1. मेरे भक्तों, तुम मेरे उपदेशों को सुनो। [QBR2] उन बातों पर कान दो जिन्हें मैं बताना हूँ। [QBR]
2. मैं तुम्हें यह कथा सुनाऊँगा। [QBR2] मैं तुम्हें पुरानी कथा सुनाऊँगा। [QBR]
3. हमने यह कहानी सुनी है, और इसे भली भाँति जानते हैं। [QBR2] यह कहानी हमारे पूर्वजों ने कही। [QBR]
4. इस कहानी को हम नहीं भूलेंगे। [QBR2] हमारे लोग इस कथा को अगली पीढ़ी को सुनाते रहेंगे। [QBR] हम सभी यहोवा के गुण गायेंगे। [QBR2] हम उन के अद्भुत कर्मो का जिनको उसने किया है बखान करेंगे। [QBR]
5. यहोवा ने याकूब से वाचा किया। [QBR2] परमेश्वर ने इस्राएल को व्यवस्था का विधान दिया, [QBR2] और परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को आदेश दिया। [QBR2] उसने हमारे पूर्वजों को व्यवस्था का विधान अपने संतानों को सिखाने को कहा। [QBR]
6. इस तरह लोग व्यवस्था के विधान को जानेंगे। यहाँ तक कि अन्तिम पीढ़ी तक इसे जानेगी। [QBR2] नयी पीढ़ी जन्म लेगी और पल भर में बढ़ कर बड़े होंगे, और फिर वे इस कहानी को अपनी संतानों को सुनायेंगे। [QBR]
7. अत: वे सभी लोग यहोवा पर भरोसा करेंगे। [QBR2] वे उन शाक्तिपूर्ण कामों को नहीं भूलेंगे जिनको परमेश्वर ने किया था। [QBR2] वे ध्यान से रखवाली करेंगे और परमेश्वर के आदेशों का अनुसरण करेंगे। [QBR]
8. अत: लोग अपनी संतानों को परमेश्वर के आदेशों को सिखायेंगे, [QBR2] तो फिर वे संतानें उनके पूर्वजों जैसे नहीं होंगे। [QBR] उनके पूर्वजों ने परमेश्वर से अपना मुख मोड़ा और उसका अनुसरण करने से इन्कार किया, वे लोग हठी थे। [QBR2] वे परमेश्वर की आत्मा के भक्त नहीं थे।
9. एप्रैम के लोगे शस्र धारी थे, [QBR2] किन्तु वे युद्ध से पीठ दिखा गये। [QBR]
10. उन्होंने जो यहोवा से वाचा किया था पाला नहीं। [QBR2] वे परमेश्वर के सीखों को मानने से मुकर गये। [QBR]
11. एप्रैम के वे लोग उन बड़ी बातों को भूल गए जिन्हें परमेश्वर ने किया था। [QBR2] वे उन अद्भुत बातों को भूल गए जिन्हें उसने उन्हें दिखायी थी। [QBR]
12. परमेश्वर ने उनके पूर्वजों को मिस्र के सोअन में निज महाशक्ति दिखायी। [QBR]
13. परमेश्वर ने लाल सागर को चीर कर लोगों को पार उतार दिया। [QBR2] पानी पक्की दीवार सा दोनों ओर खड़ा रहा। [QBR]
14. हर दिन उन लोगों को परमेश्वर ने महा बादल के साथ अगुवाई की। [QBR2] हर रात परमेश्वर ने आग के लाट के प्रकाशसे रहा दिखाया। [QBR]
15. परमेश्वर ने मरूस्थल में चट्टान को फाड़ कर गहरे धरती के निचे से जल दिया। [QBR]
16. परमेश्वर चट्टान से जलधारा वैसे लाया जैसे कोई नदी हो! [QBR]
17. किन्तु लोग परमेश्वर के विरोध में पाप करते रहे। [QBR2] वे मरूस्थल तक में, परमपरमेश्वर के विरूद्ध हो गए। [QBR]
18. फिर उन लोगों ने परमेश्वर को परखने का निश्चय किया। [QBR2] उन्होंने बस अपनी भूख मिटाने के लिये परमेश्वर से भोजन माँगा। [QBR]
19. परमेश्वर के विरूद्ध वे बतियाने लगे, वे कहने लगे, [QBR2] “कया मरुभूमि में परमेश्वर हमें खाने को दे सकता है [QBR]
20. परमेश्वर ने चट्टान पर चोट की और जल का एक रेला बाहर फूट पड़ा। [QBR2] निश्चय ही वह हमको कुछ रोटी और माँस दे सकता है।” [QBR]
21. यहोवा ने सुन लिया जो लोगों ने कहा था। [QBR2] याकूब से परमेश्वर बहुत ही कुपित था। [QBR] इस्राएल से परमेश्वर बहुत ही कुपित था। [QBR2]
22. क्यों क्योंकि लोगों ने उस पर भरोसा नहीं रखा था, [QBR] उन्हें भरोसा नहीं था, कि परमेश्वर उन्हें बचा सकता है। [QBR]
23. (23-24) किन्तु तब भी परमेश्वर ने उन पर बादल को उघाड़ दिया, [QBR2] उऩके खाने के लिय़े नीचे मन्न बरसा दिया। [QBR] यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे अम्बर के द्वार खुल जाये [QBR2] और आकाश के कोठे से बाहर अन्न उँडेला हो। [QBR]
24. लोगों ने वह स्वर्गदूत का भोजन खाया। [QBR2] उन लोगों को तृप्त करने के लिये परमेश्वर ने भरपूर भोजन भेजा। [QBR]
25. फिर परमेश्वर ने पूर्व से तीव्र पवन चलाई [QBR2] और उन पर बटेरे वर्षा जैसे गिरने लगी। [QBR]
26. तिमान की दिशा से परमेश्वर की महाशक्ति ने एक आँधी उठायी और नीला आकाश काला हो गया [QBR2] क्योंकि वहाँ अनगिनत पक्षी छाए थे। [QBR]
27. वे पक्षी ठीक डेरे के बीच में गिरे थे। [QBR2] वे पक्षी उन लोगों के डेरों के चारों तरफ गिरे थे। [QBR]
28. उनके पास खाने को भरपूर हो गया, [QBR2] किन्तु उनकी भूख ने उनसे पाप करवाये। [QBR]
29. उन्होंने अपनी भूख पर लगाम नहीं लगायी। [QBR2] सो उन्होंने उन पक्षियों को बिना ही रक्त निकाले, बटेरो को खा लिया। [QBR]
30. सो उन लोगों पर परमेश्वर अति कुपीत हुआ और उनमें से बहुतों को मार दिया। [QBR2] उसने बलशाली युवकों तो मृत्यु का ग्रास बना दिया। [QBR]
31. फिर भी लोग पाप करते रहे! [QBR2] वे उन अदूभुत कर्मो के भरोसा नहीं रहे, जिनको परमेश्वर कर सकता है। [QBR]
32. सो परमेश्वर ने उनके व्यर्थ जीवन को [QBR2] किसी विनाश से अंत किया। [QBR]
33. जब कभी परमेश्वर ने उनमें से किसी को मारा, वे बाकि परमेश्वर की ओर लौटने लगे। [QBR2] वे दौड़कर परमेश्वर की ओर लौट गये। [QBR]
34. वे लोग याद करेंगे कि परमेश्वर उनकी चट्टान रहा था। [QBR2] वे याद करेंगे कि परम परमेश्वर ने उनकी रक्षा की। [QBR]
35. वैसे तो उन्होंने कहा था कि वे उससे प्रेम रखते हैं। [QBR2] उन्हेंने झूठ बोला था। ऐसा कहने में वे सच्चे नहीं थे। [QBR]
36. वे सचमुच मन से परमेश्वर के साथ नहीं थे। [QBR2] वे वाचा के लिये सच्चे नहीं थे। [QBR]
37. किन्तु परमेश्वर करूणापूर्ण था। [QBR2] उसने उन्हें उनके पापों के लिये क्षमा किया, और उसने उनका विनाश नहीं किया। [QBR] परमेश्वर ने अनेकों अवसर पर अपना क्रोध रोका। [QBR2] परमेश्वर ने अपने को अति कुपित होने नहीं दिया। [QBR]
38. परमेश्वर को याद रहा कि वे मात्र मनुष्य हैं। [QBR2] मनुष्य केवल हवा जैसे है जो बह कर चली जाती है और लौटती नहीं। [QBR]
39. हाय, उन लोगों ने मरूभूमि में परमेश्वर को कष्ट दिया! [QBR2] उन्होंने उसको बहुत दु:खी किया था! [QBR]
40. परमेश्वर के धैर्य को उन लोगों ने फिर परखा, [QBR2] सचमुच इस्राएल के उस पवित्र को उन्होंने कष्ट दिया। [QBR]
41. वे लोग परमेश्वर की शक्ति को भूल गये। [QBR2] वे लोग भुल गये कि परमेश्वर ने उनको कितनी ही बार शत्रुओं से बचाया। [QBR]
42. वे लोग मिस्र की अद्भुत बातों को [QBR2] और सोअन के क्षेत्रों के चमत्कारों को भूल गये। [QBR]
43. उनकी नदियों को परमेश्वर ने खून में बदल दिया था! [QBR2] जिनका जल मिस्र के लोग पी नहीं सकते थे। [QBR]
44. परमेश्वर ने भिड़ों के झुण्ड भेजे थे जिन्होंने मिस्र के लोगों को डसा। [QBR2] परमेश्वर ने उन मेढकों को भेजा जिन्होंने मिस्रियों के जीवन को उजाड़ दिया। [QBR]
45. परमेश्वर ने उनके फसलों को टिड्डों को दे डाला। [QBR2] उनके दूसरे पौधे टिड्डियों को दे दिये। [QBR]
46. परमेश्वर ने मिस्रियों के अंगूर के बाग ओलों से नष्ट किये, [QBR2] और पाला गिरा कर के उनके वृक्ष नष्टकर दिये। [QBR]
47. परमेश्वर ने उनके पशु ओलों से मार दिये [QBR2] और बिजलियाँ गिरा कर पशु धन नष्ट किये। [QBR]
48. परमेश्वर ने मिस्र के लोगों को अपना प्रचण्ड क्रोध दिखाया। [QBR2] उनके विरोध में उसने अपने विनाश के दूत भेजे। [QBR]
49. परमेश्वर ने क्रोध प्रकट करने के लिये एक राह पायी। [QBR2] उनमें से किसी को जीवित रहने नहीं दिया। [QBR2] हिंसक महामारी से उसने सारे ही पशुओं को मर जाने दिया। [QBR]
50. परमेश्वर ने मिस्र के हर पहले पुत्र को मार डाला। [QBR2] हाम के घराने के हर पहले पुत्र को उसने मार डाला। [QBR]
51. फिर उसने इस्राएल की चरवाहे के समान अगुवाई की। [QBR2] परमेश्वर ने अपने लोगों को ऐसे राह दिखाई जैसे जंगल में भेड़ों कि अगुवाई की है। [QBR]
52. वह अपनेनिज लोगों को सुरक्षा के साथ ले चला। [QBR2] परमेश्वर के भक्तों को किसी से डर नहीं था। [QBR2] परमेश्वर ने उनके शत्रुओं को लाल सागर में हुबाया। [QBR]
53. परमेश्वर अपने निज भक्तों को अपनी पवित्र धरती पर ले आया। [QBR2] उसने उन्हें उस पर्वत पर लाया जिसे उसने अपनी ही शक्ति से पाया। [QBR]
54. परमेश्वर ने दूसरी जातियों को वह भूमि छोड़ने को विवश किया। [QBR2] परमेश्वर ने प्रत्येक घराने को उनका भाग उस भूमि में दिया। [QBR2] इस तरह इस्राएल के घराने अपने ही घरों में बस गये। [QBR]
55. इतना होने पर भी इस्राएल के लोगों ने परम परमेश्वर को परखा और उसको बहुत दु:खी किया। [QBR2] वे लोग परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे। [QBR]
56. इस्राएल के लोग परमेश्वर से भटक कर विमुख हो गये थे। [QBR2] वे उसके विरोध में ऐसे ही थे, जैसे उनके पूर्वज थे। वे इतने बुरे थे जैसे मुड़ा धनुष। [QBR]
57. इस्राएल के लोगों ने ऊँचे पूजा स्थल बनाये और परमेश्वर को कुपित किया। [QBR2] उन्होंने देवताओं की मूर्तियाँ बनाई और परमेश्वर को ईर्ष्यालु बनाया। [QBR]
58. परमेश्वर ने यह सुना और बहुत कुपित हुआ। [QBR2] उसने इस्राएल को पूरी तरह नकारा! [QBR]
59. परमेश्वर ने शिलोह के पवित्र तम्बू को त्याग दिया। [QBR2] यह वही तम्बू था जहाँ परमेश्वर लोगों के बीच में रहता था। [QBR]
60. फिर परमेश्वर ने उसके निज लोगों को दूसरी जातियों को बंदी बनाने दिया। [QBR2] परमेश्वर के “सुन्दर रत्न” को शत्रुओं ने छीन लिया। [QBR]
61. परमेश्वर ने अपने ही लोगों (इस्राएली) पर निज क्रोध प्रकट किया। [QBR2] उसने उनको युद्ध में मार दिया। [QBR]
62. उनके युवक जलकर राख हुए, [QBR2] और वे कन्याएँ जो विवाह योग्य थीं, उनके विवाह गीत नहीं गाये गए। [QBR]
63. याजक मार डाले गए, [QBR2] किन्तु उनकी विधवाएँ उनके लिए नहीं रोई। [QBR]
64. अंत में, हमारा स्वामी उठ बैठा [QBR2] जैसे कोई नींद से जागकर उठ बैठता हो। [QBR2] या कोई योद्धा दाखमधु के नशे से होश में आया हो। [QBR]
65. फिर तो परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को मारकर भगा दिया और उन्हें पराजित किया। [QBR2] परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को हरा दिया और सदा के लिये अपमानित किया। [QBR]
66. किन्तु परमेश्वर ने यूसुफ के घराने को त्याग दिया। [QBR2] परमेश्वर ने इब्रहीम परिवार को नहीं चुना। [QBR]
67. परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र को नहीं चुना [QBR2] और परमेश्वर ने सिय्योन के पहाड़ को चुना जो उसको प्रिय है। [QBR]
68. उस ऊँचे पर्वत पर परमेश्वर ने अपना पवित्र मन्दिर बनाया। [QBR2] जैसे धरती अडिग है वैसे ही परमेश्वर ने निज पवित्र मन्दिर को सदा बने रहने दिया। [QBR]
69. परमेश्वर ने दाऊद को अपना विशेष सेवक बनाने में चुना। [QBR2] दाऊद तो भेड़ों की देखभाल करता था, किन्तु परमेश्वर उसे उस काम से ले आया। [QBR]
70. परमेश्वर दाऊद को भेड़ों को रखवाली से ले आया [QBR2] और उसने उसे अपने लोगों कि रखवाली का काम सौंपा, याकूब के लोग, यानी इस्राएल के लोग जो परमेश्वर की सम्पती थे। [QBR]
71. और फिर पवित्र मन से दाऊद ने इस्राएल के लोगों की अगुवाई की। [QBR2] उसने उन्हें पूरे विवेक से राह दिखाई। [PE]
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