1. पौलुस जो यीशु मसीह का दास है, PEPS जिसे परमेश्वर ने प्रेरित होने के लिये बुलाया, जिसे परमेश्वर के उस सुसमाचार के प्रचार के लिए चुना गया
|
4. किन्तु पवित्र आत्मा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाए जाने के कारण जिसे सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र दर्शाया गया है, यही यीशु मसीह हमारा प्रभु है। PEPS
|
5. इसी के द्वारा मुझे अनुग्रह और प्रेरिताई मिली, ताकि सभी ग़ैर यहूदियों में, उसके नाम में वह आस्था जो विश्वास से जन्म लेती है, पैदा की जा सके।
|
7. वह मैं, तुम सब के लिए, जो रोम में हो और परमेश्वर के प्यारे हो, जो परमेश्वर के पवित्र जन होने के लिए बुलाये गये हो, यह पत्र लिख रहा हूँ। PEPS हमारे परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें उसका अनुग्रह और शांति मिले। PS
|
8. {धन्यवाद की प्रार्थना} PS सबसे पहले मैं यीशु मसीह के द्वारा तुम सब के लिये अपने परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहता हूँ। क्योंकि तुम्हारे विश्वास की चर्चा संसार में सब कहीं हो रही है।
|
9. प्रभु जिसकी सेवा उसके पुत्र के सुसमाचार का उपदेश देते हुए मैं अपने हृदय से करता हूँ, प्रभु मेरा साक्षी है, कि मैं तुम्हें लगातार याद करता रहता हूँ।
|
10. अपनी प्रार्थनाओं में मैं सदा ही विनती करता रहता हूँ कि परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आने की मेरी यात्रा किसी तरह पूरी हो।
|
11. मैं बहुत इच्छा रखता हूँ क्योंकि मैं तुमसे मिल कर कुछ आत्मिक उपहार देना चाहता हूँ, जिससे तुम शक्तिशाली बन सको।
|
12. या मुझे कहना चाहिये कि मैं जब तुम्हारे बीच होऊँ, तब एक दूसरे के विश्वास से हम परस्पर प्रोत्साहित हों। PEPS
|
13. भाईयों, मैं चाहता हूँ, कि तुम्हें पता हो कि मैंने तुम्हारे पास आना बार-बार चाहा है ताकि जैसा फल मैंने ग़ैर यहूदियों में पाया है, वैसा ही तुमसे भी पा सकूँ, किन्तु अब तक बाधा आती ही रही। PEPS
|
16. मैं सुसमाचार के लिए शर्मिन्दा नहीं हूँ क्योंकि उसमें पहले यहूदी और फिर ग़ैर यहूदी जो भी उसमें विश्वास रखता है — उसके उद्धार के लिये परमेश्वर की सामर्थ्य है।
|
17. क्योंकि सुसमाचार में यह दर्शाया गया है, परमेश्वर मनुष्य को अपने प्रति सही कैसे बनाता है। यह आदि से अंत तक विश्वास पर टिका है जैसा कि शास्त्र में लिखा है, “धर्मी मनुष्य विश्वास से जीवित रहेगा।” PS
|
18. {सबने पाप किया है} PS उन लोगों को जो सत्य की अधर्म से दबाते हैं, बुरे कर्मों और हर बुराई पर स्वर्ग से परमेश्वर का कोप प्रकट होगा।
|
19. और ऐसा हो रहा है क्योंकि परमेश्वर के बारे में वे पूरी तरह जानते है क्योंकि परमेश्वर ने इसे उन्हें बताया है। PEPS
|
20. जब से संसार की रचना हुई उसकी अदृश्य विशेषताएँ अनन्त शक्ति और परमेश्वरत्व साफ साफ दिखाई देते हैं क्योंकि उन वस्तुओं से वे पूरी तरह जानी जा सकती हैं, जो परमेश्वर ने रचीं। इसलिए लोगों के पास कोई बहाना नहीं। PEPS
|
21. यद्यपि वे परमेश्वर को जानते है किन्तु वे उसे परमेश्वर के रूप में सम्मान या धन्यवाद नहीं देते। बल्कि वे अपने बिचारों में निरर्थक हो गये। और उनके जड़ मन अन्धेरे से भर गये।
|
23. और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्यों, चिड़ियाओं, पशुओं और साँपों से मिलती जुलती मूर्तियों में उन्होंने ढाल दिया। PEPS
|
24. इसलिए परमेश्वर ने उन्हें मन की बुरी इच्छाओं के हाथों सौंप दिया। वे दुराचार में पड़ कर एक दूसरे के शरीरों का अनादर करने लगे।
|
25. उन्होंने झूठ के साथ परमेश्वर के सत्य का सौदा किया और वे सृष्टि के बनाने वाले को छोड़ कर उसकी बनायी सृष्टि की उपासना सेवा करने लगे। परमेश्वर धन्य है। आमीन। PEPS
|
26. इसलिए परमेश्वर ने उन्हें तुच्छ वासनाओं के हाथों सौंप दिया। उनकी स्त्रियाँ स्वाभाविक यौन सम्बन्धों की बजाय अस्वाभाविक यौन सम्बन्ध रखने लगी।
|
27. इसी तरह पुरुषों ने स्त्रियों के साथ स्वाभाविक संभोग छोड़ दिया और वे आपस में ही वासना में जलने लगे। और पुरुष परस्पर एक दूसरे के साथ बुरे कर्म करने लगे। उन्हें अपने भ्रष्टाचार का यथोचित फल भी मिलने लगा। PEPS
|
28. और क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को पहचानने से मना कर दिया सो परमेश्वर ने उन्हें कुबुद्धि के हाथों सौंप दिया। और ये ऐसे अनुचित काम करने लगे जो नहीं करने चाहिये थे।
|
29. वे हर तरह के अधर्म, पाप, लालच और वैर से भर गये। वे डाह, हत्या, लड़ाई-झगड़े, छल-छद्म और दुर्भावना से भरे हैं। वे दूसरों का सदा अहित सोचते हैं। वे कहानियाँ घड़ते रहते हैं।
|
30. वे पर निन्दक हैं, और परमेश्वर से घृणा करते हैं। वे उद्दण्ड हैं, अहंकारी हैं, बड़बोला हैं, बुराई के जन्मदाता हैं, और माता-पिता की आज्ञा नहीं मानते।
|
32. चाहे वे परमेश्वर की धर्मपूर्ण विधि को जानते हैं जो बताती है कि जो ऐसी बातें करते हैं, वे मौत के योग्य हैं, फिर भी वे न केवल उन कामों को करते है, बल्कि वैसा करनेवालों का समर्थन भी करते हैं। PE
|