1. सचमुच, इस्राएल के प्रति परमेश्वर भला है। [QBR2] परमेश्वर उन लोगों के लिए भला होता है जिनके हृदय स्वच्छ है। [QBR]
2. मैं तो लगभग फिसल गया था [QBR2] और पाप करने लगा। [QBR]
3. जब मैंने देखा कि पापी सफल हो रहे हैं [QBR2] और शांति से रह रहे हैं, तो उन अभिमानी लोगों से मुझको जलन हुयी। [QBR]
4. वे लोग स्वस्थ हैं [QBR2] उन्हें जीवन के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है। [QBR]
5. वे अभिमानी लोग पीड़ायें नहीं उठाते है। [QBR2] जैसे हमलोग दु;ख झेलते हैं, वैसे उनको औरों की तरह यातनाएँ नहीं होती। [QBR]
6. इसलिए वे अहंकार से भरे रहते हैं। [QBR2] और वे घृणा से भरे हुए रहते हैं। ये वैसा ही साफ दिखता है, जैसे रत्न और वे सुन्दर वस्र जिनको वे पहने हैं। [QBR]
7. वे लोग ऐसे है कि यदि कोई वस्तु देखते हैं और उनको पसन्द आ जाती है, तो उसे बढ़कर झपट लेते हैं। [QBR2] वे वैसे ही करते हैं, जैसे उन्हें भाता है। [QBR]
8. वे दूसरों के बारें में क्रूर बातें और बुरी बुरी बातें कहते है। वे अहंकारी और हठी है। [QBR2] वे दूसरे लोगों से लाभ उठाने का रास्ता बनाते है। [QBR]
9. अभिमानी मनुष्य सोचते हैं वे देवता हैं! [QBR2] वे अपने आप को धरती का शासक समझते हैं। [QBR]
10. यहाँ तक कि परमेश्वर के जन, उन दुष्टों की ओर मुड़ते और जैसा वे कहते है, [QBR2] वैसा विश्वास कर लेते हैं। [QBR]
11. वे दुष्ट जन कहते हैं, “हमारे उन कर्मो को परमेश्वर नहीं जानता! [QBR2] जिनकों हम कर रहे हैं!”
12. वे मनुष्य अभिमान और कुटिल हैं, [QBR2] किन्तु वे निरन्तर धनी और अधिक धनी होते जा रहे हैं। [QBR]
13. सो मैं अपना मन पवित्र क्यों बनाता रहूँ [QBR2] अपने हाथों को सदा निर्मल क्यों करता रहूँ [QBR]
14. हे परमेश्वर, मैं सारे ही दिन दु:ख भोगा करता हूँ। [QBR2] तू हर सुबह मुझको दण्ड देता है।
15. हे परमेश्वर, मैं ये बातें दूसरो को बताना चाहता था। [QBR2] किन्तु मैं जानता था और मैं ऐसे ही तेरे भक्तों के विरूद्ध हो जाता था। [QBR]
16. इन बातों को समझने का, मैंने जतन किया [QBR2] किन्तु इनका समझना मेरे लिए बहुत कठिन था, [QBR]
17. जब तक मैं तेरे मन्दिर में नहीं गया। [QBR2] मैं परमेश्वर के मन्दिर में गया और तब मैं समझा। [QBR]
18. हे परमेश्वर, सचमुच तूने उन लोगों को भयंकर परिस्थिति में रखा है। [QBR2] उनका गिर जाना बहुत ही सरल है। उनका नष्ट हो जाना बहुत ही सरल है। [QBR]
19. सहसा उन पर विपत्ति पड़ सकती है, [QBR2] और वे अहंकारी जन नष्ट हो जाते हैं। [QBR] उनके साथ भयंकर घटनाएँ घट सकती हैं, [QBR2] और फिर उनका अंत हो जाता है। [QBR]
20. हे यहोवा, वे मनुष्य ऐसे होंगे [QBR2] जैसे स्वप्न जिसको हम जागते ही भुल जाते हैं। [QBR] तू ऐसे लोगों को हमारे स्वप्न के भयानक जन्तु की तरह [QBR2] अदृश्य कर दे।
21. (21-22) मैं अज्ञान था। [QBR2] मैंने धनिकों और दुष्ट लोगों पर विचारा, और मैं व्याकुल हो गया। [QBR] हे परमेश्वर, मैं तुझ पर क्रोधित हुआ! [QBR2] मैं निर्बुद्धि जानवर सा व्यवहार किया। [QBR]
22. वह सब कुछ मेरे पास है, जिसकी मुझे अपेक्षा है। मैं तेरे साथ हरदम हूँ। [QBR2] हे परमेश्वर, तू मेरा हाथ थामें है। [QBR]
23. हे परमेश्वर, तू मुझे मार्ग दिखलाता, और मुझे सम्मति देता है। [QBR2] अंत में तू अपनी महिमा में मेरा नेतृत्व करेगा। [QBR]
24. हे परमेश्वर, स्वर्ग में बस तू ही मेरा है, [QBR2] और धरती पर मुझे क्या चाहिए, जब तू मेरे साथ है [QBR]
25. चाहे मेरा मन टूट जाये और मेरी काया नष्ट हो जाये [QBR2] किन्तु वह चट्टान मेरे पास है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ। [QBR2] परमेश्वर मेरे पास सदा है! [QBR]
26. परमेश्वर, जो लोग तुझको त्यागते हैं, वे नष्ट हो जाते है। [QBR2] जिनका विश्वास तुझमें नहीं तू उन लोगों को नष्ट कर देगा। [QBR]
27. किन्तु, मैं परमेश्वर के निकट आया। [QBR2] मेरे साथ परमेश्वर भला है, मैंने अपना सुरक्षास्थान अपने स्वामी यहोवा को बनाया है। [QBR2] हे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों का बखान करूँगा जिनको तूने किया है। [PE]
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