पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
2 इतिहास
1. तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिरयाह नाम पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था :
2. उस ने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया।
3. परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की थी।
4. और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया।
5. और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और सांकलों की नक्काशी कराई।
6. फिर शोभा देने के लिये उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का था।
7. और उस ने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, भीतों और किवाडों को सोने से मढ़वाया, और भीतों पर करूब खुदवाए।
8. फिर उस ने भवन के परमपवित्रा स्थान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उस ने उसे छे सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया।
9. और सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। और उस ने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया।
10. फिर भवन के परमपवित्रा स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए।
11. करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था।
12. और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा था, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ था।
13. इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने अपने पांवों के बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे।
14. फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए।
15. और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर थी वह पांच पांच हाथ की थी।
16. फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलों पर लटकाए।
17. उस ने इन ख्म्भों को मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बायें खम्भे का नाम बोअज़ रखा।

Notes

No Verse Added

Total 36 Chapters, Current Chapter 3 of Total Chapters 36
2 इतिहास 3
1. तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिरयाह नाम पहाड़ पर उसी स्थान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया था :
2. उस ने अपने राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया।
3. परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्थात् उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की थी।
4. और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया।
5. और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृक्ष की और सांकलों की नक्काशी कराई।
6. फिर शोभा देने के लिये उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का था।
7. और उस ने भवन को, अर्थात् उसकी कड़ियों, डेवढ़ियों, भीतों और किवाडों को सोने से मढ़वाया, और भीतों पर करूब खुदवाए।
8. फिर उस ने भवन के परमपवित्रा स्थान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की थी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी; और उस ने उसे छे सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया।
9. और सोने की कीलों का तौल पचास शेकेल था। और उस ने अटारियों को भी सोने से मढ़वाया।
10. फिर भवन के परमपवित्रा स्थान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए।
11. करूबों के पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्थात् एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ था; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का था और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ था।
12. और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा था, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ था।
13. इन करूबों के पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपने अपने पांवों के बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे।
14. फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपड़े का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए।
15. और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर थी वह पांच पांच हाथ की थी।
16. फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भों के ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलों पर लटकाए।
17. उस ने इन ख्म्भों को मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बायें खम्भे का नाम बोअज़ रखा।
Total 36 Chapters, Current Chapter 3 of Total Chapters 36
×

Alert

×

hindi Letters Keypad References