1. {(भजनसंहिता 107-150) } [QS]यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है। [QE][QS2]उसका प्रेम अमर है। [QE]
2. [QS]हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे। [QE][QS2]हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ। [QE]
3. [QS]यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है। [QE][QS2]उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है। [QE][PBR]
4. [QS]कुछ लोग निर्जन मरूभूमि में भटकते रहे। [QE][QS2]वे लोग ऐसे एक नगर की खोज में थे जहाँ वे रह सकें। [QE][QS2]किन्तु उन्हें कोई ऐसा नगर नहीं मिला। [QE]
5. [QS]वे लोग भूखे थे और प्यासे थे [QE][QS2]और वे दुर्बल होते जा रहे थे। [QE]
6. [QS]ऐसे उस संकट में सहारा पाने को उन्होंने यहोवा को पुकारा। [QE][QS2]यहोवा ने उन सभी लोगों को उनके संकट से बचा लिया। [QE]
7. [QS]परमेश्वर उन्हें सीधा उन नगरों में ले गया जहाँ वे बसेंगे। [QE]
8. [QS]परमेश्वर का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये [QE][QS2]और उन अद्भुत कर्मों के लिये जिन्हें वह अपने लोगों के लिये करता है। [QE]
9. [QS]प्यासी आत्मा को परमेश्वर सन्तुष्ट करता है। [QE][QS2]परमेश्वर उत्तम वस्तुओं से भूखी आत्मा का पेट भरता है। [QE][PBR]
10. [QS]परमेश्वर के कुछ भक्त बन्दी बने ऐसे बन्दीगृह में, वे तालों में बंद थे, जिसमें घना अंधकार था। [QE]
11. [QS]क्यों क्योंकि उन लोगों ने उन बातों के विरूद्ध लड़ाईयाँ की थी जो परमेश्वर ने कहीं थी, [QE][QS2]परम परमेश्वर की सम्मति को उन्होंने सुनने से नकारा था। [QE]
12. [QS]परमेश्वर ने उनके कर्मो के लिये जो उन्होंने किये थे उन लोगों के जीवन को कठिन बनाया। [QE][QS2]उन्होंने ठोकर खाई और वे गिर पड़े, और उन्हें सहारा देने कोई भी नहीं मिला। [QE]
13. [QS]वे व्यक्ति संकट में थे, इसलिए सहारा पाने को यहोवा को पुकारा। [QE][QS2]यहोवा ने उनके संकटों से उनकी रक्षा की। [QE]
14. [QS]परमेश्वर ने उनको उनके अंधेरे कारागारों से उबार लिया। [QE][QS2]परमेश्वर ने वे रस्से काटे जिनसे उनको बाँधा गया था। [QE]
15. [QS]यहोवा का धन्यवाद करो। [QE][QS2]उसके प्रेम के लिये और उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है उसका धन्यवाद करो। [QE]
16. [QS]परमेश्वर हमारे शत्रुओं को हराने में हमें सहायता देता है। उनके काँसें के द्वारों को परमेश्वर तोड़ गिरा सकता है। [QE][QS2]परमेश्वर उनके द्वारों पर लगी लोहे कि आगलें छिन्न—भिन्न कर सकता है। [QE][PBR]
17. [QS]कुछ लोग अपने अपराधों [QE][QS2]और अपने पापों से जड़मति बने। [QE]
18. [QS]उन लोगों ने खाना छोड़ दिया [QE][QS2]और वे मरे हुए से हो गये। [QE]
19. [QS]वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा। [QE][QS2]यहोवा ने उन्हें उनके संकटों से बचा लिया। [QE]
20. [QS]परमेश्वर ने आदेश दिया और लोगों को चँगा किया। [QE][QS2]इस प्रकार वे व्यक्ति कब्रों से बचाये गये। [QE]
21. [QS]उसके प्रेम के लिये यहोवा का धन्यवाद करो उसके वे अद्भुत कामों के लिये उसका धन्यवाद करो [QE][QS2]जिन्हें वह लोगों के लिये करता है। [QE]
22. [QS]यहोवा को धन्यवाद देने बलि अर्पित करो, सभी कार्मो को जो उसने किये हैं। [QE][QS2]यहोवा ने जिनको किया है, उन बातों को आनन्द के साथ बखानो। [QE][PBR]
23. [QS]कुछ लोग अपने काम करने को अपनी नावों से समुद्र पार कर गये। [QE]
24. [QS]उन लोगों ने ऐसी बातों को देखा है जिनको यहोवा कर सकता है। [QE][QS2]उन्होंने उन अद्भुत बातों को देखा है जिन्हें यहोवा ने सागर पर किया है। [QE]
25. [QS]परमेश्वर ने आदेश दिया, फिर एक तीव्र पवन तभी चलने लगी। [QE][QS2]बड़ी से बड़ी लहरे आकार लेने लगी। [QE]
26. [QS]लहरे इतनी ऊपर उठीं जितना आकाश हो [QE][QS2]तूफान इतना भयानक था कि लोग भयभीत हो गये। [QE]
[QS2]27. लोग लड़खड़ा रहे थे, गिरे जा रहे थे जैसे नशे में धुत हो। [QE][QS2]खिवैया उनकी बुद्धि जैसे व्यर्थ हो गयी हो। [QE]
28. [QS]वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा। [QE][QS2]तब यहोवा ने उनको संकटों से बचा लिया। [QE]
29. [QS]परमेश्वर ने तूफान को रोका [QE][QS2]और लहरें शांत हो गयी। [QE]
30. [QS]खिवैया प्रसन्न थे कि सागर शांत हुआ था। [QE][QS2]परमेश्वर उनको उसी सुरक्षित स्थान पर ले गया जहाँ वे जाना चाहते थे। [QE]
31. [QS]यहोवा का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये धन्यवाद करो [QE][QS2]उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है। [QE]
32. [QS]महासभा के बीच उसका गुणगान करो। [QE][QS2]जब बुजुर्ग नेता आपस में मिलते हों उसकी प्रशंसा करों। [QE][PBR]
33. [QS]परमेश्वर ने नदियाँ मरूभूमि में बदल दीं। [QE][QS2]परमेश्वर ने झरनों के प्रवाह को रोका। [QE]
34. [QS]परमेश्वर ने उपजाऊँ भूमि को व्यर्थ की रेही भूमि में बदल दिया। [QE][QS2]क्यों क्योंकि वहाँ बसे दुष्ट लोगों ने बुरे कर्म किये थे। [QE]
35. [QS]और परमेश्वर ने मरूभूमि को झीलों की धरती में बदला। [QE][QS2]उसने सूखी धरती से जल के स्रोत बहा दिये। [QE]
36. [QS]परमेश्वर भूखे जनों को उस अच्छी धरती पर ले गया [QE][QS2]और उन लोगों ने अपने रहने को वहाँ एक नगर बसाया। [QE]
37. [QS]फिर उन लोगों ने अपने खेतों में बीजों को रोप दिया। [QE][QS2]उन्होंने बगीचों में अंगूर रोप दिये, और उन्होंने एक उत्तम फसल पा ली। [QE]
38. [QS]परमेश्वर ने उन लोगों को आशिर्वाद दिया। उनके परिवार फलने फूलने लगे। [QE][QS2]उनके पास बहुत सारे पशु हुए। [QE]
39. [QS]उनके परिवार विनाश और संकट के कारण छोटे थे [QE][QS2]और वे दुर्बल थे। [QE]
40. [QS]परमेश्वर ने उनके प्रमुखों को कुचला और अपमानित किया था। [QE][QS2]परमेश्वर ने उनको पथहीन मरूभूमि में भटकाया। [QE]
41. [QS]किन्तु परमेश्वर ने तभी उन दीन लोगों को उनकी याचना से बचा कर निकाल लिया। [QE][QS2]अब तो उनके घराने बड़े हैं, उतने बड़े जितनी भेड़ों के झुण्ड। [QE]
42. [QS]भले लोग इसको देखते हैं और आनन्दित होते हैं, [QE][QS2]किन्तु कुटिल इसको देखते हैं और नहीं जानते कि वे क्या कहें। [QE]
43. [QS]यदि कोई व्यक्ति विवेकी है तो वह इन बातों को याद रखेगा। [QE][QS2]यदि कोई व्यक्ति विवेकी है तो वह समझेगा कि सचमुच परमेश्वर का प्रेम कैसा है। [QE][PBR]