पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
नीतिवचन
1. {सुलैमान की सूक्तियाँ} [PS] एक बुद्धिमान पुत्र अपने पिता को आनन्द देता है [PE][PS] किन्तु एक मूर्ख पुत्र, माता का दुःख होता है। [PE][PS]
2. बुराई से कमाये हुए धन के कोष सदा व्यर्थ रहते हैं! जबकि धार्मिकता मौत से छुड़ाती है। [PE][PS]
3. किसी नेक जन को यहोवा भूखा नहीं रहने देगा, किन्तु दुष्ट की लालसा पर पानी फेर देता है। [PE][PS]
4. सुस्त हाथ मनुष्य को दरिद्र कर देते हैं, किन्तु परिश्रमी हाथ सम्पत्ति लाते हैं। [PE][PS]
5. गर्मियों में जो उपज को बटोर रखता है, वही पुत्र बुद्धिमान है; किन्तु जो कटनी के समय में सोता है वह पुत्र शर्मनाक होता है। [PE][PS]
6. धर्मी जनों के सिर आशीषों का मुकुट होता किन्तु दुष्ट के मुख से हिंसा ऊफन पड़ती। [PE][PS]
7. धर्मी का वरदान स्मरण मात्र बन जाये; किन्तु दुष्ट का नाम दुर्गन्ध देगा। [PE][PS]
8. वह आज्ञा मानेगा जिसका मन विवेकशील है, जबकि बकवासी मूर्ख नष्ट हो जायेगा। [PE][PS]
9. विवेकशील व्यक्ति सुरक्षित रहता है, किन्तु टेढ़ी चाल वाले का भण्डा फूटेगा। [PE][PS]
10. जो बुरे इरादे से आँख से इशारा करे, उसको तो उससे दुःख ही मिलेगा। और बकवासी मूर्ख नष्ट हो जायेगा। [PE][PS]
11. धर्मी का मुख तो जीवन का स्रोत होता है, किन्तु दुष्ट के मुख से हिंसा ऊफन पड़ती है। [PE][PS]
12. दुष्ट के मुख से घृणा भेद—भावों को उत्तेजित करती है जबकि प्रेम सब दोषों को ढक लेता है। [PE][PS]
13. बुद्धि का निवास सदा समझदार होठों पर होता है, किन्तु जिसमें भले बुरे का बोध नहीं होता, उसके पीठ पर डंडा होता है। [PE][PS]
14. बुद्धिमान लोग, ज्ञान का संचय करते रहते, किन्तु मूर्ख की वाणी विपत्ति को बुलाती है। [PE][PS]
15. धनिक का धन, उनका मज़बूत किला होता, दीन की दीनता पर उसका विनाश है। [PE][PS]
16. नेक की कमाई, उन्हें जीवन देती है, किन्तु दुष्ट की आय दण्ड दिलवाती। [PE][PS]
17. ऐसे अनुशासन से जो जन सीखता है, जीवन के मार्ग की राह वह दिखाता है। किन्तु जो सुधार की उपेक्षा करता है ऐसा मनुष्य तो भटकाया करता है। [PE][PS]
18. जो मनुष्य बैर पर परदा डाले रखता है, वह मिथ्यावादी है और वह जो निन्दा फैलाता है, मूढ़ है। [PE][PS]
19. अधिक बोलने से, कभी पाप नहीं दूर होता किन्तु जो अपनी जुबान को लगाम देता है, वही बुद्धिमान है। [PE][PS]
20. धर्मी की वाणी विशुद्ध चाँदी है, किन्तु दुष्ट के हृदय का कोई नहीं मोल। [PE][PS]
21. धर्मी के मुख से अनेक का भला होता, किन्तु मूर्ख समझ के अभाव में मिट जाते। [PE][PS]
22. यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है, उसके साथ वह कोई दुःख नहीं जोड़ता। [PE][PS]
23. बुरे आचार में मूढ़ को सुख मिलता, किन्तु एक समझदार विवेक में सुख लेता है। [PE][PS]
24. जिससे मूढ़ भयभीत होता, वही उस पर आ पड़ेगी, धर्मी की कामना तो पूरी की जायेगी। [PE][PS]
25. आंधी जब गुज़रती है, दुष्ट उड़ जाते हैं, किन्तु धर्मी जन तो, निरन्तर टिके रहते हैं। [PE][PS]
26. काम पर जो किसी आलसी को भेजता है, वह बन जाता है जैसे अम्ल सिरका दाँतों को खटाता है, और धुंआ आँखों को तड़पाता दुःख देता है। [PE][PS]
27. यहोवा का भय आयु का आयाम बढ़ाता है, किन्तु दुष्ट की आयु तो घटती रहती है। [PE][PS]
28. धर्मी का भविष्य आनन्द—उल्लास है। किन्तु दुष्ट की आशा तो व्यर्थ रह जाती है। [PE][PS]
29. धर्मी जन के लिये यहोवा का मार्ग शरण स्थल है किन्तु जो दुराचारी है, उनका यह विनाश है। [PE][PS]
30. धर्मी जन को कभी उखाड़ा न जायेगा, किन्तु दुष्ट धरती पर टिक नहीं पायेगा। [PE][PS]
31. धर्मी के मुख से बुद्धि प्रवाहित होती है, किन्तु कुटिल जीभ को तो काट फेंका जायेगा। [PE][PS]
32. धर्मी के अधर जो उचित है जानते हैं, किन्तु दुष्ट का मुख बस कुटिल बातें बोलता। [PE]

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नीतिवचन 10:4
1. {सुलैमान की सूक्तियाँ} PS एक बुद्धिमान पुत्र अपने पिता को आनन्द देता है PEPS किन्तु एक मूर्ख पुत्र, माता का दुःख होता है। PEPS
2. बुराई से कमाये हुए धन के कोष सदा व्यर्थ रहते हैं! जबकि धार्मिकता मौत से छुड़ाती है। PEPS
3. किसी नेक जन को यहोवा भूखा नहीं रहने देगा, किन्तु दुष्ट की लालसा पर पानी फेर देता है। PEPS
4. सुस्त हाथ मनुष्य को दरिद्र कर देते हैं, किन्तु परिश्रमी हाथ सम्पत्ति लाते हैं। PEPS
5. गर्मियों में जो उपज को बटोर रखता है, वही पुत्र बुद्धिमान है; किन्तु जो कटनी के समय में सोता है वह पुत्र शर्मनाक होता है। PEPS
6. धर्मी जनों के सिर आशीषों का मुकुट होता किन्तु दुष्ट के मुख से हिंसा ऊफन पड़ती। PEPS
7. धर्मी का वरदान स्मरण मात्र बन जाये; किन्तु दुष्ट का नाम दुर्गन्ध देगा। PEPS
8. वह आज्ञा मानेगा जिसका मन विवेकशील है, जबकि बकवासी मूर्ख नष्ट हो जायेगा। PEPS
9. विवेकशील व्यक्ति सुरक्षित रहता है, किन्तु टेढ़ी चाल वाले का भण्डा फूटेगा। PEPS
10. जो बुरे इरादे से आँख से इशारा करे, उसको तो उससे दुःख ही मिलेगा। और बकवासी मूर्ख नष्ट हो जायेगा। PEPS
11. धर्मी का मुख तो जीवन का स्रोत होता है, किन्तु दुष्ट के मुख से हिंसा ऊफन पड़ती है। PEPS
12. दुष्ट के मुख से घृणा भेद—भावों को उत्तेजित करती है जबकि प्रेम सब दोषों को ढक लेता है। PEPS
13. बुद्धि का निवास सदा समझदार होठों पर होता है, किन्तु जिसमें भले बुरे का बोध नहीं होता, उसके पीठ पर डंडा होता है। PEPS
14. बुद्धिमान लोग, ज्ञान का संचय करते रहते, किन्तु मूर्ख की वाणी विपत्ति को बुलाती है। PEPS
15. धनिक का धन, उनका मज़बूत किला होता, दीन की दीनता पर उसका विनाश है। PEPS
16. नेक की कमाई, उन्हें जीवन देती है, किन्तु दुष्ट की आय दण्ड दिलवाती। PEPS
17. ऐसे अनुशासन से जो जन सीखता है, जीवन के मार्ग की राह वह दिखाता है। किन्तु जो सुधार की उपेक्षा करता है ऐसा मनुष्य तो भटकाया करता है। PEPS
18. जो मनुष्य बैर पर परदा डाले रखता है, वह मिथ्यावादी है और वह जो निन्दा फैलाता है, मूढ़ है। PEPS
19. अधिक बोलने से, कभी पाप नहीं दूर होता किन्तु जो अपनी जुबान को लगाम देता है, वही बुद्धिमान है। PEPS
20. धर्मी की वाणी विशुद्ध चाँदी है, किन्तु दुष्ट के हृदय का कोई नहीं मोल। PEPS
21. धर्मी के मुख से अनेक का भला होता, किन्तु मूर्ख समझ के अभाव में मिट जाते। PEPS
22. यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है, उसके साथ वह कोई दुःख नहीं जोड़ता। PEPS
23. बुरे आचार में मूढ़ को सुख मिलता, किन्तु एक समझदार विवेक में सुख लेता है। PEPS
24. जिससे मूढ़ भयभीत होता, वही उस पर पड़ेगी, धर्मी की कामना तो पूरी की जायेगी। PEPS
25. आंधी जब गुज़रती है, दुष्ट उड़ जाते हैं, किन्तु धर्मी जन तो, निरन्तर टिके रहते हैं। PEPS
26. काम पर जो किसी आलसी को भेजता है, वह बन जाता है जैसे अम्ल सिरका दाँतों को खटाता है, और धुंआ आँखों को तड़पाता दुःख देता है। PEPS
27. यहोवा का भय आयु का आयाम बढ़ाता है, किन्तु दुष्ट की आयु तो घटती रहती है। PEPS
28. धर्मी का भविष्य आनन्द—उल्लास है। किन्तु दुष्ट की आशा तो व्यर्थ रह जाती है। PEPS
29. धर्मी जन के लिये यहोवा का मार्ग शरण स्थल है किन्तु जो दुराचारी है, उनका यह विनाश है। PEPS
30. धर्मी जन को कभी उखाड़ा जायेगा, किन्तु दुष्ट धरती पर टिक नहीं पायेगा। PEPS
31. धर्मी के मुख से बुद्धि प्रवाहित होती है, किन्तु कुटिल जीभ को तो काट फेंका जायेगा। PEPS
32. धर्मी के अधर जो उचित है जानते हैं, किन्तु दुष्ट का मुख बस कुटिल बातें बोलता। PE
Total 31 Chapters, Current Chapter 10 of Total Chapters 31
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