पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
भजन संहिता
1. हे परमेश्वर, मुझको मेरी सब विपतियों से बचा! [QBR2] मेरे मुँह तक पानी चढ़ आया है। [QBR]
2. कुछ भी नहीं है जिस पर मैं खड़ा हो जाऊँ। [QBR2] मैं दलदल के बीच नीचे धँसता ही चला जा रहा हूँ। [QBR] मैं नीचे धंस रहा हूँ। [QBR2] मैं अगाध जल में हूँ और मेरे चारों तरफ लहरें पछाड़ खा रही है। बस, मैं डूबने को हूँ। [QBR]
3. सहायता को पुकारते मैं दुर्बल होता जा रहा हूँ। [QBR2] मेरा गला दु;ख रहा है। [QBR] मैं बाट जोह रहा हूँ तुझसे सहायता पाने [QBR2] और देखते—देखते मेरी आँखें दु;ख रही है। [QBR]
4. मेरे शत्रु! मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं। [QBR2] वे मुझसे व्यर्थ बैर रखते हैं। [QBR2] वे मेरे विनाश की जुगत बहुत करते हैं। [QBR] मेरे शत्रु मेरे विषय में झूठी बातें बनातें हैं। [QBR2] उन्होंने मुझको झूठे ही चोर बताया। [QBR2] और उन वस्तुओं की भरपायी करने को मुझे विवश किया, जिनको मैंने चुराया नहीं था। [QBR]
5. हे परमेश्वर, तू तो जानता है कि मैंने कुछ अनुचित नहीं किया। [QBR2] मैं अपने पाप तुझसे नहीं छिपा सकता। [QBR]
6. हे मेरे स्वमी, हे सर्वशक्तिमान यहोवा, तू अपने भक्तों को मेरे कारण लज्जित मत होने दें। [QBR2] हे इस्राएल के परमेश्वर, ऐसे उन लोगों को मेरे लिए असमंजस में मत डाल जो तेरी उपासना करते हैं। [QBR]
7. मेरा मुख लाज से झुक गया। [QBR2] यह लाज मैं तेरे लिए ढोता हूँ। [QBR]
8. मेरे ही भाई, मेरे साथ यूँ ही बर्ताव करते हैं। जैसे बर्ताव किसी अजनबी से करते हों। [QBR2] मेरे ही सहोदर, मुझे पराया समझते है। [QBR]
9. तेरे मन्दिर के प्रति मेरी तीव्र लगन ही मुझे जलाये डाल रही है। [QBR2] वे जो तेरा उपहास करते हैं वह मुझ पर आन पडा है। [QBR]
10. मैं तो पुकारता हूँ और उपवास करता हूँ, [QBR2] इसलिए वे मेरी हँसी उड़ाते हैं। [QBR]
11. मैं निज शोक दर्शाने के लिए मोटे वस्रों को पहनता हूँ, [QBR2] और लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। [QBR]
12. वे जनता के बीच मेरी चर्चायें करतें, [QBR2] और पियक्कड़ मेरे गीत रचा करते हैं। [QBR]
13. हे यहोवा, जहाँ तक मेरी बात है, मेरी तुझसे यह विनती है कि [QBR2] मैं चाहता हूँ; तू मुझे अपना ले! [QBR] हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि तू मुझको प्रेम भरा उत्तर दे। [QBR2] मैं जानता हूँ कि मैं तुझ पर सुरक्षा का भरोसा कर सकता हूँ। [QBR]
14. मुझको दलदल से उबार ले। [QBR2] मुझको दलदल के बीच मत डूबने दे। [QBR] मुझको मेरे बैरी लोगों से तू बचा ले। [QBR2] तू मुझको इस गहरे पानी से बचा ले। [QBR]
15. बाढ की लहरों को मुझे डुबाने न दे। [QBR2] गहराई को मुझे निगलने न दे। [QBR2] कब्र को मेरे ऊपर अपना मुँह बन्द न करने दे। [QBR]
16. हे यहोवा, तेरी करूण खरी है। तू मुझको निज सम्पूर्ण प्रेम से उत्तर दे। [QBR2] मेरी सहायता के लिए अपनी सम्पूर्ण कृपा के साथ मेरी ओर मुख कर! [QBR]
17. अपने दास से मत मुख मोड़। [QBR2] मैं संकट में पड़ा हूँ! मुझको शीघ्र सहारा दे। [QBR]
18. आ, मेरे प्राण बचा ले। [QBR2] तू मुझको मेरे शत्रुओं से छुड़ा ले। [QBR]
19. तू मेरा निरादर जानता है। [QBR2] तू जानता है कि मेरे शत्रुओं ने मुझे लज्जित किया है। [QBR2] उन्हें मेरे संग ऐसा करते तूने देखा है। [QBR]
20. निन्दा ने मुझको चकनाचूर कर दिया है! [QBR2] बस निन्दा के कारण मैं मरने पर हूँ। [QBR] मैं सहानुभूति की बाट जोहता रहा, मैं सान्त्वना की बाट जोहता रहा, [QBR2] किन्तु मुझको तो कोई भी नहीं मिला। [QBR]
21. उन्होंने मुझे विष दिया, भोजन नहीं दिया। [QBR2] सिरका मुझे दे दिया, दाखमधु नहीं दिया। [QBR]
22. उनकी मेज खानों से भरी है वे इतना विशाल सहभागिता भोज कर रहे हैं। [QBR2] मैं आशा करता हूँ कि वे खाना उन्हें नष्ट करें। [QBR]
23. वे अंधे हो जायें और उनकी कमर झुक कर दोहरी हो जाये। [QBR]
24. ऐसे लगे कि उन पर [QBR2] तेरा भरपूर क्रोध टूट पड़ा है। [QBR]
25. उनके घरों को तू खाली बना दे। [QBR2] वहाँ कोई जीवित न रहे। [QBR]
26. उनको दण्ड दे, और वे दूर भाग जायें। [QBR2] फिर उनके पास, उनकी बातों के विषय में उनके दर्द और घाव हो। [QBR]
27. उनके बुरे कर्मों का उनको दण्ड दे, जो उन्होंने किये हैं। [QBR2] उनको मत दिखला कि तू और कितना भला हो सकता है। [QBR]
28. जीवन की पुस्तक से उनके नाम मिटा दे। [QBR2] सज्जनों के नामों के साथ तू उनके नाम उस पुस्तक में मत लिख। [QBR]
29. मैं दु:खी हूँ और दर्द में हूँ। [QBR2] हे परमेश्वर, मुझको उबार ले। मेरी रक्षा कर! [QBR]
30. मैं परमेश्वर के नाम का गुण गीतों में गाऊँगा। [QBR2] मैं उसका यश धन्यवाद के गीतों से गाऊँगा। [QBR]
31. परमेश्वर इससे प्रसन्न हो जायेगा। [QBR2] ऐसा करना एक बैल की बलि या पूरे पशु की ही बलि चढ़ाने से अधिक उत्तम है। [QBR]
32. अरे दीन जनों, तुम परमेश्वर की आराधना करने आये हो। [QBR2] अरे दीन लोगों! इन बातों को जानकर तुम प्रसन्न हो जाओगे। [QBR]
33. यहोवा, दीनों और असहायों की सुना करता है। [QBR2] यहोवा उन्हें अब भी चाहता है, जो लोग बंधन में पड़े हैं। [QBR]
34. हे स्वर्ग और हे धरती, [QBR2] हे सागर और इसके बीच जो भी समाया है। परमेश्वर की स्तुती करो! [QBR]
35. यहोवा सिय्योन की रक्षा करेगा! [QBR2] यहोवा यहूदा के नगर का फिर निर्माण करेगा। [QBR] वे लोग जो इस धरती के स्वामी हैं, फिर वहाँ रहेंगे! [QBR2]
36. उसके सेवकों की संताने उस धरती को पायेगी। [QBR2] और ऐसे वे लोग निवास करेंगे जिन्हें उसका नाम प्यारा है। [PE]

Notes

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Total 150 अध्याय, Selected अध्याय 69 / 150
भजन संहिता 69:2
1 हे परमेश्वर, मुझको मेरी सब विपतियों से बचा! मेरे मुँह तक पानी चढ़ आया है। 2 कुछ भी नहीं है जिस पर मैं खड़ा हो जाऊँ। मैं दलदल के बीच नीचे धँसता ही चला जा रहा हूँ। मैं नीचे धंस रहा हूँ। मैं अगाध जल में हूँ और मेरे चारों तरफ लहरें पछाड़ खा रही है। बस, मैं डूबने को हूँ। 3 सहायता को पुकारते मैं दुर्बल होता जा रहा हूँ। मेरा गला दु;ख रहा है। मैं बाट जोह रहा हूँ तुझसे सहायता पाने और देखते—देखते मेरी आँखें दु;ख रही है। 4 मेरे शत्रु! मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं। वे मुझसे व्यर्थ बैर रखते हैं। वे मेरे विनाश की जुगत बहुत करते हैं। मेरे शत्रु मेरे विषय में झूठी बातें बनातें हैं। उन्होंने मुझको झूठे ही चोर बताया। और उन वस्तुओं की भरपायी करने को मुझे विवश किया, जिनको मैंने चुराया नहीं था। 5 हे परमेश्वर, तू तो जानता है कि मैंने कुछ अनुचित नहीं किया। मैं अपने पाप तुझसे नहीं छिपा सकता। 6 हे मेरे स्वमी, हे सर्वशक्तिमान यहोवा, तू अपने भक्तों को मेरे कारण लज्जित मत होने दें। हे इस्राएल के परमेश्वर, ऐसे उन लोगों को मेरे लिए असमंजस में मत डाल जो तेरी उपासना करते हैं। 7 मेरा मुख लाज से झुक गया। यह लाज मैं तेरे लिए ढोता हूँ। 8 मेरे ही भाई, मेरे साथ यूँ ही बर्ताव करते हैं। जैसे बर्ताव किसी अजनबी से करते हों। मेरे ही सहोदर, मुझे पराया समझते है। 9 तेरे मन्दिर के प्रति मेरी तीव्र लगन ही मुझे जलाये डाल रही है। वे जो तेरा उपहास करते हैं वह मुझ पर आन पडा है। 10 मैं तो पुकारता हूँ और उपवास करता हूँ, इसलिए वे मेरी हँसी उड़ाते हैं। 11 मैं निज शोक दर्शाने के लिए मोटे वस्रों को पहनता हूँ, और लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। 12 वे जनता के बीच मेरी चर्चायें करतें, और पियक्कड़ मेरे गीत रचा करते हैं। 13 हे यहोवा, जहाँ तक मेरी बात है, मेरी तुझसे यह विनती है कि मैं चाहता हूँ; तू मुझे अपना ले! हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि तू मुझको प्रेम भरा उत्तर दे। मैं जानता हूँ कि मैं तुझ पर सुरक्षा का भरोसा कर सकता हूँ। 14 मुझको दलदल से उबार ले। मुझको दलदल के बीच मत डूबने दे। मुझको मेरे बैरी लोगों से तू बचा ले। तू मुझको इस गहरे पानी से बचा ले। 15 बाढ की लहरों को मुझे डुबाने न दे। गहराई को मुझे निगलने न दे। कब्र को मेरे ऊपर अपना मुँह बन्द न करने दे। 16 हे यहोवा, तेरी करूण खरी है। तू मुझको निज सम्पूर्ण प्रेम से उत्तर दे। मेरी सहायता के लिए अपनी सम्पूर्ण कृपा के साथ मेरी ओर मुख कर! 17 अपने दास से मत मुख मोड़। मैं संकट में पड़ा हूँ! मुझको शीघ्र सहारा दे। 18 आ, मेरे प्राण बचा ले। तू मुझको मेरे शत्रुओं से छुड़ा ले। 19 तू मेरा निरादर जानता है। तू जानता है कि मेरे शत्रुओं ने मुझे लज्जित किया है। उन्हें मेरे संग ऐसा करते तूने देखा है। 20 निन्दा ने मुझको चकनाचूर कर दिया है! बस निन्दा के कारण मैं मरने पर हूँ। मैं सहानुभूति की बाट जोहता रहा, मैं सान्त्वना की बाट जोहता रहा, किन्तु मुझको तो कोई भी नहीं मिला। 21 उन्होंने मुझे विष दिया, भोजन नहीं दिया। सिरका मुझे दे दिया, दाखमधु नहीं दिया। 22 उनकी मेज खानों से भरी है वे इतना विशाल सहभागिता भोज कर रहे हैं। मैं आशा करता हूँ कि वे खाना उन्हें नष्ट करें। 23 वे अंधे हो जायें और उनकी कमर झुक कर दोहरी हो जाये। 24 ऐसे लगे कि उन पर तेरा भरपूर क्रोध टूट पड़ा है। 25 उनके घरों को तू खाली बना दे। वहाँ कोई जीवित न रहे। 26 उनको दण्ड दे, और वे दूर भाग जायें। फिर उनके पास, उनकी बातों के विषय में उनके दर्द और घाव हो। 27 उनके बुरे कर्मों का उनको दण्ड दे, जो उन्होंने किये हैं। उनको मत दिखला कि तू और कितना भला हो सकता है। 28 जीवन की पुस्तक से उनके नाम मिटा दे। सज्जनों के नामों के साथ तू उनके नाम उस पुस्तक में मत लिख। 29 मैं दु:खी हूँ और दर्द में हूँ। हे परमेश्वर, मुझको उबार ले। मेरी रक्षा कर! 30 मैं परमेश्वर के नाम का गुण गीतों में गाऊँगा। मैं उसका यश धन्यवाद के गीतों से गाऊँगा। 31 परमेश्वर इससे प्रसन्न हो जायेगा। ऐसा करना एक बैल की बलि या पूरे पशु की ही बलि चढ़ाने से अधिक उत्तम है। 32 अरे दीन जनों, तुम परमेश्वर की आराधना करने आये हो। अरे दीन लोगों! इन बातों को जानकर तुम प्रसन्न हो जाओगे। 33 यहोवा, दीनों और असहायों की सुना करता है। यहोवा उन्हें अब भी चाहता है, जो लोग बंधन में पड़े हैं। 34 हे स्वर्ग और हे धरती, हे सागर और इसके बीच जो भी समाया है। परमेश्वर की स्तुती करो! 35 यहोवा सिय्योन की रक्षा करेगा! यहोवा यहूदा के नगर का फिर निर्माण करेगा। वे लोग जो इस धरती के स्वामी हैं, फिर वहाँ रहेंगे! 36 उसके सेवकों की संताने उस धरती को पायेगी। और ऐसे वे लोग निवास करेंगे जिन्हें उसका नाम प्यारा है।
Total 150 अध्याय, Selected अध्याय 69 / 150
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