पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
लूका
1. {यीशु अपने शिष्यों के साथ} [PS] इसके बाद ऐसा हुआ कि यीशु परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार लोगों को सुनाते हुए नगर-नगर और गाँव-गाँव घूमने लगा। उसके बारहों शिष्य भी उसके साथ हुआ करते थे।
2. उसके साथ कुछ स्त्रियाँ भी थीं जिन्हें उसने रोगों और दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाया था। इनमें मरियम मग्दलीनी नाम की एक स्त्री थी जिसे सात दुष्टात्माओं से छुटकारा मिला था।
3. (हेरोदेस के प्रबन्ध अधिकारी) खुज़ा की पत्नी योअन्ना भी इन्हीं में थी। साथ ही सुसन्नाह तथा और बहुत सी स्त्रियाँ भी थीं। ये स्त्रियाँ अपने ही साधनों से यीशु और उसके शिष्यों की सेवा का प्रबन्ध करती थीं। [PE][PS]
4. {बीज बोने की दृष्टान्त कथा} (मत्ती 13:1-17; मरकुस 4:1-12) [PS] जब नगर-नगर से आकर लोगों की बड़ी भीड़ उसके यहाँ एकत्र हो रही थी, तो उसने उनसे एक दृष्टान्त कथा कही: [PE][PS]
5. “एक किसान अपने बीज बोने निकला। जब उसने बीज बोये तो कुछ बीज राह किनारे जा पड़े और पैरों तले रूँद गये। और चिड़ियाँए उन्हें चुग गयीं।
6. कुछ बीज चट्टानी धरती पर गिरे, वे जब उगे तो नमी के बिना मुरझा गये।
7. कुछ बीज कँटीली झाड़ियों में गिरे। काँटों की बढ़वार भी उनके साथ हुई और काँटों ने उन्हें दबोच लिया।
8. और कुछ बीज अच्छी धरती पर गिरे। वे उगे और उन्होंने सौ गुनी अधिक फसल दी।” [PE][PS] ये बातें बताते हुए उसने पुकार कर कहा, “जिसके पास सुनने को कान हैं, वह सुन ले।” [PE][PS]
9. उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त कथा का क्या अर्थ है?” [PE][PS]
10. सो उसने बताया, “परमेश्वर के राज्य के रहस्य जानने की सुविधा तुम्हें दी गयी है किन्तु दूसरों को यह रहस्य दृष्टान्त कथाओं के द्वारा दिये गये हैं ताकि: ‘वे देखते हुए भी [QBR2] न देख पायें [QBR] और सुनते हुए भी [QBR2] न समझ पाये।’ यशायाह 6:9 [PE][PS]
11. {बीज बोने के दृष्टान्त की व्याख्या} (मत्ती 13:18-23; मरकुस 4:13-20) [PS] “इस दृष्टान्त कथा का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है।
12. वे बीज जो राह किनारे गिरे थे, वे वह व्यक्ति हैं जो जब वचन को सुनते हैं, तो शैतान आता है और वचन को उनके मन से निकाल ले जाता है ताकि वे विश्वास न कर पायें और उनका उद्धार न हो सके।
13. वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे उनका अर्थ है, वह व्यक्ति जो जब वचन को सुनते हैं तो उसे आनन्द के साथ अपनाते हैं। किन्तु उनके भीतर उसकी जड़ नहीं जम पाती। वे कुछ समय के लिये विश्वास करते हैं किन्तु परीक्षा की घड़ी में वे डिग जाते हैं। [PE][PS]
14. “और जो बीज काँटो में गिरे, उसका अर्थ है, वह व्यक्ति जो वचन को सुनते हैं किन्तु जब वह अपनी राह चलने लगते हैं तो चिन्ताएँ धन-दौलत और जीवन के भोग विलास उसे दबा देते हैं, जिससे उन पर कभी पकी फसल नहीं उतरती।
15. और अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है वे व्यक्ति जो अच्छे और सच्चे मन से जब वचन को सुनते हैं तो उसे धारण भी करते हैं। फिर अपने धैर्य के साथ वह उत्तम फल देते हैं। [PE][PS]
16. {अपने सत्य का उपयोग करो} (मत्ती 4:21-25) [PS] “कोई भी किसी दिये को बर्तन के नीचे ढक देने को नहीं जलाता। या उसे बिस्तर के नीचे नहीं रखता। बल्कि वह उसे दीवट पर रखता है ताकि जो भीतर आयें प्रकाश देख सकें।
17. न कोई गुप्त बात है जो जानी नहीं जाएगी और कुछ भी ऐसा छिपा नहीं है जो प्रकाश में नहीं आयेगा।
18. इसलिये ध्यान से सुनो क्योंकि जिसके पास है उसे और भी दिया जायेगा और जिसके पास नहीं है, उससे जो उसके पास दिखाई देता है, वह भी ले लिया जायेगा।” [PE][PS]
19. {यीशु के अनुयायी ही उसका सच्चा परिवार है} (मत्ती 12:46-50; मरकुस 3:31-35) [PS] तभी यीशु की माँ और उसके भाई उसके पास आये किन्तु वे भीड़ के कारण उसके निकट नहीं जा सके।
20. इसलिये यीशु से यह कहा गया, “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं। वे तुझसे मिलना चाहते हैं।” [PE][PS]
21. किन्तु यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माँ और मेरे भाई तो ये हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं।” [PE][PS]
22. {शिष्यों को यीशु की शक्ति का दर्शन} (मत्ती 8:23-27; मरकुस 4:35-41) [PS] तभी एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने शिष्यों के साथ एक नाव पर चढ़ा और उनसे बोला, “आओ, झील के उस पार चलें।” सो उन्होंने पाल खोल दी।
23. जब वे नाव चला रहे थे, यीशु सो गया। झील पर आँधी-तूफान उतर आया। उनकी नाव में पानी भरने लगा। वे ख़तरे में पड़ गये।
24. सो वे उसके पास आये और उसे जगाकर कहने लगे, “स्वामी! स्वामी! हम डूब रहे हैं।” [PE][PS] फिर वह खड़ा हुआ और उसने आँधी तथा लहरों को डाँटा। वे थम गयीं और वहाँ शान्ति छा गयी।
25. फिर उसने उनसे पूछा, “कहाँ गया तुम्हारा विश्वास?” [PE][PS] किन्तु वे डरे हुए थे और अचरज में पड़ें थे। वे आपस में बोले, “आखिर यह है कौन जो हवा और पानी दोनों को आज्ञा देता है और वे उसे मानते हैं?” [PE][PS]
26. {दुष्टात्मा से छुटकारा} (मत्ती 8:28-34; मरकुस 5:1-20) [PS] फिर वे गिरासेनियों के प्रदेश में पहुँचे जो गलील झील के सामने परले पार था।
27. जैसे ही वह किनारे पर उतरा, नगर का एक व्यक्ति उसे मिला। उसमें दुष्टात्माएँ समाई हुई थीं। एक लम्बे समय से उसने न तो कपड़े पहने थे और न ही वह घर में रहा था, बल्कि वह कब्रों में रहता था। [PE][PS]
28. (28-29) जब उसने यीशु को देखा तो चिल्लाते हुए उसके सामने गिर कर ऊँचे स्वर में बोला, “हे परम प्रधान (परमेश्वर) के पुत्र यीशु, तू मुझसे क्या चाहता है? मैं विनती करता हूँ मुझे पीड़ा मत पहुँचा।” उसने उस दुष्टात्मा को उस व्यक्ति में से बाहर निकलने का आदेश दिया था, क्योंकि उस दुष्टात्मा ने उस मनुष्य को बहुत बार पकड़ा था। ऐसे अवसरों पर उसे बेड़ियों से बाँध कर पहरे में रखा जाता था। किन्तु वह सदा ज़ंजीरों को तोड़ देता था और दुष्टात्मा उसे वीराने में भगाए फिरती थी। [PE][PS]
29. सो यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” [PE][PS] उसने कहा, “सेना।” (क्योंकि उसमें बहुत सी दुष्टात्माएँ समाई थीं।)
30. वे यीशु से तर्क-वितर्क के साथ विनती कर रही थीं कि वह उन्हें गहन गर्त में जाने की आज्ञा न दे।
31. अब देखो, तभी वहाँ पहाड़ी पर सुअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। दुष्टात्माओं ने उससे विनती की कि वह उन्हें सुअरों में जाने दे। सो उसने उन्हें अनुमति दे दी।
32. इस पर वे दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से बाहर निकलीं और उन सुअरों में प्रवेश कर गयीं। और सुअरों का वह झुण्ड नीचे उस ढलुआ तट से लुढ़कते पुढ़कते दौड़ता हुआ झील में जा गिरा और डूब गया। [PE][PS]
33. झुण्ड के रखवाले, जो कुछ हुआ था, उसे देखकर वहाँ से भाग खड़े हुए। और उन्होंने इसका समाचार नगर और गाँव में जा सुनाया।
34. फिर वहाँ के लोग जो कुछ घटा था उसे देखने बाहर आये। वे यीशु से मिले। और उन्होंने उस व्यक्ति को जिसमें से दुष्टात्माएँ निकली थीं यीशु के चरणों में बैठे पाया। उस व्यक्ति ने कपड़े पहने हुए थे और उसका दिमाग एकदम सही था। इससे वे सभी डर गये।
35. जिन्होंने देखा, उन्होंने लोगों को बताया कि दुष्टात्मा-ग्रस्त व्यक्ति कैसे ठीक हुआ।
36. इस पर गिरासेन प्रदेश के सभी निवासियों ने उससे प्रार्थना की कि वह वहाँ से चला जाये क्योंकि वे सभी बहुत डर गये थे। [PE][PS] सो यीशु नाव में आया और लौट पड़ा।
37. किन्तु जिस व्यक्ति में से दुष्टात्माएँ निकली थीं, वह यीशु से अपने को साथ ले चलने की विनती कर रहा था। इस पर यीशु ने उसे यह कहते हुए लौटा दिया कि,
38. “घर जा और जो कुछ परमेश्वर ने तेरे लिये किया है, उसे बता।” [PE][PS] सो वह लौटकर, यीशु ने उसके लिये जो कुछ किया था, उसे सारे नगर में सबसे कहता फिरा। [PE][PS]
39. {रोगी स्त्री का अच्छा होना और मृत लड़की को जीवनदान} (मत्ती 9:18-26; मरकुस 5:21-43) [PS] अब देखो जब यीशु लौटा तो जन समूह ने उसका स्वागत किया क्योंकि वे सभी उसकी प्रतीक्षा में थे।
40. तभी याईर नाम का एक व्यक्ति वहाँ आया। वह वहाँ के यहूदी आराधनालय का मुखिया था। वह यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उससे अपने घर चलने की विनती करने लगा।
41. क्योंकि उसके बारह साल की एक एकलौती बेटी थी, वह मरने वाली थी। [PE][PS] सो यीशु जब जा रहा था तो भीड़ उसे कुचले जा रही थी।
42. वहीं एक स्त्री थी जिसे बारह साल से खून बह रहा था। जो कुछ उसके पास था, उसने चिकित्सकों पर खर्च कर दिया था, पर वह किसी से भी ठीक नहीं हो पायी थी। [*उसने … था कुछ यूनानी प्रतियों में यह शब्द नहीं है।]
43. वह उसके पीछे आयी और उसने उसके चोगे की कन्नी छू ली। और उसका खून जाना तुरन्त रुक गया।
44. तब यीशु ने पूछा, “वह कौन है जिसने मुझे छुआ है?” [PE][PS] जब सभी मना कर रहे थे, पतरस बोला, “स्वामी, सभी लोगों ने तो तुझे घेर रखा है और वे सभी तो तुझ पर गिर पड़ रहे है।” [PE][PS]
45. किन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मुझे लगा है जैसे मुझ में से शक्ति निकली हो।”
46. उस स्त्री ने जब देखा कि वह छुप नहीं पायी है, तो वह काँपती हुई आयी और यीशु के सामने गिर पड़ी। वहाँ सभी लोगों के सामने उसने बताया कि उसने उसे क्यों छुआ था। और कैसे तत्काल वह अच्छी हो गयी।
47. इस पर यीशु ने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है। चैन से जा।” [PE][PS]
48. वह अभी बोल ही रहा था कि यहूदी आराधनालय के मुखिया के घर से वहाँ कोई आया और बोला, “तेरी बेटी मर चुकी है। सो गुरु को अब और कष्ट मत दे।” [PE][PS]
49. यीशु ने यह सुन लिया। सो वह उससे बोला, “डर मत! विश्वास रख। वह बच जायेगी।” [PE][PS]
50. जब यीशु उस घर में आया तो उसने अपने साथ पतरस, यूहन्ना, याकूब और बच्ची के माता-पिता को छोड़ कर किसी और को अपने साथ भीतर नहीं आने दिया।
51. सभी लोग उस लड़की के लिये रो रहे थे और विलाप कर रहे थे। यीशु बोला, “रोना बंद करो। यह मरी नहीं है, बल्कि सो रही है।” [PE][PS]
52. इस पर लोगों ने उसकी हँसी उड़ाई। क्योंकि वे जानते थे कि लड़की मर चुकी है।
53. किन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ा और पुकार कर कहा, “बच्ची, खड़ी हो जा!”
54. उसकी आत्मा लौट आयी, और वह तुरंत उठ बैठी। यीशु ने आज्ञा दी, “इसे कुछ खाने को दिया जाये।”
55. इस पर लड़की के माता पिता को बहुत अचरज हुआ किन्तु यीशु ने उन्हें आदेश दिया कि जो घटना घटी है, उसे वे किसी को न बतायें। [PE]
56.

Notes

No Verse Added

Total 24 Chapters, Current Chapter 8 of Total Chapters 24
लूका 8:40
1. {यीशु अपने शिष्यों के साथ} PS इसके बाद ऐसा हुआ कि यीशु परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार लोगों को सुनाते हुए नगर-नगर और गाँव-गाँव घूमने लगा। उसके बारहों शिष्य भी उसके साथ हुआ करते थे।
2. उसके साथ कुछ स्त्रियाँ भी थीं जिन्हें उसने रोगों और दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाया था। इनमें मरियम मग्दलीनी नाम की एक स्त्री थी जिसे सात दुष्टात्माओं से छुटकारा मिला था।
3. (हेरोदेस के प्रबन्ध अधिकारी) खुज़ा की पत्नी योअन्ना भी इन्हीं में थी। साथ ही सुसन्नाह तथा और बहुत सी स्त्रियाँ भी थीं। ये स्त्रियाँ अपने ही साधनों से यीशु और उसके शिष्यों की सेवा का प्रबन्ध करती थीं। PEPS
4. {बीज बोने की दृष्टान्त कथा} (मत्ती 13:1-17; मरकुस 4:1-12) PS जब नगर-नगर से आकर लोगों की बड़ी भीड़ उसके यहाँ एकत्र हो रही थी, तो उसने उनसे एक दृष्टान्त कथा कही: PEPS
5. “एक किसान अपने बीज बोने निकला। जब उसने बीज बोये तो कुछ बीज राह किनारे जा पड़े और पैरों तले रूँद गये। और चिड़ियाँए उन्हें चुग गयीं।
6. कुछ बीज चट्टानी धरती पर गिरे, वे जब उगे तो नमी के बिना मुरझा गये।
7. कुछ बीज कँटीली झाड़ियों में गिरे। काँटों की बढ़वार भी उनके साथ हुई और काँटों ने उन्हें दबोच लिया।
8. और कुछ बीज अच्छी धरती पर गिरे। वे उगे और उन्होंने सौ गुनी अधिक फसल दी।” PEPS ये बातें बताते हुए उसने पुकार कर कहा, “जिसके पास सुनने को कान हैं, वह सुन ले।” PEPS
9. उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त कथा का क्या अर्थ है?” PEPS
10. सो उसने बताया, “परमेश्वर के राज्य के रहस्य जानने की सुविधा तुम्हें दी गयी है किन्तु दूसरों को यह रहस्य दृष्टान्त कथाओं के द्वारा दिये गये हैं ताकि: ‘वे देखते हुए भी
देख पायें
और सुनते हुए भी
समझ पाये।’ यशायाह 6:9 PEPS
11. {बीज बोने के दृष्टान्त की व्याख्या} (मत्ती 13:18-23; मरकुस 4:13-20) PS “इस दृष्टान्त कथा का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है।
12. वे बीज जो राह किनारे गिरे थे, वे वह व्यक्ति हैं जो जब वचन को सुनते हैं, तो शैतान आता है और वचन को उनके मन से निकाल ले जाता है ताकि वे विश्वास कर पायें और उनका उद्धार हो सके।
13. वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे उनका अर्थ है, वह व्यक्ति जो जब वचन को सुनते हैं तो उसे आनन्द के साथ अपनाते हैं। किन्तु उनके भीतर उसकी जड़ नहीं जम पाती। वे कुछ समय के लिये विश्वास करते हैं किन्तु परीक्षा की घड़ी में वे डिग जाते हैं। PEPS
14. “और जो बीज काँटो में गिरे, उसका अर्थ है, वह व्यक्ति जो वचन को सुनते हैं किन्तु जब वह अपनी राह चलने लगते हैं तो चिन्ताएँ धन-दौलत और जीवन के भोग विलास उसे दबा देते हैं, जिससे उन पर कभी पकी फसल नहीं उतरती।
15. और अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है वे व्यक्ति जो अच्छे और सच्चे मन से जब वचन को सुनते हैं तो उसे धारण भी करते हैं। फिर अपने धैर्य के साथ वह उत्तम फल देते हैं। PEPS
16. {अपने सत्य का उपयोग करो} (मत्ती 4:21-25) PS “कोई भी किसी दिये को बर्तन के नीचे ढक देने को नहीं जलाता। या उसे बिस्तर के नीचे नहीं रखता। बल्कि वह उसे दीवट पर रखता है ताकि जो भीतर आयें प्रकाश देख सकें।
17. कोई गुप्त बात है जो जानी नहीं जाएगी और कुछ भी ऐसा छिपा नहीं है जो प्रकाश में नहीं आयेगा।
18. इसलिये ध्यान से सुनो क्योंकि जिसके पास है उसे और भी दिया जायेगा और जिसके पास नहीं है, उससे जो उसके पास दिखाई देता है, वह भी ले लिया जायेगा।” PEPS
19. {यीशु के अनुयायी ही उसका सच्चा परिवार है} (मत्ती 12:46-50; मरकुस 3:31-35) PS तभी यीशु की माँ और उसके भाई उसके पास आये किन्तु वे भीड़ के कारण उसके निकट नहीं जा सके।
20. इसलिये यीशु से यह कहा गया, “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं। वे तुझसे मिलना चाहते हैं।” PEPS
21. किन्तु यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माँ और मेरे भाई तो ये हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं।” PEPS
22. {शिष्यों को यीशु की शक्ति का दर्शन} (मत्ती 8:23-27; मरकुस 4:35-41) PS तभी एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने शिष्यों के साथ एक नाव पर चढ़ा और उनसे बोला, “आओ, झील के उस पार चलें।” सो उन्होंने पाल खोल दी।
23. जब वे नाव चला रहे थे, यीशु सो गया। झील पर आँधी-तूफान उतर आया। उनकी नाव में पानी भरने लगा। वे ख़तरे में पड़ गये।
24. सो वे उसके पास आये और उसे जगाकर कहने लगे, “स्वामी! स्वामी! हम डूब रहे हैं।” PEPS फिर वह खड़ा हुआ और उसने आँधी तथा लहरों को डाँटा। वे थम गयीं और वहाँ शान्ति छा गयी।
25. फिर उसने उनसे पूछा, “कहाँ गया तुम्हारा विश्वास?” PEPS किन्तु वे डरे हुए थे और अचरज में पड़ें थे। वे आपस में बोले, “आखिर यह है कौन जो हवा और पानी दोनों को आज्ञा देता है और वे उसे मानते हैं?” PEPS
26. {दुष्टात्मा से छुटकारा} (मत्ती 8:28-34; मरकुस 5:1-20) PS फिर वे गिरासेनियों के प्रदेश में पहुँचे जो गलील झील के सामने परले पार था।
27. जैसे ही वह किनारे पर उतरा, नगर का एक व्यक्ति उसे मिला। उसमें दुष्टात्माएँ समाई हुई थीं। एक लम्बे समय से उसने तो कपड़े पहने थे और ही वह घर में रहा था, बल्कि वह कब्रों में रहता था। PEPS
28. (28-29) जब उसने यीशु को देखा तो चिल्लाते हुए उसके सामने गिर कर ऊँचे स्वर में बोला, “हे परम प्रधान (परमेश्वर) के पुत्र यीशु, तू मुझसे क्या चाहता है? मैं विनती करता हूँ मुझे पीड़ा मत पहुँचा।” उसने उस दुष्टात्मा को उस व्यक्ति में से बाहर निकलने का आदेश दिया था, क्योंकि उस दुष्टात्मा ने उस मनुष्य को बहुत बार पकड़ा था। ऐसे अवसरों पर उसे बेड़ियों से बाँध कर पहरे में रखा जाता था। किन्तु वह सदा ज़ंजीरों को तोड़ देता था और दुष्टात्मा उसे वीराने में भगाए फिरती थी। PEPS
29. सो यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” PEPS उसने कहा, “सेना।” (क्योंकि उसमें बहुत सी दुष्टात्माएँ समाई थीं।)
30. वे यीशु से तर्क-वितर्क के साथ विनती कर रही थीं कि वह उन्हें गहन गर्त में जाने की आज्ञा दे।
31. अब देखो, तभी वहाँ पहाड़ी पर सुअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। दुष्टात्माओं ने उससे विनती की कि वह उन्हें सुअरों में जाने दे। सो उसने उन्हें अनुमति दे दी।
32. इस पर वे दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से बाहर निकलीं और उन सुअरों में प्रवेश कर गयीं। और सुअरों का वह झुण्ड नीचे उस ढलुआ तट से लुढ़कते पुढ़कते दौड़ता हुआ झील में जा गिरा और डूब गया। PEPS
33. झुण्ड के रखवाले, जो कुछ हुआ था, उसे देखकर वहाँ से भाग खड़े हुए। और उन्होंने इसका समाचार नगर और गाँव में जा सुनाया।
34. फिर वहाँ के लोग जो कुछ घटा था उसे देखने बाहर आये। वे यीशु से मिले। और उन्होंने उस व्यक्ति को जिसमें से दुष्टात्माएँ निकली थीं यीशु के चरणों में बैठे पाया। उस व्यक्ति ने कपड़े पहने हुए थे और उसका दिमाग एकदम सही था। इससे वे सभी डर गये।
35. जिन्होंने देखा, उन्होंने लोगों को बताया कि दुष्टात्मा-ग्रस्त व्यक्ति कैसे ठीक हुआ।
36. इस पर गिरासेन प्रदेश के सभी निवासियों ने उससे प्रार्थना की कि वह वहाँ से चला जाये क्योंकि वे सभी बहुत डर गये थे। PEPS सो यीशु नाव में आया और लौट पड़ा।
37. किन्तु जिस व्यक्ति में से दुष्टात्माएँ निकली थीं, वह यीशु से अपने को साथ ले चलने की विनती कर रहा था। इस पर यीशु ने उसे यह कहते हुए लौटा दिया कि,
38. “घर जा और जो कुछ परमेश्वर ने तेरे लिये किया है, उसे बता।” PEPS सो वह लौटकर, यीशु ने उसके लिये जो कुछ किया था, उसे सारे नगर में सबसे कहता फिरा। PEPS
39. {रोगी स्त्री का अच्छा होना और मृत लड़की को जीवनदान} (मत्ती 9:18-26; मरकुस 5:21-43) PS अब देखो जब यीशु लौटा तो जन समूह ने उसका स्वागत किया क्योंकि वे सभी उसकी प्रतीक्षा में थे।
40. तभी याईर नाम का एक व्यक्ति वहाँ आया। वह वहाँ के यहूदी आराधनालय का मुखिया था। वह यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उससे अपने घर चलने की विनती करने लगा।
41. क्योंकि उसके बारह साल की एक एकलौती बेटी थी, वह मरने वाली थी। PEPS सो यीशु जब जा रहा था तो भीड़ उसे कुचले जा रही थी।
42. वहीं एक स्त्री थी जिसे बारह साल से खून बह रहा था। जो कुछ उसके पास था, उसने चिकित्सकों पर खर्च कर दिया था, पर वह किसी से भी ठीक नहीं हो पायी थी। *उसने था कुछ यूनानी प्रतियों में यह शब्द नहीं है।
43. वह उसके पीछे आयी और उसने उसके चोगे की कन्नी छू ली। और उसका खून जाना तुरन्त रुक गया।
44. तब यीशु ने पूछा, “वह कौन है जिसने मुझे छुआ है?” PEPS जब सभी मना कर रहे थे, पतरस बोला, “स्वामी, सभी लोगों ने तो तुझे घेर रखा है और वे सभी तो तुझ पर गिर पड़ रहे है।” PEPS
45. किन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मुझे लगा है जैसे मुझ में से शक्ति निकली हो।”
46. उस स्त्री ने जब देखा कि वह छुप नहीं पायी है, तो वह काँपती हुई आयी और यीशु के सामने गिर पड़ी। वहाँ सभी लोगों के सामने उसने बताया कि उसने उसे क्यों छुआ था। और कैसे तत्काल वह अच्छी हो गयी।
47. इस पर यीशु ने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है। चैन से जा।” PEPS
48. वह अभी बोल ही रहा था कि यहूदी आराधनालय के मुखिया के घर से वहाँ कोई आया और बोला, “तेरी बेटी मर चुकी है। सो गुरु को अब और कष्ट मत दे।” PEPS
49. यीशु ने यह सुन लिया। सो वह उससे बोला, “डर मत! विश्वास रख। वह बच जायेगी।” PEPS
50. जब यीशु उस घर में आया तो उसने अपने साथ पतरस, यूहन्ना, याकूब और बच्ची के माता-पिता को छोड़ कर किसी और को अपने साथ भीतर नहीं आने दिया।
51. सभी लोग उस लड़की के लिये रो रहे थे और विलाप कर रहे थे। यीशु बोला, “रोना बंद करो। यह मरी नहीं है, बल्कि सो रही है।” PEPS
52. इस पर लोगों ने उसकी हँसी उड़ाई। क्योंकि वे जानते थे कि लड़की मर चुकी है।
53. किन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ा और पुकार कर कहा, “बच्ची, खड़ी हो जा!”
54. उसकी आत्मा लौट आयी, और वह तुरंत उठ बैठी। यीशु ने आज्ञा दी, “इसे कुछ खाने को दिया जाये।”
55. इस पर लड़की के माता पिता को बहुत अचरज हुआ किन्तु यीशु ने उन्हें आदेश दिया कि जो घटना घटी है, उसे वे किसी को बतायें। PE
Total 24 Chapters, Current Chapter 8 of Total Chapters 24
×

Alert

×

hindi Letters Keypad References