1. धन्य है वह जन जिसके पाप क्षमा हुए। [QBR2] धन्य है वह जन जिसके पाप धुल गए। [QBR]
2. धन्य है वह जन [QBR2] जिसे यहोवा दोषी न कहे, [QBR2] धन्य है वह जन जो अपने गुप्त पापों को छिपाने का जतन न करे।
3. हे परमेश्वर, मैंने तुझसे बार बार विनती की, [QBR2] किन्तु अपने छिपे पाप तुझको नहीं बताए। [QBR2] जितनी बार मैंने तेरी विनती की, मैं तो और अधिक दुर्बल होता चला गया। [QBR]
4. हे परमेश्वर, तूने मेरा जीवन दिन रात कठिन से कठिनतर बना दिया। [QBR2] मैं उस धरती सा सूख गया हूँ जो ग्रीष्म ताप से सूख गई है।
5. किन्तु फिर मैंने यहोवा के समक्ष अपने सभी पापों को मानने का निश्चय कर लिया है। हे यहोवा, मैंने तुझे अपने पाप बता दिये। [QBR2] मैंने अपना कोई अपराध तुझसे नहीं छुपाया। [QBR2] और तूने मुझे मेरे पापों के लिए क्षमा कर दिया! [QBR]
6. इसलिए, परमेश्वर, तेरे भक्तों को तेरी विनती करनी चाहिए। [QBR2] वहाँ तक कि जब विपत्ति जल प्रलय सी उमड़े तब भी तेरे भक्तों को तेरी विनती करनीचाहिए। [QBR]
7. हे परमेश्वर, तू मेरा रक्षास्थल है। [QBR2] तू मुझको मेरी विपत्तियों से उबारता है। [QBR] तू मुझे अपनी ओट में लेकर विपत्तियों से बचाता है। [QBR2] सो इसलिए मैं. जैसे तूने रक्षा की है, उन्हीं बातों के गीत गाया करता हूँ। [QBR]
8. यहोवा कहता है, “मैं तुझे जैसे चलना चाहिए सिखाऊँगा [QBR2] और तुझे वह राह दिखाऊँगा। [QBR2] मैं तेरी रक्षा करुँगा और मैं तेरा अगुवा बनूँगा। [QBR]
9. सो तू घोड़े या गधे सा बुद्धिहीन मत बन। उन पशुओं को तो मुखरी और लगाम से चलाया जाता है। [QBR2] यदि तू उनको लगाम या रास नहीं लगाएगा, तो वे पशु निकट नहीं आयेंगे।”
10. दुर्जनों को बहुत सी पीड़ाएँ घेरेंगी। [QBR2] किन्तु उन लोगों को जिन्हें यहोवा पर भरोसा है, यहोवा का सच्चा प्रेम ढक लेगा। [QBR]
11. सज्जन तो यहोवा में सदा मगन और आनन्दित रहते हैं। [QBR2] अरे ओ लोगों, तुम सब पवित्र मन के साथ आनन्द मनाओ। [PE]