पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
लूका
1. अब जब कर वसूलने वाले और पापी सभी उसे सुनने उसके पास आने लगे थे।
2. तो फरीसी और यहूदी धर्मशास्त्री बड़बड़ाते हुए कहने लगे, “यह व्यक्ति तो पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता है।”
3. इस पर यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त कथा सुनाई:
4. “मानों तुममें से किसी के पास सौ भेड़े हैं और उनमें से कोई एक खो जाये तो क्या वह निन्यानबें भेड़ों को खुले में छोड़ कर खोई हुई भेड़ का पीछा तब तक नहीं करेगा, जब तक कि वह उसे पा न ले।
5. फिर जब उसे भेड़ मिल जाती है तो वह उसे प्रसन्नता के साथ अपने कन्धों पर उठा लेता है।
6. और जब घर लौटता है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुलाकर उनसे कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओं क्योंकि मुझे मेरी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’
7. मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार किसी एक मन फिराने वाले पापी के लिये, उन निन्यानबें धर्मी पुरुषों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं है, स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाएगा।
8. “या सोचो कोई औरत है जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हैं और उसका एक सिक्का खो जाता है तो क्या वह दीपक जला कर घर को तब तक नहीं बुहारती रहेगी और सावधानी से नहीं खोजती रहेगी जब तक कि वह उसे मिल न जाये?
9. और जब वह उसे पा लेती है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुला कर कहती है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मेरा सिक्का जो खो गया था, मिल गया है।’
10. मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिये भी परमेश्वर के दूतों की उपस्थिति में वहाँ आनन्द मनाया जायेगा।”
11. फिर यीशु ने कहा: “एक व्यक्ति के दो बेटे थे।
12. सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।
13. अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला।
14. जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा।
15. इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया।
16. वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ हो पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।
17. फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला, ‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर है जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ।
18. सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है।
19. अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मजदूर समझकर रख ले।’
20. सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया। “अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा।
21. पुत्र ने पिता से कहा, “पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’
22. किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, “जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ।
23. कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आऔ उसे खाकर हम आनन्द मनायें।
24. क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।
25. “अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने।
26. उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’
27. सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई आ गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’
28. बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया।
29. पर उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता।
30. पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’
31. पिता ने उससे कहा, “मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है।
32. किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।”‘

Notes

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लूका 15:21
1. अब जब कर वसूलने वाले और पापी सभी उसे सुनने उसके पास आने लगे थे।
2. तो फरीसी और यहूदी धर्मशास्त्री बड़बड़ाते हुए कहने लगे, “यह व्यक्ति तो पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता है।”
3. इस पर यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त कथा सुनाई:
4. “मानों तुममें से किसी के पास सौ भेड़े हैं और उनमें से कोई एक खो जाये तो क्या वह निन्यानबें भेड़ों को खुले में छोड़ कर खोई हुई भेड़ का पीछा तब तक नहीं करेगा, जब तक कि वह उसे पा ले।
5. फिर जब उसे भेड़ मिल जाती है तो वह उसे प्रसन्नता के साथ अपने कन्धों पर उठा लेता है।
6. और जब घर लौटता है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुलाकर उनसे कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओं क्योंकि मुझे मेरी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’
7. मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार किसी एक मन फिराने वाले पापी के लिये, उन निन्यानबें धर्मी पुरुषों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं है, स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाएगा।
8. “या सोचो कोई औरत है जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हैं और उसका एक सिक्का खो जाता है तो क्या वह दीपक जला कर घर को तब तक नहीं बुहारती रहेगी और सावधानी से नहीं खोजती रहेगी जब तक कि वह उसे मिल जाये?
9. और जब वह उसे पा लेती है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुला कर कहती है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मेरा सिक्का जो खो गया था, मिल गया है।’
10. मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिये भी परमेश्वर के दूतों की उपस्थिति में वहाँ आनन्द मनाया जायेगा।”
11. फिर यीशु ने कहा: “एक व्यक्ति के दो बेटे थे।
12. सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।
13. अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला।
14. जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा।
15. इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया।
16. वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ हो पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।
17. फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला, ‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर है जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ।
18. सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है।
19. अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मजदूर समझकर रख ले।’
20. सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया। “अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा।
21. पुत्र ने पिता से कहा, “पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’
22. किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, “जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ।
23. कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आऔ उसे खाकर हम आनन्द मनायें।
24. क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।
25. “अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने।
26. उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’
27. सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’
28. बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया।
29. पर उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता।
30. पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’
31. पिता ने उससे कहा, “मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है।
32. किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।”‘
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