पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
नीतिवचन
1. {विवेक का महत्व} [PS] हे मेरे पुत्रों, एक पिता की शिक्षा को सुनों उस पर ध्यान दो और तुम समझ बूझ पा लो!
2. मैं तुम्हें गहन—गम्भीर ज्ञान देता हूँ। मेरी इस शिक्षा का त्याग तुम मत करना। [PE][PS]
3. जब मैं अपने पिता के घर एक बालक था और माता का अति कोमल एक मात्र शिशु था,
4. मुझे सिखाते हुये उसने कहा था—मेरे वचन अपने पूर्ण मन से थामे रह। मेरे आदेश पाल तो तू जीवन रहेगा।
5. तू बुद्धि प्राप्त कर और समझ बूझ प्राप्त कर! मेरे वचन मत भूल और उनसे मत डिग।
6. बुद्धि मत त्याग वह तेरी रक्षा करेगी, उससे प्रेम कर वह तेरा ध्यान रखेगी। [PE][PS]
7. “बुद्धि का आरम्भ ये है: तू बुद्धि प्राप्त कर, चाहे सब कुछ दे कर भी तू उसे प्राप्त कर! तू समझबूझ प्राप्त कर।
8. तू उसे महत्व दे, वह तुझे ऊँचा उठायेगी, उसे तू गले लगा ले वह तेरा मान बढ़ायेगी।
9. वह तेरे सिर पर शोभा की माला धरेगी और वह तुझे एक वैभव का मुकुट देगी।” [PE][PS]
10. सुन, हे मेरे पुत्र। जो मैं कहता हूँ तू उसे ग्रहण कर! तू अनगिनत सालों साल जीवित रहेगा।
11. मैं तुझे बुद्धि के मार्ग की राह दिखाता हूँ, और सरल पथों पर अगुवाई करता हूँ।
12. जब तू आगे बढ़ेगा तेरे चरण बाधा नहीं पायेंगे, और जब तू दौड़ेगा ठोकर नहीं खायेगा।
13. शिक्षा को थामे रह, उसे तू मत छोड़। इसकी रखवाली कर। यही तेरा जीवन है। [PE][PS]
14. तू दुष्टों के पथ पर चरण मत रख या पापी जनों की राह पर मत चल।
15. तू इससे बचता रह, इसपर कदम मत बढ़ा। इससे तू मुड़ जा। तू अपनी राह चल।
16. वे बुरे काम किये बिना सो नहीं पाते। वे नींद खो बैठते हैं जब तक किसी को नहीं गिराते।
17. वे तो बस सदा नीचता की रोटी खाते और हिंसा का दाखमधु पीते हैं। [PE][PS]
18. किन्तु धर्मी का पथ वैसा होता है जैसी प्रात: किरण होती है। जो दिन की परिपूर्णता तक अपने प्रकाश में बढ़ती ही चली जाती है।
19. किन्तु पापी का मार्ग सघन, अन्धकार जैसा होता है। वे नहीं जान पाते कि किससे टकराते हैं। [PE][PS]
20. हे मेरे पुत्र, जो कुछ मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दे। मेरे वचनों को तू कान लगा कर सुन।
21. उन्हें अपनी दृष्टि से ओझल मत होने दे। अपने हृदय पर तू उन्हें धरे रह।
22. क्योंकि जो उन्हें पाते हैं उनके लिये वे जीवन बन जाते हैं और वे एक पुरुष की समपूर्ण काया का स्वास्थ्य बनते हैं।
23. सबसे बड़ी बात यह है कि तू अपने विचारों के बारे में सावधान रह। क्योंकि तेरे विचार जीवन को नियंत्रण में रखते हैं। [PE][PS]
24. तू अपने मुख से कुटिलता को दूर रख। तू अपने होठों से भ्रष्ट बात दूर रख।
25. तेरी आँखों के आगे सदा सीधा मार्ग रहे और तेरी चकचकी आगे ही लगी रहें।
26. अपने पैरों के लिये तू सीधा मार्ग बना। बस तू उन राहों पर चल जो निश्चित सुरक्षित हैं।
27. दाहिने को अथवा बायें को मत डिग। तू अपने चरणों को बुराई से रोके रह। [PE]

Notes

No Verse Added

Total 31 Chapters, Current Chapter 4 of Total Chapters 31
नीतिवचन 4:33
1. {विवेक का महत्व} PS हे मेरे पुत्रों, एक पिता की शिक्षा को सुनों उस पर ध्यान दो और तुम समझ बूझ पा लो!
2. मैं तुम्हें गहन—गम्भीर ज्ञान देता हूँ। मेरी इस शिक्षा का त्याग तुम मत करना। PEPS
3. जब मैं अपने पिता के घर एक बालक था और माता का अति कोमल एक मात्र शिशु था,
4. मुझे सिखाते हुये उसने कहा था—मेरे वचन अपने पूर्ण मन से थामे रह। मेरे आदेश पाल तो तू जीवन रहेगा।
5. तू बुद्धि प्राप्त कर और समझ बूझ प्राप्त कर! मेरे वचन मत भूल और उनसे मत डिग।
6. बुद्धि मत त्याग वह तेरी रक्षा करेगी, उससे प्रेम कर वह तेरा ध्यान रखेगी। PEPS
7. “बुद्धि का आरम्भ ये है: तू बुद्धि प्राप्त कर, चाहे सब कुछ दे कर भी तू उसे प्राप्त कर! तू समझबूझ प्राप्त कर।
8. तू उसे महत्व दे, वह तुझे ऊँचा उठायेगी, उसे तू गले लगा ले वह तेरा मान बढ़ायेगी।
9. वह तेरे सिर पर शोभा की माला धरेगी और वह तुझे एक वैभव का मुकुट देगी।” PEPS
10. सुन, हे मेरे पुत्र। जो मैं कहता हूँ तू उसे ग्रहण कर! तू अनगिनत सालों साल जीवित रहेगा।
11. मैं तुझे बुद्धि के मार्ग की राह दिखाता हूँ, और सरल पथों पर अगुवाई करता हूँ।
12. जब तू आगे बढ़ेगा तेरे चरण बाधा नहीं पायेंगे, और जब तू दौड़ेगा ठोकर नहीं खायेगा।
13. शिक्षा को थामे रह, उसे तू मत छोड़। इसकी रखवाली कर। यही तेरा जीवन है। PEPS
14. तू दुष्टों के पथ पर चरण मत रख या पापी जनों की राह पर मत चल।
15. तू इससे बचता रह, इसपर कदम मत बढ़ा। इससे तू मुड़ जा। तू अपनी राह चल।
16. वे बुरे काम किये बिना सो नहीं पाते। वे नींद खो बैठते हैं जब तक किसी को नहीं गिराते।
17. वे तो बस सदा नीचता की रोटी खाते और हिंसा का दाखमधु पीते हैं। PEPS
18. किन्तु धर्मी का पथ वैसा होता है जैसी प्रात: किरण होती है। जो दिन की परिपूर्णता तक अपने प्रकाश में बढ़ती ही चली जाती है।
19. किन्तु पापी का मार्ग सघन, अन्धकार जैसा होता है। वे नहीं जान पाते कि किससे टकराते हैं। PEPS
20. हे मेरे पुत्र, जो कुछ मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दे। मेरे वचनों को तू कान लगा कर सुन।
21. उन्हें अपनी दृष्टि से ओझल मत होने दे। अपने हृदय पर तू उन्हें धरे रह।
22. क्योंकि जो उन्हें पाते हैं उनके लिये वे जीवन बन जाते हैं और वे एक पुरुष की समपूर्ण काया का स्वास्थ्य बनते हैं।
23. सबसे बड़ी बात यह है कि तू अपने विचारों के बारे में सावधान रह। क्योंकि तेरे विचार जीवन को नियंत्रण में रखते हैं। PEPS
24. तू अपने मुख से कुटिलता को दूर रख। तू अपने होठों से भ्रष्ट बात दूर रख।
25. तेरी आँखों के आगे सदा सीधा मार्ग रहे और तेरी चकचकी आगे ही लगी रहें।
26. अपने पैरों के लिये तू सीधा मार्ग बना। बस तू उन राहों पर चल जो निश्चित सुरक्षित हैं।
27. दाहिने को अथवा बायें को मत डिग। तू अपने चरणों को बुराई से रोके रह। PE
Total 31 Chapters, Current Chapter 4 of Total Chapters 31
×

Alert

×

hindi Letters Keypad References