73. {(भजनसंहिता 73-89) }[PS]*आसाप का स्तुति गीत। *[PE][QS]सचमुच, इस्राएल के प्रति परमेश्वर भला है। [QE][QS2]परमेश्वर उन लोगों के लिए भला होता है जिनके हृदय स्वच्छ है। [QE]
2. [QS]मैं तो लगभग फिसल गया था [QE][QS2]और पाप करने लगा। [QE]
3. [QS]जब मैंने देखा कि पापी सफल हो रहे हैं [QE][QS2]और शांति से रह रहे हैं, तो उन अभिमानी लोगों से मुझको जलन हुयी। [QE]
4. [QS]वे लोग स्वस्थ हैं [QE][QS2]उन्हें जीवन के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है। [QE]
5. [QS]वे अभिमानी लोग पीड़ायें नहीं उठाते है। [QE][QS2]जैसे हमलोग दु;ख झेलते हैं, वैसे उनको औरों की तरह यातनाएँ नहीं होती। [QE]
6. [QS]इसलिए वे अहंकार से भरे रहते हैं। [QE][QS2]और वे घृणा से भरे हुए रहते हैं। ये वैसा ही साफ दिखता है, जैसे रत्न और वे सुन्दर वस्र जिनको वे पहने हैं। [QE]
7. [QS]वे लोग ऐसे है कि यदि कोई वस्तु देखते हैं और उनको पसन्द आ जाती है, तो उसे बढ़कर झपट लेते हैं। [QE][QS2]वे वैसे ही करते हैं, जैसे उन्हें भाता है। [QE]
8. [QS]वे दूसरों के बारें में क्रूर बातें और बुरी बुरी बातें कहते है। वे अहंकारी और हठी है। [QE][QS2]वे दूसरे लोगों से लाभ उठाने का रास्ता बनाते है। [QE]
9. [QS]अभिमानी मनुष्य सोचते हैं वे देवता हैं! [QE][QS2]वे अपने आप को धरती का शासक समझते हैं। [QE]
10. [QS]यहाँ तक कि परमेश्वर के जन, उन दुष्टों की ओर मुड़ते और जैसा वे कहते है, [QE][QS2]वैसा विश्वास कर लेते हैं। [QE]
11. [QS]वे दुष्ट जन कहते हैं, “हमारे उन कर्मो को परमेश्वर नहीं जानता! [QE][QS2]जिनकों हम कर रहे हैं!” [QE][PBR]
12. [QS]वे मनुष्य अभिमान और कुटिल हैं, [QE][QS2]किन्तु वे निरन्तर धनी और अधिक धनी होते जा रहे हैं। [QE]
13. [QS]सो मैं अपना मन पवित्र क्यों बनाता रहूँ [QE][QS2]अपने हाथों को सदा निर्मल क्यों करता रहूँ [QE]
14. [QS]हे परमेश्वर, मैं सारे ही दिन दु:ख भोगा करता हूँ। [QE][QS2]तू हर सुबह मुझको दण्ड देता है। [QE][PBR]
15. [QS]हे परमेश्वर, मैं ये बातें दूसरो को बताना चाहता था। [QE][QS2]किन्तु मैं जानता था और मैं ऐसे ही तेरे भक्तों के विरूद्ध हो जाता था। [QE]
16. [QS]इन बातों को समझने का, मैंने जतन किया [QE][QS2]किन्तु इनका समझना मेरे लिए बहुत कठिन था, [QE]
17. [QS]जब तक मैं तेरे मन्दिर में नहीं गया। [QE][QS2]मैं परमेश्वर के मन्दिर में गया और तब मैं समझा। [QE]
18. [QS]हे परमेश्वर, सचमुच तूने उन लोगों को भयंकर परिस्थिति में रखा है। [QE][QS2]उनका गिर जाना बहुत ही सरल है। उनका नष्ट हो जाना बहुत ही सरल है। [QE]
19. [QS]सहसा उन पर विपत्ति पड़ सकती है, [QE][QS2]और वे अहंकारी जन नष्ट हो जाते हैं। [QE][QS]उनके साथ भयंकर घटनाएँ घट सकती हैं, [QE][QS2]और फिर उनका अंत हो जाता है। [QE]
20. [QS]हे यहोवा, वे मनुष्य ऐसे होंगे [QE][QS2]जैसे स्वप्न जिसको हम जागते ही भुल जाते हैं। [QE][QS]तू ऐसे लोगों को हमारे स्वप्न के भयानक जन्तु की तरह [QE][QS2]अदृश्य कर दे। [QE][PBR]
21. [QS](21-22)मैं अज्ञान था। [QE][QS2]मैंने धनिकों और दुष्ट लोगों पर विचारा, और मैं व्याकुल हो गया। [QE][QS]हे परमेश्वर, मैं तुझ पर क्रोधित हुआ! [QE][QS2]मैं निर्बुद्धि जानवर सा व्यवहार किया। [QE]
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23. [QS]वह सब कुछ मेरे पास है, जिसकी मुझे अपेक्षा है। मैं तेरे साथ हरदम हूँ। [QE][QS2]हे परमेश्वर, तू मेरा हाथ थामें है। [QE]
24. [QS]हे परमेश्वर, तू मुझे मार्ग दिखलाता, और मुझे सम्मति देता है। [QE][QS2]अंत में तू अपनी महिमा में मेरा नेतृत्व करेगा। [QE]
25. [QS]हे परमेश्वर, स्वर्ग में बस तू ही मेरा है, [QE][QS2]और धरती पर मुझे क्या चाहिए, जब तू मेरे साथ है [QE]
26. [QS]चाहे मेरा मन टूट जाये और मेरी काया नष्ट हो जाये [QE][QS2]किन्तु वह चट्टान मेरे पास है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ। [QE][QS2]परमेश्वर मेरे पास सदा है! [QE]
27. [QS]परमेश्वर, जो लोग तुझको त्यागते हैं, वे नष्ट हो जाते है। [QE][QS2]जिनका विश्वास तुझमें नहीं तू उन लोगों को नष्ट कर देगा। [QE]
28. [QS]किन्तु, मैं परमेश्वर के निकट आया। [QE][QS2]मेरे साथ परमेश्वर भला है, मैंने अपना सुरक्षास्थान अपने स्वामी यहोवा को बनाया है। [QE][QS2]हे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों का बखान करूँगा जिनको तूने किया है। [QE][PBR]