2. यहोवा मेरी चट्टान, मेरा गढ़, मेरा शरणस्थल है।” मेरा परमेश्वर मेरी चट्टान है। मैं तेरी शरण मे आया हूँ। उसकी शक्ति मुझको बचाती है। यहोवा ऊँचे पहाड़ों पर मेरा शरणस्थल है।
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4. मेरे शत्रुओं ने मुझे मारने का यत्न किया। मैं चारों ओर मृत्यु की रस्सियों से घिरा हूँ! मुझ को अधर्म की बाढ़ ने भयभीत कर दिया।
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6. मैं घिरा हुआ था और यहोवा को सहायता के लिये पुकारा। मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा। परमेश्वर पवित्र निज मन्दिर में विराजा। उसने मेरी पुकार सुनी और सहायता की।
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7. तब पृथ्वी हिल गई और काँप उठी; और पहाड़ों की नींव कंपित हो कर हिल गई क्योंकि यहोवा अति क्रोधित हुआ था!
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8. परमेश्वर के नथनों से धुँआ निकल पड़ा। परमेश्वर के मुख से ज्वालायें फूट निकली, और उससे चिंगारियाँ छिटकी।
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11. यहोवा ने स्वयं को अँधेरे में छिपा लिया, उसको अम्बर का चँदोबा घिरा था। वह गरजते बादलों के सघन घटा-टोप में छिपा हुआ था।
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13. यहोवा का उद्घोष नाद अम्बर में गूँजा! परम परमेश्वर ने निज वाणी को सुनने दिया! फिर ओले बरसे और बिजलियाँ कौंध उठी।
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15. हे यहोवा, तूने गर्जना की और मुख से आँधी प्रवाहित की। जल पीछे हट कर दबा और समुद्र का जल अतल दिखने लगा, और धरती की नींव तक उधड़ी।
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17. मेरे शत्रु मुझसे कहीं अधिक सशक्त थे। वे मुझसे कहीं अधिक बलशाली थे, और मुझसे बैर रखते थे। सो परमेश्वर ने मेरी रक्षा की।
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21. क्योंकि मैंने यहोवा की आज्ञा पालन किया! अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया।
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24. क्योंकि मैं अबोध हूँ! इसलिये मुझे मेरा पुरस्कार देगा! जैसा परमेश्वर देखता है कि मैंने कोई बुरा नहीं किया, अत:वह मेरे लिये उत्तम चीज़ें करेगा।
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26. हे यहोवा शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता है, और टेढ़ों के साथ तू तिछर्ा बनता है। किन्तु, तू नीच और कुटिल जनों से भी चतुर है।
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27. हे यहोवा, तू नम्र जनों के लिये सहाय है, किन्तु जिनमें अहंकार भरा है उन मनुष्यों को तू बड़ा नहीं बनने देता।
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29. हे यहोवा, तेरी सहायता से, मैं सैनिकों के साथ दौड़ सकता हूँ। तेरी ही सहायता से, मैं शत्रुओं के प्राचीर लाँघ सकता हूँ।
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30. परमेश्वर के विधान पवित्र और उत्तम हैं और यहोवा के शब्द सत्यपूर्ण होते हैं। वह उसको बचाता है जो उसके भरोसे हैं।
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33. परमेश्वर मेरे चरणों को हिरण की सी तीव्र गति देता है। वह मुझे स्थिर बनाता और मुझे चट्टानी शिखरों से गिरने से बचाता है।
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34. हे यहोवा, मुझको सिखा कि युद्ध मैं कैसे लडूँ वह मेरी भुजाओं को शक्ति देता है जिससे मैं काँसे के धनुष की डोरी खींच सकूँ।
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35. हे परमेश्वर, अपनी ढाल से मेरी रक्षा कर। तू मुझको अपनी दाहिनी भुजा से अपनी महान शक्ति प्रदान करके सहारा दे।
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36. हे परमेश्वर, तू मेरे पाँवों को और टखनों को दृढ़ बना ताकि मैं तेजी से बिना लड़खड़ाहट के बढ़ चलूँ।
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38. मैं अपने शत्रुओं को पराजित करुँगा। उनमें से एक भी फिर खड़ा नहीं. होगा। मेरे सभी शत्रु मेरे पाँवों पर गिरेंगे।
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41. जब मेरे बैरियों ने सहायता को पुकारा, उन्हें सहायता देने आगे कोई नहीं आया। यहाँ तक कि उन्होंने यहोवा तक को पुकारा, किन्तु यहोवा से उनको उत्तर न मिला।
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42. मैं अपने शत्रुओं को कूट कूट कर धूल में मिला दूँगा, जिसे पवन उड़ा देती है। मैंने उनको कुचल दिया और मिट्टी में मिला दिया।
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43. मुझे उनसे बचा ले जो मुझसे युद्ध करते हैं। मुझे उन जातियों का मुखिया बना दे, जिनको मैं जानता तक नहीं हूँ ताकि वे मेरी सेवा करेंगे।
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45. वे विदेशी लोग मेरे सामने झुकेंगे क्योंकि वे मुझसे भयभीत होंगे। वे भय से काँपते हुए अपने छिपे स्थानों से बाहर निकल आयेंगे।
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48. यहोवा, तूने मुझे शत्रुओं से छुड़ाया है। तूने मेरी सहायता की ताकि मैं उन लोगों को हरा सकूँ जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए। तूने मुझे कठोर व्यक्तियों से बचाया है।
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49. हे यहोवा, इसी कारण मैं देशों के बीच तेरी स्तुति करता हूँ। इसी कारण मैं तेरे नाम का भजन गाता हूँ।
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50. यहोवा अपने राजा की सहायता बहुत से युद्धों को जीतने में करता है! वह अपना सच्चा प्रेम, अपने चुने हुए राजा पर दिखाता है। वह दाऊद और उसके वंशजों के लिये सदा विश्वास योग्य रहेगा!
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