1. मैं सहायता पाने के लिये परमेश्वर को पुकारूँगा। [QBR2] हे परमेश्वर, मैं तेरी विनती करता हूँ, तू मेरी सुन ले! [QBR]
2. हे मेरे स्वामी, मुझ पर जब दु:ख पड़ता है, मैं तेरी शरण में आता हूँ। [QBR2] मैं सारी रात तुझ तक पहुँचने में जुझा हूँ। [QBR2] मेरा मन चैन पाने को नहीं माना। [QBR]
3. मैं परमेश्वर का मनन करता हूँ, और मैं जतन करता रहता हूँ कि मैं उससे बात करूँ और बता दूँ कि मुझे कैसा लग रहा है। [QBR2] किन्तु हाय मैं ऐसा नहीं कर पाता। [QBR]
4. तू मुझे सोने नहीं देगा। [QBR2] मैंने जतन किया है कि मैं कुछ कह डालूँ, किन्तु मैं बहुत घबराया था। [QBR]
5. मैं अतीत की बातें सोचते रहा। [QBR2] बहुत दिनों पहले जो बातें घटित हुई थी उनके विषय में मैं सोचता ही रहा। [QBR]
6. रात में, मैं निज गीतों के विषय़ में सोचता हूँ। [QBR2] मैं अपने आप से बातें करता हूँ, और मैं समझने का यत्न करता हूँ। [QBR]
7. मुझको यह हैरानी है, “क्या हमारे स्वमी ने हमे सदा के लिये त्यागा है [QBR2] क्या वह हमको फिर नहीं चाहेगा [QBR]
8. क्या परमेश्वर का प्रेम सदा को जाता रहा [QBR2] क्या वह हमसे फिर कभी बात करेगा [QBR]
9. क्या परमेश्वर भूल गया है कि दया क्या होती है [QBR2] क्या उसकी करूणा क्रोध में बदल गयी है”
10. फिर यह सोचा करता हूँ, “वह बात जो मुझे खाये डाल रही है: [QBR2] ‘क्या परम परमेश्वर आपना निज शाक्ति खो बैठा है’?”
11. याद करो वे शाक्ति भरे काम जिनको यहोवा ने किये। [QBR2] हे परमेश्वर, जो काम तूने बहुत समय पहले किये मुझको याद है। [QBR]
12. मैंने उन सभी कामों को जिनको तूने किये है मनन किया। [QBR2] जिन कामों को तूने किया मैंने सोचा है। [QBR]
13. हे परमेश्वर, तेरी राहें पवित्र हैं। [QBR2] हे परमेश्वर, कोई भी महान नहीं है, जैसा तू महान है। [QBR]
14. तू ही वह परमेश्वर है जिसने अद्भुत कार्य किये। [QBR2] तू ने लोगों को अपनी निज महाशक्ति दर्शायी। [QBR]
15. तूने निज शक्ति का प्रयोग किया और भक्तों को बचा लिया। [QBR2] तूने याकूब और यूसुफ की संताने बचा ली।
16. हे परमेश्वर, तुझे सागर ने देखा और वह डर गया। [QBR2] गहरा समुद्र भय से थर थर काँप उठा। [QBR]
17. सघन मेघों से उनका जल छूट पड़ा था। [QBR2] ऊँचे मेघों से तीव्र गर्जन लोगों ने सुना। [QBR2] फिर उन बादलों से बिजली के तेरे बाण सारे बादलों में कौंध गये। [QBR]
18. कौंधती बिजली में झँझावान ने तालियाँ बजायी जगत चमक—चमक उठा। [QBR2] धरती हिल उठी और थर थर काँप उठी। [QBR]
19. हे परमेश्वर, तू गहरे समुद्र में ही पैदल चला। तूने चलकर ही सागर पार किया। [QBR2] किन्तु तूने कोई पद चिन्ह नहीं छोड़ा। [QBR]
20. तूने मुसा और हारून का उपयोग निज भक्तों की अगुवाई [QBR2] भेड़ों के झुण्ड की तरह करने में किया। [PE]