पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
नीतिवचन
1. ये सूक्ति आगूर की हैं, जो याके क पूत्र था। यह पुरुष ईतीएल और उक्काल से: कहता है
2. मैं महाबुद्धिहीन हूँ। मुझमें मनुष्य की समझदारी बिल्कुल नहीं है।
3. मैंने बुद्धि नहीं पायी और मेरे पास उस पवित्र का ज्ञान नहीं है।
4. स्वर्ग से कोई नहीं आया और वहाँ के रहस्य ला सका पवन को मुट्ठी में कोई नहीं बाँध सका। कोई नहीं बाँध सका पानी को कपड़े में और कोई नहीं जान सका धरती का छोर। और यदि कोई इन बातों को कर सका है, तो मुझसे कहो, उसका नाम और उसके पुत्र का नाम मुझको बता, यदि तू उसको जानता हो।
5. वचन परमेश्वर का दोष रहित होता है, जो उसकी शरण में जाते हैं वह उनकी ढाल होता है।
6. तू उसके वचनों में कुछ घट-बढ़ मत कर। नहीं तो वह तुझे डांटे फटकारेगा और झूठा ठहराएगा।
7. हे यहोवा, मैं तुझसे दो बातें माँगता हूँ: जब तक मैं जीऊँ, तू मुझको देता रह।
8. तू मुझसे मिथ्या को, व्यर्थ को दूर रख। मुझे दरिद्र मत कर और न ही मुझको धनी बना। मुझको बस प्रतिदिन खाने को देता रह।
9. कहीं ऐसा न हो जाये बहुत कुछ पा करके मैं तुझको त्याग दूँ; और कहने लगूँ “कौन परमेश्वर है” और यदि निर्धन बनूँ और चोरी करूँ, और इस प्रकार मैं अपने परमेश्वर के नाम को लजाऊँ।
10. तू स्वामी से सेवक की निन्दा मत कर नहीं तो तुझको, वह अभिशाप देगा और तुझे उसकी भरपाई करनी होगी।
11. ऐसे भी होते हैं जो अपने पिता को कोसते है, और अपनी माता को धन्य नहीं कहते हैं।
12. होते हैं ऐसे भी, जो अपनी आँखों में तो पवित्र बने रहते किन्तु अपवित्रता से अपनी नहीं धुले होते हैं।
13. ऐसे भी होते हैं जिनकी आँखें सदा तनी ही रहती, और जिनकी आँखों में घृणा भरी रहती है।
14. ऐसे भी होते हैं जिनके दाँत कटार हैं और जिनके जबड़ों में खंजर जड़े रहते हैं जिससे वे इस धरती के गरीबों को हड़प जायें, और जो मानवों में से अभावग्रस्त हैं उनको वे निगल लें।
15. जोंक की दो पुत्र होती हैं वे सदा चिल्लाती रहती, “देओ, देओ।” तीन वस्तु ऐसी हैं जो तृप्त कभी न होती और चार ऐसी जो कभी बस नहीं कहती।
16. कब्र, बांझ-कोख और धरती जो जल से कभी तृप्त नहीं होती और अग्नि जो कभी ‘बस’ नहीं कहती।
17. जो आँख अपने ही पिता पर हँसती है, और माँ की बात मानने से घृणा करती है, घाठी के कौवे उसे नोंच लेंगे और उसको गिद्ध खा जायेंगे।
18. तीन बातें ऐसी हैं जो मुझे अति विचित्र लगती, और चौथी ऐसी जिसे में समझ नहीं पाता।
19. आकाश में उड़ते हुए गरूड़ का मार्ग, और लीक नाग की जो चट्टान पर चला; और महासागर पर चलते जहाज़ की राह और उस पुरुष का मार्ग जो किसी कामिनी के प्रेम में बंधा हो।
20. चरित्रहीन स्त्री की ऐसी गति होती है, वह खाती रहती और अपना मुख पोंछ लेती और कहा करती है, मैंने तो कुछ भी बुरा नहीं किया।
21. तीन बातें ऐसी हैं जिनसे धरा काँपती है और एक चौथी है जिसे वह सह नहीं कर पाती।
22. दास जो बन जाता राजा, मूर्ख जो सम्पन्न,
23. ब्याह किसी ऐसी से जिससे प्रेम नहीं हो; और ऐसी दासी जो स्वामिनी का स्थान ले ले।
24. चार जीव धरती के, जो यद्यपि बहुत क्षुद्र हैं किन्तु उनमें अत्याधिक विवेक भरा हुआ है।
25. चीटियाँ जिनमें शक्ति नहीं होती है फिर भी वे गर्मी में अपना खाना बटोरती हैं;
26. बिज्जू दुर्बल प्राणी हैं फिर भी वे खड़ी चट्टानों में घर बनाते;
27. टिड्डियों का कोई भी राजा नहीं होता है फिर भी वे पंक्ति बाँध कर एक साथ आगे बढ़ती हैं।
28. और वह छिपकली जो बस केवल हाथ से ही पकड़ी जा सकती है, फिर भी वह राजा के महलों में पायी जाती।
29. तीन प्राणी ऐसे हैं जो लगते महत्वपूर्ण जब वे चलते हैं, दरअसल वे चार हैं:
30. एक सिंह, जो सभी पशुओं में शक्तिशाली होता है, जो कभी किसी से नहीं डरता;
31. गर्वीली चाल से चलता हुआ मुर्गा और एक बकरा और वह राजा जो अपनी सेना के मध्य है।
32. तूने यदि कभी कोई मूर्खता का आचरण किया हो, और अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बना हो अथवा तूने कभी कुचक्र रचा हो तो तू अपना मुँह अपने हाथों से ढक ले।
33. जैसे मथने से दूध मक्खन निकालता है और नाक मरोड़ने से लहू निकल आता है वैसे ही क्रोध जगाना झगड़ों का भड़काना होता है।

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नीतिवचन 30:16
1. ये सूक्ति आगूर की हैं, जो याके पूत्र था। यह पुरुष ईतीएल और उक्काल से: कहता है
2. मैं महाबुद्धिहीन हूँ। मुझमें मनुष्य की समझदारी बिल्कुल नहीं है।
3. मैंने बुद्धि नहीं पायी और मेरे पास उस पवित्र का ज्ञान नहीं है।
4. स्वर्ग से कोई नहीं आया और वहाँ के रहस्य ला सका पवन को मुट्ठी में कोई नहीं बाँध सका। कोई नहीं बाँध सका पानी को कपड़े में और कोई नहीं जान सका धरती का छोर। और यदि कोई इन बातों को कर सका है, तो मुझसे कहो, उसका नाम और उसके पुत्र का नाम मुझको बता, यदि तू उसको जानता हो।
5. वचन परमेश्वर का दोष रहित होता है, जो उसकी शरण में जाते हैं वह उनकी ढाल होता है।
6. तू उसके वचनों में कुछ घट-बढ़ मत कर। नहीं तो वह तुझे डांटे फटकारेगा और झूठा ठहराएगा।
7. हे यहोवा, मैं तुझसे दो बातें माँगता हूँ: जब तक मैं जीऊँ, तू मुझको देता रह।
8. तू मुझसे मिथ्या को, व्यर्थ को दूर रख। मुझे दरिद्र मत कर और ही मुझको धनी बना। मुझको बस प्रतिदिन खाने को देता रह।
9. कहीं ऐसा हो जाये बहुत कुछ पा करके मैं तुझको त्याग दूँ; और कहने लगूँ “कौन परमेश्वर है” और यदि निर्धन बनूँ और चोरी करूँ, और इस प्रकार मैं अपने परमेश्वर के नाम को लजाऊँ।
10. तू स्वामी से सेवक की निन्दा मत कर नहीं तो तुझको, वह अभिशाप देगा और तुझे उसकी भरपाई करनी होगी।
11. ऐसे भी होते हैं जो अपने पिता को कोसते है, और अपनी माता को धन्य नहीं कहते हैं।
12. होते हैं ऐसे भी, जो अपनी आँखों में तो पवित्र बने रहते किन्तु अपवित्रता से अपनी नहीं धुले होते हैं।
13. ऐसे भी होते हैं जिनकी आँखें सदा तनी ही रहती, और जिनकी आँखों में घृणा भरी रहती है।
14. ऐसे भी होते हैं जिनके दाँत कटार हैं और जिनके जबड़ों में खंजर जड़े रहते हैं जिससे वे इस धरती के गरीबों को हड़प जायें, और जो मानवों में से अभावग्रस्त हैं उनको वे निगल लें।
15. जोंक की दो पुत्र होती हैं वे सदा चिल्लाती रहती, “देओ, देओ।” तीन वस्तु ऐसी हैं जो तृप्त कभी होती और चार ऐसी जो कभी बस नहीं कहती।
16. कब्र, बांझ-कोख और धरती जो जल से कभी तृप्त नहीं होती और अग्नि जो कभी ‘बस’ नहीं कहती।
17. जो आँख अपने ही पिता पर हँसती है, और माँ की बात मानने से घृणा करती है, घाठी के कौवे उसे नोंच लेंगे और उसको गिद्ध खा जायेंगे।
18. तीन बातें ऐसी हैं जो मुझे अति विचित्र लगती, और चौथी ऐसी जिसे में समझ नहीं पाता।
19. आकाश में उड़ते हुए गरूड़ का मार्ग, और लीक नाग की जो चट्टान पर चला; और महासागर पर चलते जहाज़ की राह और उस पुरुष का मार्ग जो किसी कामिनी के प्रेम में बंधा हो।
20. चरित्रहीन स्त्री की ऐसी गति होती है, वह खाती रहती और अपना मुख पोंछ लेती और कहा करती है, मैंने तो कुछ भी बुरा नहीं किया।
21. तीन बातें ऐसी हैं जिनसे धरा काँपती है और एक चौथी है जिसे वह सह नहीं कर पाती।
22. दास जो बन जाता राजा, मूर्ख जो सम्पन्न,
23. ब्याह किसी ऐसी से जिससे प्रेम नहीं हो; और ऐसी दासी जो स्वामिनी का स्थान ले ले।
24. चार जीव धरती के, जो यद्यपि बहुत क्षुद्र हैं किन्तु उनमें अत्याधिक विवेक भरा हुआ है।
25. चीटियाँ जिनमें शक्ति नहीं होती है फिर भी वे गर्मी में अपना खाना बटोरती हैं;
26. बिज्जू दुर्बल प्राणी हैं फिर भी वे खड़ी चट्टानों में घर बनाते;
27. टिड्डियों का कोई भी राजा नहीं होता है फिर भी वे पंक्ति बाँध कर एक साथ आगे बढ़ती हैं।
28. और वह छिपकली जो बस केवल हाथ से ही पकड़ी जा सकती है, फिर भी वह राजा के महलों में पायी जाती।
29. तीन प्राणी ऐसे हैं जो लगते महत्वपूर्ण जब वे चलते हैं, दरअसल वे चार हैं:
30. एक सिंह, जो सभी पशुओं में शक्तिशाली होता है, जो कभी किसी से नहीं डरता;
31. गर्वीली चाल से चलता हुआ मुर्गा और एक बकरा और वह राजा जो अपनी सेना के मध्य है।
32. तूने यदि कभी कोई मूर्खता का आचरण किया हो, और अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बना हो अथवा तूने कभी कुचक्र रचा हो तो तू अपना मुँह अपने हाथों से ढक ले।
33. जैसे मथने से दूध मक्खन निकालता है और नाक मरोड़ने से लहू निकल आता है वैसे ही क्रोध जगाना झगड़ों का भड़काना होता है।
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