिया है। [QE][QS]उसने ऐसा उस घड़ी में किया था [QE][QS2]जब शत्रु उस पर चढ़ा था। [QE][QS]वह याकूब में धधकती हुई आग सा भड़की। [QE][QS2]वह एक ऐसी आग थी जो आस—पास का सब कुछ चट कर जाती है। [QE]
4. [QS]यहोवा ने शत्रु के समान अपना धनुष खेंचा था। [QE][QS2]उसके दाहिने हाथ में उसके तलवार का मुटठा था। [QE][QS]उसने यहूदा के सभी सुन्दर पुरुष मार डाले। [QE][QS2]यहोवा ने उन्हें मार दिया मानों जैसे वे शत्रु हों। [QE][QS]यहोवा ने अपने क्रोध को बरसाया। [QE][QS2]यहोवा ने सिय्योन के तम्बुओं पर उसको उडेंल दिया जैसे वह आग हो। [QE][PBR]
5. [QS]यहोवा शत्रु हो गया था [QE][QS2]और उसने इस्राएल को निगल लिया। [QE][QS]उसकी सभी महलों को उसने निगल लिया [QE][QS2]उसके सभी गढ़ियों को उसने निगल लिया था। [QE][QS]यहूदा की पुत्री के भीतर मरे हुए लोगों के हेतु उसने हाहाकार [QE][QS2]और शोक मचा दिया। [QE][PBR]
6. [QS]यहोवा ने अपना ही मन्दिर नष्ट किया था [QE][QS2]जैसे वह कोई उपवन हो, [QE][QS]उसने उस ठांव को नष्ट किया [QE][QS2]जहाँ लोग उसकी उपासना करने के लिये मिला करते थे। [QE][QS]यहोवा ने लोगों को ऐसा बना दिया कि वे सिय्योन में विशेष सभाओं को [QE][QS2]और विश्राम के विशेष दिनों को भूल जायें। [QE][QS]यहोवा ने याजक और राजा को नकार दिया। [QE][QS2]उसने बड़े क्रोध में भर कर उन्हें नकारा। [QE]
7. [QS]यहोवा ने अपनी ही वेदी को नकार दिया [QE][QS2]और उसने अपना उपासना का पवित्र स्थान को नकार दिया था। [QE][QS]यरूशलेम के महलों की दिवारें उसने शत्रु को सौंप दी। [QE][QS2]यहोवा के मन्दिर में शत्रु शोर कर रहा था। [QE][QS]वे ऐसे शोर करते थे जैसे कोई छुट्टी का दिन हो। [QE]
8. [QS]उसने सिय्योन की पुत्री का परकोटा नष्ट करना सोचा है। [QE][QS2]उसने किसी नापने की डोरी से उस पर निशान डाला था। [QE][QS]उसने स्वयं को विनाश से रोका नहीं। [QE][QS2]इसलिये उसने दु:ख में भर कर के बाहरी फसीलों को [QE][QS]और दूसरे नगर के परकोटों को रूला दिया था। [QE][QS2]वे दोनों ही साथ—साथ व्यर्थ हो गयीं। [QE][PBR]
9. [QS]यरूशलेम के दरवाजे टूट कर धरती पर बैठ गये। [QE][QS2]द्वार के सलाखों को तोड़कर उसने तहस—नहस कर दिया। [QE][QS]उसके ही राजा और उसकी राजकुमारियाँ आज दूसरे लोगों के बीच है। [QE][QS2]उनके लिये आज कोई शिक्षा ही नहीं रही। [QE][QS]यरूशलेम के नबी भी यहोवा से कोई दिव्य दर्शन नहीं पाते। [QE][PBR]
10. [QS]सिय्योन के बुजुर्ग अब धरती पर बैठते हैं। [QE][QS2]वे धरती पर बैठते हैं और चुप रहते है। [QE][QS]अपने माथों पर धूल मलते हैं [QE][QS2]और शोक वस्त्र पहनते हैं। [QE][QS]यरूशलेम की युवतियाँ दु:ख में [QE][QS2]अपना माथा धरती पर नवाती हैं। [QE][PBR]
11. [QS]मेरे नयन आँसुओं से दु:ख रहे हैं! [QE][QS2]मेरा अंतरंग व्याकुल है! [QE][QS]मेरे मन को ऐसा लगता है जैसे वह बाहर निकल कर धरती पर गिरा हो! [QE][QS2]मुझको इसलिये ऐसा लगता है कि मेरे अपने लोग नष्ट हुए हैं। [QE][QS]सन्तानें और शिशु मूर्छित हो रहें हैं। [QE][QS2]वे नगर के गलियों और बाजारों में मूर्छित पड़े हैं। [QE]
12. [QS]वे बच्चे बिलखते हुए अपनी माँओं से पूछते हैं, “कहाँ है माँ, कुछ खाने को और पीने को” [QE][QS2]वे यह प्रश्न ऐसे पूछते हैं जैसे जख्मी सिपाही नगर के गलियों में गिरते प्राणों को त्यागते, वे यह प्रश्न पूछते हैं। [QE][QS2]वे अपनी माँओं की गोद में लेटे हुए प्राणों को त्यागते हैं। [QE]
13. [QS]हे सिय्योन की पुत्री, मैं किससे तेरी तुलना करूँ? [QE][QS2]तुझको किसके समान कहूँ? [QE][QS]हे सिय्योन की कुँवारी कन्या, [QE][QS2]तुझको किससे तुलना करूँ? [QE][QS]तुझे कैसे ढांढस बंधाऊँ तेरा विनाश सागर सा विस्तृत है! [QE][QS2]ऐसा कोई भी नहीं जो तेरा उपचार करें। [QE][PBR]
14. [QS]तेरे नबियों ने तेरे लिये दिव्य दर्शन लिये थे। [QE][QS2]किन्तु वे सभी व्यर्थ झूठे सिद्ध हुए। [QE][QS]तेरे पापों के विरुद्ध उन्होंने उपदेश नहीं दिये। [QE][QS2]उन्होंने बातों को सुधारने का जतन नहीं किया। [QE][QS]उन्होंने तेरे लिये उपदेशों का सन्देश दिया, किन्तु वे झूठे सन्देश थे। [QE][QS2]तुझे उनसे मूर्ख बनाया गया। [QE][PBR]
15. [QS]बटोही राह से गुजरते हुए स्तब्ध होकर [QE][QS2]तुझ पर ताली बजाते हैं। [QE][QS]यरूशलेम की पुत्री पर वे सीटियाँ बजाते [QE][QS2]और माथा नचाते हैं। [QE][QS]वे लोग पूछते है, “क्या यही वह नगरी है जिसे लोग कहा करते थे, [QE][QS2]‘एक सम्पूर्ण सुन्दर नगर’ तथा ‘सारे संसार का आनन्द’?” [QE][PBR]
16. [QS]तेरे सभी शत्रु तुझ पर अपना मुँह खोलते हैं। [QE][QS2]तुझ पर सीटियाँ बजाते हैं और तुझ पर दाँत पीसते हैं। [QE][QS]वे कहा करते है, “हमने उनको निगल लिया! [QE][QS2]सचमुच यही वह दिन है जिसकी हमको प्रतीक्षा थी। [QE][QS2]आखिरकार हमने इसे घटते हुए देख लिया।” [QE][PBR]
17. [QS]यहोवा ने वैसा ही किया जैसी उसकी योजना थी। [QE][QS2]उसने वैसा ही किया जैसा उसने करने के लिये कहा था। [QE][QS2]बहुत—बहुत दिनों पहले जैसा उसने आदेश दिया था, वैसा ही कर दिया। [QE][QS]उसने बर्बाद किया, उसको दया तक नहीं आयी। [QE][QS2]उसने तेरे शत्रुओं को प्रसन्न किया कि तेरे साथ ऐसा घटा। [QE][QS2]उसने तेरे शत्रुओं की शक्ति बढ़ा दी। [QE][PBR]
18. [QS]हे यरूशलेम की पुत्री परकोटे, तू अपने मन से यहोवा की टेर लगा! [QE][QS2]आँसुओं को नदी सा बहने दे! [QE][QS2]रात—दिन अपने आँसुओं को गिरने दे! [QE][QS]तू उनको रोक मत! [QE][QS2]तू अपनी आँखों को थमने मत दे! [QE][PBR]
19. [QS]जाग उठ! रात में विलाप कर! [QE][QS2]रात के हर पहर के शुरु में विलाप कर! [QE][QS2]आँसुओ में अपना मन बाहर निकाल दे जैसा वह पानी हो! [QE][QS]अपना मन यहोवा के सामने निकाल रख! [QE][QS2]यहोवा की प्रार्थना में अपने हाथ ऊपर उठा। [QE][QS2]उससे अपनी संतानों का जीवन माँग। [QE][QS2]उससे तू उन सन्तानों का जीवन माँग ले जो भूख से बेहोश हो रहें है। [QE][QS2]वे नगर के हर कूँचे गली में बेहोश पड़ी है। [QE][PBR]
20. [QS]हे यहोवा, मुझ पर दृष्टि कर! [QE][QS2]देख कौन है वह जिसके साथ तूने ऐसा किया! [QE][QS]तू मुझको यह प्रश्न पूछने दे: क्या माँ उन बच्चों को खा जाये जिनको वह जनती है? [QE][QS]क्या माँ उन बच्चों को खा जाये जिनको वे पोसती रही है? [QE][QS2]क्या यहोवा के मन्दिर में याजक और नबियों के प्राणों को लिया जाये? [QE]
21. [QS]नवयुवक और वृद्ध, [QE][QS2]नगर की गलियों में धरती पर पड़े रहें। [QE][QS]मेरी युवा स्त्रियाँ, पुरुष और युवक [QE][QS2]तलवार के धार उतारे गये थे। [QE][QS]हे यहोवा, तूने अपने क्रोध के दिन पर उनका वध किया है! [QE][QS2]तूने उन्हें बिना किसी करुणा के मारा है! [QE][PBR]
22. [QS]तूने मुझ पर घिर आने को चारों ओर से आतंक बुलाया। [QE][QS2]आतंक को तूने ऐसे बुलाया जैसे पर्व के दिन पर बुलाया हो। [QE][QS]उस दिन जब यहोवा ने क्रोध किया था ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो बचकर भाग पाया हो अथवा उससे निकल पाया हो। [QE][QS2]जिनको मैंने बढ़ाया था और मैंने पाला—पोसा, उनको मेरे शत्रुओं ने मार डाला है। [QE][PBR]
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यहोवा द्वारा यरूशलेम का विनाश 1 देखें यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को, कैसे बादल से ढक दिया है। उसने इस्राएल की महिमा आकाश से धरती पर फेंक दी। यहोवा ने उसे याद तक नहीं रखा कि सिय्योन अपने क्रोध के दिन पर उसके चरणों की चौकी हुआ करता था। 2 यहोवा ने याकूब के भवन निगल लिये। वह दया से रहिन होकर उसको निगल गया। उसने यहूदा की पुत्री के गढ़ियों को भर क्रोध में मिटाया। यहोवा ने यहूदा के राजा को गिरा दिया; और यहूदा के राज्य को धरती पर पटक दिया। उसने राज्य को बर्बाद कर दिया। 3 यहोवा ने क्रोध में भर कर के इस्राएल की सारी शक्ति उखाड़ फेंकी। उसने इस्राएल के ऊपर से अपने दाहिना हाथ उठा लिया है। उसने ऐसा उस घड़ी में किया था जब शत्रु उस पर चढ़ा था। वह याकूब में धधकती हुई आग सा भड़की। वह एक ऐसी आग थी जो आस—पास का सब कुछ चट कर जाती है। 4 यहोवा ने शत्रु के समान अपना धनुष खेंचा था। उसके दाहिने हाथ में उसके तलवार का मुटठा था। उसने यहूदा के सभी सुन्दर पुरुष मार डाले। यहोवा ने उन्हें मार दिया मानों जैसे वे शत्रु हों। यहोवा ने अपने क्रोध को बरसाया। यहोवा ने सिय्योन के तम्बुओं पर उसको उडेंल दिया जैसे वह आग हो। 5 यहोवा शत्रु हो गया था और उसने इस्राएल को निगल लिया। उसकी सभी महलों को उसने निगल लिया उसके सभी गढ़ियों को उसने निगल लिया था। यहूदा की पुत्री के भीतर मरे हुए लोगों के हेतु उसने हाहाकार और शोक मचा दिया। 6 यहोवा ने अपना ही मन्दिर नष्ट किया था जैसे वह कोई उपवन हो, उसने उस ठांव को नष्ट किया जहाँ लोग उसकी उपासना करने के लिये मिला करते थे। यहोवा ने लोगों को ऐसा बना दिया कि वे सिय्योन में विशेष सभाओं को और विश्राम के विशेष दिनों को भूल जायें। यहोवा ने याजक और राजा को नकार दिया। उसने बड़े क्रोध में भर कर उन्हें नकारा। 7 यहोवा ने अपनी ही वेदी को नकार दिया और उसने अपना उपासना का पवित्र स्थान को नकार दिया था। यरूशलेम के महलों की दिवारें उसने शत्रु को सौंप दी। यहोवा के मन्दिर में शत्रु शोर कर रहा था। वे ऐसे शोर करते थे जैसे कोई छुट्टी का दिन हो। 8 उसने सिय्योन की पुत्री का परकोटा नष्ट करना सोचा है। उसने किसी नापने की डोरी से उस पर निशान डाला था। उसने स्वयं को विनाश से रोका नहीं। इसलिये उसने दु:ख में भर कर के बाहरी फसीलों को और दूसरे नगर के परकोटों को रूला दिया था। वे दोनों ही साथ—साथ व्यर्थ हो गयीं। 9 यरूशलेम के दरवाजे टूट कर धरती पर बैठ गये। द्वार के सलाखों को तोड़कर उसने तहस—नहस कर दिया। उसके ही राजा और उसकी राजकुमारियाँ आज दूसरे लोगों के बीच है। उनके लिये आज कोई शिक्षा ही नहीं रही। यरूशलेम के नबी भी यहोवा से कोई दिव्य दर्शन नहीं पाते। 10 सिय्योन के बुजुर्ग अब धरती पर बैठते हैं। वे धरती पर बैठते हैं और चुप रहते है। अपने माथों पर धूल मलते हैं और शोक वस्त्र पहनते हैं। यरूशलेम की युवतियाँ दु:ख में अपना माथा धरती पर नवाती हैं। 11 मेरे नयन आँसुओं से दु:ख रहे हैं! मेरा अंतरंग व्याकुल है! मेरे मन को ऐसा लगता है जैसे वह बाहर निकल कर धरती पर गिरा हो! मुझको इसलिये ऐसा लगता है कि मेरे अपने लोग नष्ट हुए हैं। सन्तानें और शिशु मूर्छित हो रहें हैं। वे नगर के गलियों और बाजारों में मूर्छित पड़े हैं। 12 वे बच्चे बिलखते हुए अपनी माँओं से पूछते हैं, “कहाँ है माँ, कुछ खाने को और पीने को” वे यह प्रश्न ऐसे पूछते हैं जैसे जख्मी सिपाही नगर के गलियों में गिरते प्राणों को त्यागते, वे यह प्रश्न पूछते हैं। वे अपनी माँओं की गोद में लेटे हुए प्राणों को त्यागते हैं। 13 हे सिय्योन की पुत्री, मैं किससे तेरी तुलना करूँ? तुझको किसके समान कहूँ? हे सिय्योन की कुँवारी कन्या, तुझको किससे तुलना करूँ? तुझे कैसे ढांढस बंधाऊँ तेरा विनाश सागर सा विस्तृत है! ऐसा कोई भी नहीं जो तेरा उपचार करें। 14 तेरे नबियों ने तेरे लिये दिव्य दर्शन लिये थे। किन्तु वे सभी व्यर्थ झूठे सिद्ध हुए। तेरे पापों के विरुद्ध उन्होंने उपदेश नहीं दिये। उन्होंने बातों को सुधारने का जतन नहीं किया। उन्होंने तेरे लिये उपदेशों का सन्देश दिया, किन्तु वे झूठे सन्देश थे। तुझे उनसे मूर्ख बनाया गया। 15 बटोही राह से गुजरते हुए स्तब्ध होकर तुझ पर ताली बजाते हैं। यरूशलेम की पुत्री पर वे सीटियाँ बजाते और माथा नचाते हैं। वे लोग पूछते है, “क्या यही वह नगरी है जिसे लोग कहा करते थे, ‘एक सम्पूर्ण सुन्दर नगर’ तथा ‘सारे संसार का आनन्द’?” 16 तेरे सभी शत्रु तुझ पर अपना मुँह खोलते हैं। तुझ पर सीटियाँ बजाते हैं और तुझ पर दाँत पीसते हैं। वे कहा करते है, “हमने उनको निगल लिया! सचमुच यही वह दिन है जिसकी हमको प्रतीक्षा थी। आखिरकार हमने इसे घटते हुए देख लिया।” 17 यहोवा ने वैसा ही किया जैसी उसकी योजना थी। उसने वैसा ही किया जैसा उसने करने के लिये कहा था। बहुत—बहुत दिनों पहले जैसा उसने आदेश दिया था, वैसा ही कर दिया। उसने बर्बाद किया, उसको दया तक नहीं आयी। उसने तेरे शत्रुओं को प्रसन्न किया कि तेरे साथ ऐसा घटा। उसने तेरे शत्रुओं की शक्ति बढ़ा दी। 18 हे यरूशलेम की पुत्री परकोटे, तू अपने मन से यहोवा की टेर लगा! आँसुओं को नदी सा बहने दे! रात—दिन अपने आँसुओं को गिरने दे! तू उनको रोक मत! तू अपनी आँखों को थमने मत दे! 19 जाग उठ! रात में विलाप कर! रात के हर पहर के शुरु में विलाप कर! आँसुओ में अपना मन बाहर निकाल दे जैसा वह पानी हो! अपना मन यहोवा के सामने निकाल रख! यहोवा की प्रार्थना में अपने हाथ ऊपर उठा। उससे अपनी संतानों का जीवन माँग। उससे तू उन सन्तानों का जीवन माँग ले जो भूख से बेहोश हो रहें है। वे नगर के हर कूँचे गली में बेहोश पड़ी है। 20 हे यहोवा, मुझ पर दृष्टि कर! देख कौन है वह जिसके साथ तूने ऐसा किया! तू मुझको यह प्रश्न पूछने दे: क्या माँ उन बच्चों को खा जाये जिनको वह जनती है? क्या माँ उन बच्चों को खा जाये जिनको वे पोसती रही है? क्या यहोवा के मन्दिर में याजक और नबियों के प्राणों को लिया जाये? 21 नवयुवक और वृद्ध, नगर की गलियों में धरती पर पड़े रहें। मेरी युवा स्त्रियाँ, पुरुष और युवक तलवार के धार उतारे गये थे। हे यहोवा, तूने अपने क्रोध के दिन पर उनका वध किया है! तूने उन्हें बिना किसी करुणा के मारा है! 22 तूने मुझ पर घिर आने को चारों ओर से आतंक बुलाया। आतंक को तूने ऐसे बुलाया जैसे पर्व के दिन पर बुलाया हो। उस दिन जब यहोवा ने क्रोध किया था ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो बचकर भाग पाया हो अथवा उससे निकल पाया हो। जिनको मैंने बढ़ाया था और मैंने पाला—पोसा, उनको मेरे शत्रुओं ने मार डाला है।
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