पवित्र बाइबिल

ऐसी तो रीड वर्शन (ESV)
रोमियो
1. [PS]सो यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तने का क्या मूल्य?
2. हर प्रकार से बहुत कुछ। क्योंकि सबसे पहले परमेश्वर का उपदेश तो उन्हें ही सौंपा गया।
3. यदि उनमें से कुछ विश्वासघाती हो भी गये तो क्या है? क्या उनका विश्वासघातीपन परमेश्वर की विश्वासपूर्णता को बेकार कर देगा?
4. निश्चय ही नहीं, यदि हर कोई झूठा भी है तो भी परमेश्वर सच्चा ठहरेगा। जैसा कि शास्त्र में लिखा है: [PE][PBR] [QS]“ताकि जब तू कहे तू उचित सिद्ध हो [QE][QS2]और जब तेरा न्याय हो, तू विजय पाये।” --भजन संहिता 51:4-- [QE][PBR]
5. [PS]सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।)
6. निश्चय ही नहीं, नहीं तो वह जगत का न्याय कैसे करेगा। [PE]
7. [PS]किन्तु तुम कह सकते हो: “जब मेरी मिथ्यापूर्णता से परमेश्वर की सत्यपूर्णता और अधिक उजागर होती है तो इससे उसकी महिमा ही होती है, फिर भी मैं दोषी करार क्यों दिया जाता हूँ?”
8. और फिर क्यों न कहे: “आओ! बुरे काम करें ताकि भलाई प्रकट हो।” जैसा कि हमारे बारे में निन्दा करते हुए कुछ लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। ऐसे लोग दोषी करार दिये जाने योग्य है। वे सभी दोषी हैं। [PE]
9. {#1कोई भी धर्मी नहीं } [PS]तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं।
10. शास्त्र कहता है: [PE][PBR] [QS]“कोई भी धर्मी नहीं, एक भी! [QE]
[QS2]11. कोई समझदार नहीं, एक भी! [QE][QS]कोई ऐसा नहीं, जो प्रभु को खोजता! [QE]
12. [QS]सब भटक गए, [QE][QS2]वे सब ही निकम्मे बन गए, [QE][QS]साथ-साथ सब के सब, कोई भी यहाँ पर दया तो दिखाता नहीं, एक भी नहीं!” --भजन संहिता 14:1-3-- [QE][PBR]
13. [QS]“उनके मुँह खुली कब्र से बने हैं, [QE][QS2]वे अपनी जीभ से छल करते हैं।” --भजन संहिता 5:9-- [QE][PBR] [QS]“उनके होठों पर नाग विष रहता हैं।” --भजन संहिता 140:3-- [QE][PBR]
14. [QS]“शाप से कटुता से मुँह भरे रहते है।” --भजन संहिता 10:7-- [QE][PBR]
15. [QS]“हत्या करने को वे हरदम उतावले रहते है। [QE]
[QS2]16. वे जहाँ कहीं जाते नाश ही करते हैं, संताप देते हैं। [QE]
17. [QS]उनको शांति के मार्ग का पता नहीं।” --यशायाह 59:7-8-- [QE][PBR]
18. [QS]“उनकी आँखों में प्रभु का भय नहीं है।” --भजन संहिता 36:1-- [QE][PBR]
19. [PS]अब हम यह जानते हैं कि व्यवस्था में जो कुछ कहा गया है, वह उन को सम्बोधित है जो व्यवस्था के अधीन हैं। ताकि हर मुँह को बन्द किया जा सके और सारा जगत परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
20. व्यवस्था के कामों से कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के सामने धर्मी सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि व्यवस्था से जो कुछ मिलता है, वह है पाप की पहचान करना। [PE]
21. {#1परमेश्वर मनुष्यों को धर्मी कैसे बनाता है } [PS]किन्तु अब वास्तव में मनुष्य के लिये यह दर्शाया गया है कि परमेश्वर व्यवस्था के बिना ही उसे अपने प्रति सही कैसे बनाता है। निश्चय ही व्यवस्था और नबियों ने इसकी साक्षी दी है।
22. सभी विश्वासियों के लिये यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट की गयी है बिना किसी भेदभाव के।
23. क्योंकि सभी ने पाप किये है और सभी परमेश्वर की महिमा से रहित है।
24. किन्तु यीशु मसीह में सम्पन्न किए गए अनुग्रह के छुटकारे के द्वारा उसके अनुग्रह से वे एक सेंतमेत के उपहार के रूप में धर्मी ठहराये गये हैं।
25. परमेश्वर ने यीशु मसीह को, उसमें विश्वास के द्वारा पापों से छुटकारा दिलाने के लिये, लोगों को दिया। उसने यह काम यीशु मसीह के बलिदान के रूप में किया। ऐसा यह प्रमाणित करने के लिए किया गया कि परमेश्वर सहनशील है क्योंकि उसने पहले उन्हें उनके पापों का दण्ड दिये बिना छोड़ दिया था।
26. आज भी अपना न्याय दर्शाने के लिए कि वह न्यायपूर्ण है और न्यायकर्ता भी है, उनका जो यीशु मसीह में विश्वास रखते हैं। [PE]
27. [PS]तो फिर घमण्ड करना कहाँ रहा? वह तो समाप्त हो गया। भला कैसे? क्या उस विधि से जिसमें व्यवस्था जिन कर्मों की अपेक्षा करती है, उन्हें किया जाता है? नहीं, बल्कि उस विधि से जिसमें विश्वास समाया है।
28. कोई व्यक्ति व्यवस्था के कामों के अनुसार चल कर नहीं बल्कि विश्वास के द्वारा ही धर्मी बन सकता है।
29. या परमेश्वर क्या बस यहूदियों का है? क्या वह ग़ैर यहूदियों का नहीं है? हाँ वह ग़ैर यहूदियों का भी है।
30. क्योंकि परमेश्वर एक है। वही उनको जिनका उनके विश्वास के आधार पर ख़तना हुआ है, और उनको जिनका ख़तना नहीं हुआ है उसी विश्वास के द्वारा, धर्मी ठहरायेगा।
31. सो क्या, हम विश्वास के आधार पर व्यवस्था को व्यर्थ ठहरा रहे है? निश्चय ही नहीं। बल्कि हम तो व्यवस्था को और अधिक शक्तिशाली बना रहे हैं। [PE]
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1 सो यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तने का क्या मूल्य? 2 हर प्रकार से बहुत कुछ। क्योंकि सबसे पहले परमेश्वर का उपदेश तो उन्हें ही सौंपा गया। 3 यदि उनमें से कुछ विश्वासघाती हो भी गये तो क्या है? क्या उनका विश्वासघातीपन परमेश्वर की विश्वासपूर्णता को बेकार कर देगा? 4 निश्चय ही नहीं, यदि हर कोई झूठा भी है तो भी परमेश्वर सच्चा ठहरेगा। जैसा कि शास्त्र में लिखा है: “ताकि जब तू कहे तू उचित सिद्ध हो और जब तेरा न्याय हो, तू विजय पाये।” भजन संहिता 51:4 5 सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।) 6 निश्चय ही नहीं, नहीं तो वह जगत का न्याय कैसे करेगा। 7 किन्तु तुम कह सकते हो: “जब मेरी मिथ्यापूर्णता से परमेश्वर की सत्यपूर्णता और अधिक उजागर होती है तो इससे उसकी महिमा ही होती है, फिर भी मैं दोषी करार क्यों दिया जाता हूँ?” 8 और फिर क्यों न कहे: “आओ! बुरे काम करें ताकि भलाई प्रकट हो।” जैसा कि हमारे बारे में निन्दा करते हुए कुछ लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। ऐसे लोग दोषी करार दिये जाने योग्य है। वे सभी दोषी हैं। कोई भी धर्मी नहीं 9 तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं। 10 शास्त्र कहता है: “कोई भी धर्मी नहीं, एक भी! 11 कोई समझदार नहीं, एक भी! कोई ऐसा नहीं, जो प्रभु को खोजता! 12 सब भटक गए, वे सब ही निकम्मे बन गए, साथ-साथ सब के सब, कोई भी यहाँ पर दया तो दिखाता नहीं, एक भी नहीं!” भजन संहिता 14:1-3 13 “उनके मुँह खुली कब्र से बने हैं, वे अपनी जीभ से छल करते हैं।” भजन संहिता 5:9 “उनके होठों पर नाग विष रहता हैं।” भजन संहिता 140:3 14 “शाप से कटुता से मुँह भरे रहते है।” भजन संहिता 10:7 15 “हत्या करने को वे हरदम उतावले रहते है। 16 वे जहाँ कहीं जाते नाश ही करते हैं, संताप देते हैं। 17 उनको शांति के मार्ग का पता नहीं।” यशायाह 59:7-8 18 “उनकी आँखों में प्रभु का भय नहीं है।” भजन संहिता 36:1 19 अब हम यह जानते हैं कि व्यवस्था में जो कुछ कहा गया है, वह उन को सम्बोधित है जो व्यवस्था के अधीन हैं। ताकि हर मुँह को बन्द किया जा सके और सारा जगत परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे। 20 व्यवस्था के कामों से कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के सामने धर्मी सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि व्यवस्था से जो कुछ मिलता है, वह है पाप की पहचान करना। परमेश्वर मनुष्यों को धर्मी कैसे बनाता है 21 किन्तु अब वास्तव में मनुष्य के लिये यह दर्शाया गया है कि परमेश्वर व्यवस्था के बिना ही उसे अपने प्रति सही कैसे बनाता है। निश्चय ही व्यवस्था और नबियों ने इसकी साक्षी दी है। 22 सभी विश्वासियों के लिये यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट की गयी है बिना किसी भेदभाव के। 23 क्योंकि सभी ने पाप किये है और सभी परमेश्वर की महिमा से रहित है। 24 किन्तु यीशु मसीह में सम्पन्न किए गए अनुग्रह के छुटकारे के द्वारा उसके अनुग्रह से वे एक सेंतमेत के उपहार के रूप में धर्मी ठहराये गये हैं। 25 परमेश्वर ने यीशु मसीह को, उसमें विश्वास के द्वारा पापों से छुटकारा दिलाने के लिये, लोगों को दिया। उसने यह काम यीशु मसीह के बलिदान के रूप में किया। ऐसा यह प्रमाणित करने के लिए किया गया कि परमेश्वर सहनशील है क्योंकि उसने पहले उन्हें उनके पापों का दण्ड दिये बिना छोड़ दिया था। 26 आज भी अपना न्याय दर्शाने के लिए कि वह न्यायपूर्ण है और न्यायकर्ता भी है, उनका जो यीशु मसीह में विश्वास रखते हैं। 27 तो फिर घमण्ड करना कहाँ रहा? वह तो समाप्त हो गया। भला कैसे? क्या उस विधि से जिसमें व्यवस्था जिन कर्मों की अपेक्षा करती है, उन्हें किया जाता है? नहीं, बल्कि उस विधि से जिसमें विश्वास समाया है। 28 कोई व्यक्ति व्यवस्था के कामों के अनुसार चल कर नहीं बल्कि विश्वास के द्वारा ही धर्मी बन सकता है। 29 या परमेश्वर क्या बस यहूदियों का है? क्या वह ग़ैर यहूदियों का नहीं है? हाँ वह ग़ैर यहूदियों का भी है। 30 क्योंकि परमेश्वर एक है। वही उनको जिनका उनके विश्वास के आधार पर ख़तना हुआ है, और उनको जिनका ख़तना नहीं हुआ है उसी विश्वास के द्वारा, धर्मी ठहरायेगा। 31 सो क्या, हम विश्वास के आधार पर व्यवस्था को व्यर्थ ठहरा रहे है? निश्चय ही नहीं। बल्कि हम तो व्यवस्था को और अधिक शक्तिशाली बना रहे हैं।
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