1. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है। [QBR2] उसका प्रेम अमर है। [QBR]
2. हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे। [QBR2] हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ। [QBR]
3. यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है। [QBR2] उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है।
4. कुछ लोग निर्जन मरूभूमि में भटकते रहे। [QBR2] वे लोग ऐसे एक नगर की खोज में थे जहाँ वे रह सकें। [QBR2] किन्तु उन्हें कोई ऐसा नगर नहीं मिला। [QBR]
5. वे लोग भूखे थे और प्यासे थे [QBR2] और वे दुर्बल होते जा रहे थे। [QBR]
6. ऐसे उस संकट में सहारा पाने को उन्होंने यहोवा को पुकारा। [QBR2] यहोवा ने उन सभी लोगों को उनके संकट से बचा लिया। [QBR]
7. परमेश्वर उन्हें सीधा उन नगरों में ले गया जहाँ वे बसेंगे। [QBR]
8. परमेश्वर का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये [QBR2] और उन अद्भुत कर्मों के लिये जिन्हें वह अपने लोगों के लिये करता है। [QBR]
9. प्यासी आत्मा को परमेश्वर सन्तुष्ट करता है। [QBR2] परमेश्वर उत्तम वस्तुओं से भूखी आत्मा का पेट भरता है।
10. परमेश्वर के कुछ भक्त बन्दी बने ऐसे बन्दीगृह में, वे तालों में बंद थे, जिसमें घना अंधकार था। [QBR]
11. क्यों क्योंकि उन लोगों ने उन बातों के विरूद्ध लड़ाईयाँ की थी जो परमेश्वर ने कहीं थी, [QBR2] परम परमेश्वर की सम्मति को उन्होंने सुनने से नकारा था। [QBR]
12. परमेश्वर ने उनके कर्मो के लिये जो उन्होंने किये थे उन लोगों के जीवन को कठिन बनाया। [QBR2] उन्होंने ठोकर खाई और वे गिर पड़े, और उन्हें सहारा देने कोई भी नहीं मिला। [QBR]
13. वे व्यक्ति संकट में थे, इसलिए सहारा पाने को यहोवा को पुकारा। [QBR2] यहोवा ने उनके संकटों से उनकी रक्षा की। [QBR]
14. परमेश्वर ने उनको उनके अंधेरे कारागारों से उबार लिया। [QBR2] परमेश्वर ने वे रस्से काटे जिनसे उनको बाँधा गया था। [QBR]
15. यहोवा का धन्यवाद करो। [QBR2] उसके प्रेम के लिये और उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है उसका धन्यवाद करो। [QBR]
16. परमेश्वर हमारे शत्रुओं को हराने में हमें सहायता देता है। उनके काँसें के द्वारों को परमेश्वर तोड़ गिरा सकता है। [QBR2] परमेश्वर उनके द्वारों पर लगी लोहे कि आगलें छिन्न—भिन्न कर सकता है।
17. कुछ लोग अपने अपराधों [QBR2] और अपने पापों से जड़मति बने। [QBR]
18. उन लोगों ने खाना छोड़ दिया [QBR2] और वे मरे हुए से हो गये। [QBR]
19. वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा। [QBR2] यहोवा ने उन्हें उनके संकटों से बचा लिया। [QBR]
20. परमेश्वर ने आदेश दिया और लोगों को चँगा किया। [QBR2] इस प्रकार वे व्यक्ति कब्रों से बचाये गये। [QBR]
21. उसके प्रेम के लिये यहोवा का धन्यवाद करो उसके वे अद्भुत कामों के लिये उसका धन्यवाद करो [QBR2] जिन्हें वह लोगों के लिये करता है। [QBR]
22. यहोवा को धन्यवाद देने बलि अर्पित करो, सभी कार्मो को जो उसने किये हैं। [QBR2] यहोवा ने जिनको किया है, उन बातों को आनन्द के साथ बखानो।
23. कुछ लोग अपने काम करने को अपनी नावों से समुद्र पार कर गये। [QBR]
24. उन लोगों ने ऐसी बातों को देखा है जिनको यहोवा कर सकता है। [QBR2] उन्होंने उन अद्भुत बातों को देखा है जिन्हें यहोवा ने सागर पर किया है। [QBR]
25. परमेश्वर ने आदेश दिया, फिर एक तीव्र पवन तभी चलने लगी। [QBR2] बड़ी से बड़ी लहरे आकार लेने लगी। [QBR]
26. लहरे इतनी ऊपर उठीं जितना आकाश हो [QBR2] तूफान इतना भयानक था कि लोग भयभीत हो गये। [QBR2]
27. लोग लड़खड़ा रहे थे, गिरे जा रहे थे जैसे नशे में धुत हो। [QBR2] खिवैया उनकी बुद्धि जैसे व्यर्थ हो गयी हो। [QBR]
28. वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा। [QBR2] तब यहोवा ने उनको संकटों से बचा लिया। [QBR]
29. परमेश्वर ने तूफान को रोका [QBR2] और लहरें शांत हो गयी। [QBR]
30. खिवैया प्रसन्न थे कि सागर शांत हुआ था। [QBR2] परमेश्वर उनको उसी सुरक्षित स्थान पर ले गया जहाँ वे जाना चाहते थे। [QBR]
31. यहोवा का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये धन्यवाद करो [QBR2] उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है। [QBR]
32. महासभा के बीच उसका गुणगान करो। [QBR2] जब बुजुर्ग नेता आपस में मिलते हों उसकी प्रशंसा करों।
33. परमेश्वर ने नदियाँ मरूभूमि में बदल दीं। [QBR2] परमेश्वर ने झरनों के प्रवाह को रोका। [QBR]
34. परमेश्वर ने उपजाऊँ भूमि को व्यर्थ की रेही भूमि में बदल दिया। [QBR2] क्यों क्योंकि वहाँ बसे दुष्ट लोगों ने बुरे कर्म किये थे। [QBR]
35. और परमेश्वर ने मरूभूमि को झीलों की धरती में बदला। [QBR2] उसने सूखी धरती से जल के स्रोत बहा दिये। [QBR]
36. परमेश्वर भूखे जनों को उस अच्छी धरती पर ले गया [QBR2] और उन लोगों ने अपने रहने को वहाँ एक नगर बसाया। [QBR]
37. फिर उन लोगों ने अपने खेतों में बीजों को रोप दिया। [QBR2] उन्होंने बगीचों में अंगूर रोप दिये, और उन्होंने एक उत्तम फसल पा ली। [QBR]
38. परमेश्वर ने उन लोगों को आशिर्वाद दिया। उनके परिवार फलने फूलने लगे। [QBR2] उनके पास बहुत सारे पशु हुए। [QBR]
39. उनके परिवार विनाश और संकट के कारण छोटे थे [QBR2] और वे दुर्बल थे। [QBR]
40. परमेश्वर ने उनके प्रमुखों को कुचला और अपमानित किया था। [QBR2] परमेश्वर ने उनको पथहीन मरूभूमि में भटकाया। [QBR]
41. किन्तु परमेश्वर ने तभी उन दीन लोगों को उनकी याचना से बचा कर निकाल लिया। [QBR2] अब तो उनके घराने बड़े हैं, उतने बड़े जितनी भेड़ों के झुण्ड। [QBR]
42. भले लोग इसको देखते हैं और आनन्दित होते हैं, [QBR2] किन्तु कुटिल इसको देखते हैं और नहीं जानते कि वे क्या कहें। [QBR]
43. यदि कोई व्यक्ति विवेकी है तो वह इन बातों को याद रखेगा। [QBR2] यदि कोई व्यक्ति विवेकी है तो वह समझेगा कि सचमुच परमेश्वर का प्रेम कैसा है। [PE]