3. हमारा परमेश्वर आ रहा है, और वह चुप नही रहेगा। उसके सामने जलती ज्वाला है, उसको एक बड़ा तूफान घेरे हुए है।
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7. परमेश्वर कहता है, “सुनों मेरे भक्तों! इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हारे विरूद्ध साक्षी दूँगा। मैं परमेश्वर हूँ, तुम्हारा परमेश्वर।
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8. मुझको तुम्हारी बलियों से शिकायत नहीं। इस्राएल के लोगों, तुम सदा होमबलियाँ मुझे चढ़ाते रहो। तुम मुझे हर दिन अर्पित करो।
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10. मुझे तुम्हारे उन पशुओं की आवश्यकता नहीं। मैं ही तो वन के सभी पशुओं का स्वामी हूँ। हजारों पहाड़ों पर जो पशु विचरते हैं, उन सब का मैं स्वामी हूँ।
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11. जिन पक्षियों का बसेरा उच्चतम पहाड़ पर है. उन सब को मैं जानता हूँ। अचलों पर जो भी सचल है वे सब मेरे ही हैं।
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12. मैं भूखा नहीं हूँ! यदि मैं भूखा होता, तो भी तुमसे मुझे भोजन नहीं माँगना पड़ता। मैं जगत का स्वामी हूँ और उसका भी हर वस्तु जो इस जगत में है।
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14. सचमुच जिस बलि की परमेश्वर को अपेक्षा है, वह तुम्हारी स्तुति है। तुम्हारी मनौतियाँ उसकी सेवा की हैं। सो परमेश्वर को निज धन्यवाद की भेटें चढ़ाओ। उस सर्वोच्च से जो मनौतियाँ की हैं उसे पूरा करो।
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15. “इस्रएल के लोगों, जब तुम पर विपदा पड़े, मेरी प्रार्थना करो, मैं तुम्हें सहारा दूँगा। तब तुम मेरा मान कर सकोगे।”
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16. दुष्ट लोगों से परमेश्वर कहता है, “तुम मेरी व्यवस्था की बातें करते हो, तुम मेरे वाचा की भी बातें करते हो।
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17. फिर जब मैं तुमको सुधारता हूँ, तब भला तुम मुझसे बैर क्यों रखते हो। तुम उन बातों की उपेक्षा क्यों करते हो जिन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ
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18. तुम चोर को देखकर उससे मिलने के लिए दौड़ जाते हो, तुम उनके साथ बिस्तर में कूद पड़ते हो जो व्यभिचार कर रहे हैं।
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21. तुम बुरे कर्म करते हो, और तुम सोचते हो मुझे चुप रहना चाहिए। तुम कुछ नहीं कहते हो और सोचते हो कि मुझे चुप रहना चहिए। देखो, मैं चुप नहीं रहूँगा, तुझे स्पष्ट कर दूँगा। तेरे ही मुख पर तेरे दोष बताऊँगा।
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22. तुम लोग परमेश्वर को भूल गये हो। इसके पहले कि मैं तुम्हे चीर दूँ, अच्छी तरह समझ लो। जब वैसा होगा कोई भी व्यक्ति तुम्हें बचा नहीं पाएगा!
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