2. वहाँ शैतान ने चालीस दिन तक उसकी परीक्षा ली। उन दिनों यीशु बिना कुछ खाये रहा। फिर जब वह समय पूरा हुआ तो यीशु को बहुत भूख लगी।
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4. इस पर यीशु ने उसे उत्तर दिया, “शास्त्र में लिखा है: ‘मनुष्य केवल रोटी पर नहीं जीता।’”व्यवस्था विवरण 8:3
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6. शैतान ने उससे कहा, “मैं इन राज्यों का सारा वैभव और अधिकार तुझे दे दूँगा क्योंकि वह मुझे दिया गया है और मैं उसे जिसको चाहूँ दे सकता हूँ।
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8. यीशु ने उसे उत्तर देते हुए कहा, “लिखा गया है: ‘तुझे बस अपने प्रभु परमेश्वर की ही उपासना करनी चाहिये। तुझे केवल उसी की सेवा करनी चाहिए!”‘व्यवस्था विवरण 6:13
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9. तब वह उसे यरूशलेम ले गया और वहाँ मन्दिर के सबसे ऊँचे शिखर पर ले जाकर खड़ा कर दिया। और उससे बोला, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो यहाँ से अपने आप को नीचे गिरा दे!
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10. क्योंकि लिखा है : ‘वह अपने स्वर्गदूतों को तेरे विषय में आज्ञा देगा कि वे तेरी रक्षा करें।”‘भजन संहिता 91:11
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11. और लिखा है : ‘वे तुझे अपनी बाहों में ऐसे उठा लेंगे कि तेरा पैर तक किसी पत्थर को न छुए।”‘भजन संहिता 91:12
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12. यीशु ने उत्तर देते हुए कहा, “शास्त्र में यह भी लिखा है : ‘तुझे अपने प्रभु परमेश्वर को परीक्षा में नहीं डालना चाहिये।”‘व्यवस्था विवरण 6:16
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14. फिर आत्मा की शक्ति से पूर्ण होकर यीशु गलील लौट आया और उस सारे प्रदेश में उसकी चर्चाएँ फैलने लगी।
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16. फिर वह नासरत आया जहाँ वह पला-बढ़ा था। और अपनी आदत के अनुसार सब्त के दिन वह यहूदी धर्म सभागार में गया। जब वह पाठ करने खड़ा हुआ।
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18. “प्रभु का आत्मा मुझमें समाया है उसने मेरा अभिषेक किया है ताकि मैं दीनों को सुसमाचार सुनाऊँ। उसने मुझे बंदियों को यह घोषित करने के लिए कि वे मुक्त है, अन्धों को यह सन्देश सुनाने को कि वे फिर दृष्टि पायेंगे, दलितो को छुटकारा दिलाने को और
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20. फिर उसने पुस्तक बंद करके सेवक को वापस दे दी। और वह नीचे बैठ गया। प्रार्थना सभा में सब लोगों की आँखें उसे ही निहार रही थीं।
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22. हर कोई उसकी बढ़ाई कर रहा था। उसके मुख से जो सुन्दर वचन निकल रहे थे, उन पर सब चकित थे। वे बोले, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं हैं?”
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23. फिर यीशु ने उनसे कहा, “निश्चय ही तुम मुझे यह कहावत सुनाओगे, ‘अरे वैद्य, स्वयं अपना इलाज कर। कफ़रनहूम में तेरे जिन कर्मो के विषय में हमने सुना है, उन कर्मो को यहाँ अपने स्वयं के नगर में भी कर!”‘
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25. मैं तुमसे सत्य कहता हूँ इस्राएल में एलिय्याह के काल में जब आकाश जैसे मुँद गया था और साढ़े तीन साल तक सारे देश में भयानक अकाल पड़ा था, तब वहाँ अनगिनत विधवाएँ थीं।
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26. किन्तु सैदा प्रदेश के सारपत नगर की एक विधवा को छोड़ कर एलिय्याह को किसी और के पास नहीं भेजा गया था।
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27. और नबी एलिशा के काल में इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे किन्तु उनमें से सीरिया के रहने वाले नामान के कोढ़ी को छोड़ कर और किसी को शुद्ध नहीं किया गया था।”
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29. सो वे खड़े हुए और उन्होंने उसे नगर से बाहर धकेल दिया। वे उसे पहाड़ की उस चोटी पर ले गये जिस पर उनका नगर बसा था ताकि वे वहाँ चट्टान से उसे नीचे फेंक दें।
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34. “हे यीशु नासरी! तू हमसे क्या चाहता है? क्या तू हमारा नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू कौन है - तू परमेश्वर का पवित्र पुरुष है!”
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35. यीशु ने झिड़कते हुए उससे कहा, “चुप रह! इसमें से बाहर निकल आ!” इस पर दुष्टात्मा ने उस व्यक्ति को लोगों के सामने एक पटकी दी और उसे बिना कोई हानि पहुँचाए, उसमें से बाहर निकल आयी।
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36. सभी लोग चकित थे। वे एक दूसरे से बात करते हुए बोले, “यह कैसा वचन है? अधिकार और शक्ति के साथ यह दुष्टात्माओं को आज्ञा देता है और वे बाहर निकल आती है।”
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38. तब यीशु प्रार्थना सभागार को छोड़ कर शमौन के घर चला गया। शमौन की सास को बहुत ताप चढ़ा था। उन्होंने यीशु को उसकी सहायता करने के लिये विनती की।
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39. यीशु उसके सिरहाने खड़ा हुआ और उसने ताप को डाँटा। ताप ने उसे छोड़ दिया। वह तत्काल खड़ी हो गयी और उनकी सेवा करने लगी।
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40. जब सूरज ढल रहा था तो जिन के यहाँ विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त रोगी थे, वे सभी उन्हें उसके पास लाये। और उसने अपना हाथ उनमें से हर एक के सिर पर रखते हुए उन्हें चंगा कर दिया।
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41. उनमें बहुतों में से दुष्टात्माएँ चिल्लाती हुई यह कहती बाहर निकल आयीं, “तू परमेश्वर का पुत्र है।” किन्तु उसने उन्हें बोलने नहीं दिया, क्योंकि वे जानती थी, “वह मसीह है।”
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42. जब पौ फटी तो वह वहाँ से किसी एकांत स्थान को चला गया। किन्तु भीड़ उसे खोजते खोजते वहीं जा पहुँची जहाँ वह था। उन्होंने प्रयत्न किया कि वह उन्हें छोड़ कर न जाये।
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43. किन्तु उसने उनसे कहा, “परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार मुझे दूसरे नगरों में भी पहुँचाना है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।”
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