पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
नीतिवचन
1. दुष्ट जन से तू कभी मत होड़कर। उनकी संगत की तू चाहत मत कर।
2. क्योंकि उनके मन हिंसा की योजनाएँ रचते और उनके होंठ दुःख देने की बातें करते हैं। — 20 — [PS]
3. बुद्धि से घर का निर्माण हो जाता है, और समझ—बूझ से ही वह स्थिर रहता है।
4. ज्ञान के द्वारा उसके कक्ष अद्भुत और सुन्दर खजानों से भर जाते हैं। — 21 — [PS]
5. बुद्धिमान जन में महाशक्ति होती है और ज्ञानी पुरुष शक्ति को बढ़ाता है।
6. युद्ध लड़ने के लिये परामर्श चाहिये और विजय पाने को बहुत से सलाहकार। — 22 — [PS]
7. मूर्ख बुद्धि को नहीं समझता। लोग जब महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करते हैं तो मूर्ख समझ नहीं पाता। — 23 — [PS]
8. षड्यन्त्रकारी वही कहलाता है, जो बुरी योजनाएँ बनाता रहता है।
9. मूर्ख की योजनायें पाप बन जाती है और निन्दक जन को लोग छोड़ जाते हैं। — 24 — [PS]
10. यदि तू विपत्ति में हिम्मत छोड़ बैठेगा, तो तेरी शक्ति कितनी थोड़ी सी है। — 25 — [PS]
11. यदि किसी की हत्या का कोई षड्यन्त्र रचे तो उसको बचाने का तुझे यत्न करना चाहिये।
12. तू ऐसा नहीं कह सकता, “मुझे इससे क्या लेना।” यहोवा जानता है सब कुछ और यह भी वह जानता है किस लिये तू काम करता है यहोवा तुझको देखता रहता है। तेरे भीतर की जानता है और वह तुझको यहोवा तेरे कर्मो का प्रतिदान देगा। — 26 — [PS]
13. हे मेरे पुत्र, तू शहद खाया कर क्योंकि यह उत्तम है। यह तुझे मीठा लगेगा।
14. इसी तरह यह भी तू जान ले कि आत्मा को तेरी बुद्धि मीठी लगेगी, यदि तू इसे प्राप्त करे तो उसमें निहित है तेरी भविष्य की आशा और वह तेरी आशा कभी भंग नहीं होगी। — 27 — [PS]
15. धर्मी मनुष्य के घर के विरोध में लुटेरे के समान घात में मत बैठ और उसके निवास पर मत छापा मार।
16. क्योंकि एक नेक चाहे सात बार गिरे, फिर भी उठ बैठेगा। किन्तु दुष्ट जन विपत्ति में डूब जाता है। — 28 — [PS]
17. शत्रु के पतन पर आनन्द मत कर। जब उसे ठोकर लगे, तो अपना मन प्रसन्न मत होने दे।
18. यदि तू ऐसा करेगा, तो यहोवा देखेगा और वह यहोवा की आँखों में आ जायेगा एवं वह तुझसे प्रसन्न नहीं रहेगा। फिर सम्भव है कि वह तेरे उस शत्रु की ही सहायता करे। — 29 — [PS]
19. तू दुर्जनों के साथ कभी ईर्ष्या मत रख, कहीं तुझे उनके संग विवाद न करना पड़ जाये।
20. क्योंकि दुष्ट जन का कोई भविष्य नहीं है। दुष्ट जन का दीप बुझा दिया जायेगा। — 30 — [PS]
21. हे मेरे पुत्र, यहोवा का भय मान और विद्रोहियों के साथ कभी मत मिल।
22. क्योंकि वे दोनों अचानक नाश ढाह देंगे उन पर; और कौन जानता है कितनी भयानक विपत्तियाँ वे भेज दें। [PS]
23. {कुछ अन्य सुक्तियाँ} [PS] ये सुक्तियाँ भी बुद्धिमान जनों की है: न्याय में पक्षपात करना उचित नहीं है।
24. ऐसा जन जो अपराधी से कहता है, “तू निरपराध है” लोग उसे कोसेंगे और जातियाँ त्याग देंगी।
25. किन्तु जो अपराधी को दण्ड देंगे, सभी जन उनसे हर्षित रहेंगे और उनपर आर्शीवाद की वर्षा होगी। [PE][PS]
26. निर्मल उत्तर से मन प्रसन्न होता है, जैसे अधरों पर चुम्बन अंकित कर दे। [PE][PS]
27. पहले बाहर खेतों का काम पूरा कर लो इसके बाद में तुम अपना घर बनाओ। [PE][PS]
28. अपने पड़ोसी के विरुद्ध बिना किसी कारण साक्षी मत दो। अथवा तुम अपनी वाणी का किसी को छलने में मत प्रयोग करो।
29. मत कहे ऐसा, “उसके साथ मैं भी ठीक वैसा ही करूँगा, मेरे साथ जैसा उसने किया है; मैं उसके साथ जैसे को तैसा करूँगा।” [PE][PS]
30. मैं आलसी के खेत से होते हुए गुजरा जो अंगूर के बाग के निकट था जो किसी ऐसे मनुष्य का था, जिसको उचित—अनुचित का बोध नहीं था।
31. कंटीली झाड़ियाँ निकल आयीं थी हर कहीं खरपतवार से खेत ढक गया था। और बाड़ पत्थर की खंडहर हो रही थी।
32. जो कुछ मैंने देखा, उस पर मन लगा कर सोचने लगा। जो कुछ मैंने देखा, उससे मुझको एक सीख मिली।
33. जरा एक झपकी, और थोड़ी सी नींद, थोड़ा सा सुस्ताना, धर कर हाथों पर हाथ। (दरिद्रता को बुलाना है)
34. वह तुझ पर टूट पड़ेगी जैसे कोई लुटेरा टूट पड़ता है, और अभाव तुझ पर टूट पड़ेगा जैसे कोई शस्त्र धारी टूट पड़ता है। [PE]

Notes

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नीतिवचन 24:23
1. दुष्ट जन से तू कभी मत होड़कर। उनकी संगत की तू चाहत मत कर।
2. क्योंकि उनके मन हिंसा की योजनाएँ रचते और उनके होंठ दुःख देने की बातें करते हैं। 20 PS
3. बुद्धि से घर का निर्माण हो जाता है, और समझ—बूझ से ही वह स्थिर रहता है।
4. ज्ञान के द्वारा उसके कक्ष अद्भुत और सुन्दर खजानों से भर जाते हैं। 21 PS
5. बुद्धिमान जन में महाशक्ति होती है और ज्ञानी पुरुष शक्ति को बढ़ाता है।
6. युद्ध लड़ने के लिये परामर्श चाहिये और विजय पाने को बहुत से सलाहकार। 22 PS
7. मूर्ख बुद्धि को नहीं समझता। लोग जब महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करते हैं तो मूर्ख समझ नहीं पाता। 23 PS
8. षड्यन्त्रकारी वही कहलाता है, जो बुरी योजनाएँ बनाता रहता है।
9. मूर्ख की योजनायें पाप बन जाती है और निन्दक जन को लोग छोड़ जाते हैं। 24 PS
10. यदि तू विपत्ति में हिम्मत छोड़ बैठेगा, तो तेरी शक्ति कितनी थोड़ी सी है। 25 PS
11. यदि किसी की हत्या का कोई षड्यन्त्र रचे तो उसको बचाने का तुझे यत्न करना चाहिये।
12. तू ऐसा नहीं कह सकता, “मुझे इससे क्या लेना।” यहोवा जानता है सब कुछ और यह भी वह जानता है किस लिये तू काम करता है यहोवा तुझको देखता रहता है। तेरे भीतर की जानता है और वह तुझको यहोवा तेरे कर्मो का प्रतिदान देगा। 26 PS
13. हे मेरे पुत्र, तू शहद खाया कर क्योंकि यह उत्तम है। यह तुझे मीठा लगेगा।
14. इसी तरह यह भी तू जान ले कि आत्मा को तेरी बुद्धि मीठी लगेगी, यदि तू इसे प्राप्त करे तो उसमें निहित है तेरी भविष्य की आशा और वह तेरी आशा कभी भंग नहीं होगी। 27 PS
15. धर्मी मनुष्य के घर के विरोध में लुटेरे के समान घात में मत बैठ और उसके निवास पर मत छापा मार।
16. क्योंकि एक नेक चाहे सात बार गिरे, फिर भी उठ बैठेगा। किन्तु दुष्ट जन विपत्ति में डूब जाता है। 28 PS
17. शत्रु के पतन पर आनन्द मत कर। जब उसे ठोकर लगे, तो अपना मन प्रसन्न मत होने दे।
18. यदि तू ऐसा करेगा, तो यहोवा देखेगा और वह यहोवा की आँखों में जायेगा एवं वह तुझसे प्रसन्न नहीं रहेगा। फिर सम्भव है कि वह तेरे उस शत्रु की ही सहायता करे। 29 PS
19. तू दुर्जनों के साथ कभी ईर्ष्या मत रख, कहीं तुझे उनके संग विवाद करना पड़ जाये।
20. क्योंकि दुष्ट जन का कोई भविष्य नहीं है। दुष्ट जन का दीप बुझा दिया जायेगा। 30 PS
21. हे मेरे पुत्र, यहोवा का भय मान और विद्रोहियों के साथ कभी मत मिल।
22. क्योंकि वे दोनों अचानक नाश ढाह देंगे उन पर; और कौन जानता है कितनी भयानक विपत्तियाँ वे भेज दें। PS
23. {कुछ अन्य सुक्तियाँ} PS ये सुक्तियाँ भी बुद्धिमान जनों की है: न्याय में पक्षपात करना उचित नहीं है।
24. ऐसा जन जो अपराधी से कहता है, “तू निरपराध है” लोग उसे कोसेंगे और जातियाँ त्याग देंगी।
25. किन्तु जो अपराधी को दण्ड देंगे, सभी जन उनसे हर्षित रहेंगे और उनपर आर्शीवाद की वर्षा होगी। PEPS
26. निर्मल उत्तर से मन प्रसन्न होता है, जैसे अधरों पर चुम्बन अंकित कर दे। PEPS
27. पहले बाहर खेतों का काम पूरा कर लो इसके बाद में तुम अपना घर बनाओ। PEPS
28. अपने पड़ोसी के विरुद्ध बिना किसी कारण साक्षी मत दो। अथवा तुम अपनी वाणी का किसी को छलने में मत प्रयोग करो।
29. मत कहे ऐसा, “उसके साथ मैं भी ठीक वैसा ही करूँगा, मेरे साथ जैसा उसने किया है; मैं उसके साथ जैसे को तैसा करूँगा।” PEPS
30. मैं आलसी के खेत से होते हुए गुजरा जो अंगूर के बाग के निकट था जो किसी ऐसे मनुष्य का था, जिसको उचित—अनुचित का बोध नहीं था।
31. कंटीली झाड़ियाँ निकल आयीं थी हर कहीं खरपतवार से खेत ढक गया था। और बाड़ पत्थर की खंडहर हो रही थी।
32. जो कुछ मैंने देखा, उस पर मन लगा कर सोचने लगा। जो कुछ मैंने देखा, उससे मुझको एक सीख मिली।
33. जरा एक झपकी, और थोड़ी सी नींद, थोड़ा सा सुस्ताना, धर कर हाथों पर हाथ। (दरिद्रता को बुलाना है)
34. वह तुझ पर टूट पड़ेगी जैसे कोई लुटेरा टूट पड़ता है, और अभाव तुझ पर टूट पड़ेगा जैसे कोई शस्त्र धारी टूट पड़ता है। PE
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