पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
मत्ती
1. “दूसरों पर दोष लगाने की आदत मत डालो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाये।
2. क्योंकि तुम्हारा न्याय उसी फैसले के आधार पर होगा, जो फैसला तुमने दूसरों का न्याय करते हुए दिया था। और परमेश्वर तुम्हें उसी नाप से नापेगा जिससे तुमने दूसरों को नापा हैं।
3. तू अपने भाई बंदों की आँख का तिनका तक क्यों देखता हैं? जबकि तुझे अपनी आँख का लट्ठा भी दिखाई नहीं देता।
4. जब तेरी अपनी आँख में लट्ठा समाया हैं तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता हैं कि तु मुझे तेरी आँख का तिनका निकालने दे।
5. ओ कपटी! पहले तू अपनी आँख से लट्ठा निकाल, फिर तू ठीक तरह से देख पायेगा और अपने भाई की आँख का तिनका निकाल पायेगा।
6. “कुत्तों को पवित्र वस्तु मत दो। और सुअरों के आगे अपने मोती मत बिखेरो। नहीं तो वे सुअर उन्हें पैरों तले रौंद डालेंगे। और कुत्ते पलट कर तुम्हारी भी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
7. “परमेश्वर से माँगते रहो, तुम्हें दिया जायेगा। खोजते रहो तुम्हें प्राप्त होगा खटखटाते रहो तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जायेगा।
8. क्योंकि हर कोई जो माँगता ही रहता हैं, प्राप्त करता है। जो खोजता हैं पा जाता हैं और जो खटखटाता ही रहता हैं उस के लिए द्वार खोल दिया जाएगा।
9. “तुममें से ऐसा पिता कौन सा है जिसका पुत्र उससे रोटी माँगे और वह उसे पत्थर दे?
10. या जब वह उससे मछली माँगे तो वह उसे साँप दे दे। बताओ क्या कोई देगा? ऐसा कोई नहीं करेगा।
11. इसलिये यदि चाहे तुम बुरे ही क्यों न हो, जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छे उपहार कैसे दिये जाते हैं। सो निश्चय ही स्वर्ग में स्थित तुम्हारा परम पिता माँगने वालों को अच्छी वस्तुएँ देगा।
12. “इसलिये जैसा व्यवहार अपने लिये तुम दूसरे लोगों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार तुम भी उनके साथ करो।’ व्यवस्था के विधि और भविष्यवक्ताओं के लिखे का यही सार हैं।
13. “सूक्ष्म मार्ग से प्रवेश करो। यह मैं तुम्हें इसलिये बता रहा हूँ क्योंकि चौड़ा द्वार और बड़ा मार्ग तो विनाश की ओर ले जाता हैं। बहुत से लोग हैं जो उस पर चल रहे हैं।
14. किन्तु कितना सँकरा हैं वह द्वार और कितनी सीमित है वह राह जो जीवन की ओर जाती हैं। बहुत थोड़े से हैं वे लोग जो उसे पा रहे हैं।
15. “झूठे भविष्यवक्ताओं से बचो! वे तुम्हारे पास सरल भेड़ों के रूप में आते हैं किन्तु भीतर से वे खूँखार भेड़िये होते हैं।
16. तुम उन्हें उन के कर्मो के परिणामों से पहचानोगे। कोई कँटीली झाड़ी से न तो अंगूर इकट्ठे कर पाता है और न ही गोखरु से अंजीर।
17. ऐसे ही अच्छे पेड़ पर अच्छे फल लगते हैं किन्तु बुरे पेड़ पर तो बुरे फल ही लगते हैं।
18. एक उत्तम वृक्ष बुरे फल नहीं उपजाता और न ही कोई बुरा पेड़ उत्तम फल पैदा कर सकता हैं।
19. हर वह पेड़ जिस पर अच्छे फल नहीं लगते हैं, काट कर आग में झोंक दिया जाता हैं।
20. इसलिए मैं तुम लोगों से फिर दोहरा कर कहता हूँ कि उन लोगों को तुम उनके कर्मों के परिणामों से पहचानोगे।
21. “प्रभु-प्रभु कहने वाला हर व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में नहीं जा पायेगा बल्कि वह जो स्वर्ग में स्थित मेरे परम पिता की इच्छा पर चलता हैं वही उसमें प्रवेश पायेगा।
22. उस महान दिन बहुत से मुझसे पूछेंगे ‘प्रभु! हे प्रभु! क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की? क्या तेरे नाम से हमने दुष्टात्माएँ नहीं निकालीं और क्या हमने तेरे नाम से बहुत से आश्चर्य कर्म नहीं किये?
23. तब मैं उनसे खुल कर कहूँगा कि मैं तुम्हें नहीं जानता, ‘अरे कुकर्मियों, यहाँ से भाग जाओ।’
24. “इसलिये जो कोई भी मेरे इन शब्दों को सुनता हैं और इन पर चलता हैं उसकी तुलना उस बुद्धिमान मनुष्य से होगी जिसने अपना मकान चट्टान पर बनाया,
25. वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियों चलीं और वे सब उस मकान से टकराये पर वह गिरा नहीं। क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर रखी गयी थी।
26. किन्तु वह जो मेरे शब्दों को सुनता हैं पर उन पर आचरण नहीं करता, उस मूर्ख मनुष्य के समान हैं जिसने अपना घर रेत पर बनाया।
27. वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस मकान से टकराई, जिससे वह मकान पूरी तरह ढह गया।”
28. परिणाम यह हुआ कि जब यीशु ने ये बातें कह कर पूरी कीं, तो उसके उपदेशों पर भीड़ के लोगों को बड़ा अचरज हुआ।
29. क्योंकि वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।

Notes

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मत्ती 7:29
1. “दूसरों पर दोष लगाने की आदत मत डालो ताकि तुम पर भी दोष लगाया जाये।
2. क्योंकि तुम्हारा न्याय उसी फैसले के आधार पर होगा, जो फैसला तुमने दूसरों का न्याय करते हुए दिया था। और परमेश्वर तुम्हें उसी नाप से नापेगा जिससे तुमने दूसरों को नापा हैं।
3. तू अपने भाई बंदों की आँख का तिनका तक क्यों देखता हैं? जबकि तुझे अपनी आँख का लट्ठा भी दिखाई नहीं देता।
4. जब तेरी अपनी आँख में लट्ठा समाया हैं तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता हैं कि तु मुझे तेरी आँख का तिनका निकालने दे।
5. कपटी! पहले तू अपनी आँख से लट्ठा निकाल, फिर तू ठीक तरह से देख पायेगा और अपने भाई की आँख का तिनका निकाल पायेगा।
6. “कुत्तों को पवित्र वस्तु मत दो। और सुअरों के आगे अपने मोती मत बिखेरो। नहीं तो वे सुअर उन्हें पैरों तले रौंद डालेंगे। और कुत्ते पलट कर तुम्हारी भी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
7. “परमेश्वर से माँगते रहो, तुम्हें दिया जायेगा। खोजते रहो तुम्हें प्राप्त होगा खटखटाते रहो तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जायेगा।
8. क्योंकि हर कोई जो माँगता ही रहता हैं, प्राप्त करता है। जो खोजता हैं पा जाता हैं और जो खटखटाता ही रहता हैं उस के लिए द्वार खोल दिया जाएगा।
9. “तुममें से ऐसा पिता कौन सा है जिसका पुत्र उससे रोटी माँगे और वह उसे पत्थर दे?
10. या जब वह उससे मछली माँगे तो वह उसे साँप दे दे। बताओ क्या कोई देगा? ऐसा कोई नहीं करेगा।
11. इसलिये यदि चाहे तुम बुरे ही क्यों हो, जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छे उपहार कैसे दिये जाते हैं। सो निश्चय ही स्वर्ग में स्थित तुम्हारा परम पिता माँगने वालों को अच्छी वस्तुएँ देगा।
12. “इसलिये जैसा व्यवहार अपने लिये तुम दूसरे लोगों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार तुम भी उनके साथ करो।’ व्यवस्था के विधि और भविष्यवक्ताओं के लिखे का यही सार हैं।
13. “सूक्ष्म मार्ग से प्रवेश करो। यह मैं तुम्हें इसलिये बता रहा हूँ क्योंकि चौड़ा द्वार और बड़ा मार्ग तो विनाश की ओर ले जाता हैं। बहुत से लोग हैं जो उस पर चल रहे हैं।
14. किन्तु कितना सँकरा हैं वह द्वार और कितनी सीमित है वह राह जो जीवन की ओर जाती हैं। बहुत थोड़े से हैं वे लोग जो उसे पा रहे हैं।
15. “झूठे भविष्यवक्ताओं से बचो! वे तुम्हारे पास सरल भेड़ों के रूप में आते हैं किन्तु भीतर से वे खूँखार भेड़िये होते हैं।
16. तुम उन्हें उन के कर्मो के परिणामों से पहचानोगे। कोई कँटीली झाड़ी से तो अंगूर इकट्ठे कर पाता है और ही गोखरु से अंजीर।
17. ऐसे ही अच्छे पेड़ पर अच्छे फल लगते हैं किन्तु बुरे पेड़ पर तो बुरे फल ही लगते हैं।
18. एक उत्तम वृक्ष बुरे फल नहीं उपजाता और ही कोई बुरा पेड़ उत्तम फल पैदा कर सकता हैं।
19. हर वह पेड़ जिस पर अच्छे फल नहीं लगते हैं, काट कर आग में झोंक दिया जाता हैं।
20. इसलिए मैं तुम लोगों से फिर दोहरा कर कहता हूँ कि उन लोगों को तुम उनके कर्मों के परिणामों से पहचानोगे।
21. “प्रभु-प्रभु कहने वाला हर व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में नहीं जा पायेगा बल्कि वह जो स्वर्ग में स्थित मेरे परम पिता की इच्छा पर चलता हैं वही उसमें प्रवेश पायेगा।
22. उस महान दिन बहुत से मुझसे पूछेंगे ‘प्रभु! हे प्रभु! क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की? क्या तेरे नाम से हमने दुष्टात्माएँ नहीं निकालीं और क्या हमने तेरे नाम से बहुत से आश्चर्य कर्म नहीं किये?
23. तब मैं उनसे खुल कर कहूँगा कि मैं तुम्हें नहीं जानता, ‘अरे कुकर्मियों, यहाँ से भाग जाओ।’
24. “इसलिये जो कोई भी मेरे इन शब्दों को सुनता हैं और इन पर चलता हैं उसकी तुलना उस बुद्धिमान मनुष्य से होगी जिसने अपना मकान चट्टान पर बनाया,
25. वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियों चलीं और वे सब उस मकान से टकराये पर वह गिरा नहीं। क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर रखी गयी थी।
26. किन्तु वह जो मेरे शब्दों को सुनता हैं पर उन पर आचरण नहीं करता, उस मूर्ख मनुष्य के समान हैं जिसने अपना घर रेत पर बनाया।
27. वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस मकान से टकराई, जिससे वह मकान पूरी तरह ढह गया।”
28. परिणाम यह हुआ कि जब यीशु ने ये बातें कह कर पूरी कीं, तो उसके उपदेशों पर भीड़ के लोगों को बड़ा अचरज हुआ।
29. क्योंकि वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।
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