5. और यूसुफ तो मि में पहिले ही आ चुका था। याकूब के निज वंश में जो उत्पन्न हुए वे सब सत्तर प्राणी थे।
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7. और इस्राएल की सन्तान फूलने फलने लगी; और वे अत्यन्त सामर्थी बनते चले गए; और इतना बढ़ गए कि कुल देश उन से भर गया।।
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10. इसलिये आओ, हम उनके साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करें, कहीं ऐसा न हो कि जब वे बहुत बढ़ जाएं, और यदि संग्राम का समय आ पड़े, तो हमारे बैरियों से मिलकर हम से लड़ें और इस देश से निकल जाएं।
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11. इसलिये उन्हों ने उन पर बेगारी करानेवालों को नियुक्त किया कि वे उन पर भार डाल डालकर उनको दु:ख दिया करें; तब उन्हों ने फिरौन के लिये पितोम और रामसेस नाम भण्डारवाले नगरों को बनाया।
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12. पर ज्यों ज्यों वे उनको दु:ख देते गए त्यों त्यों वे बढ़ते और फैलते चले गए; इसलिये वे इस्राएलियों से अत्यन्त डर गए।
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14. और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भांति भांति के काम की कठिन सेवा से दु:खी कर डाला; जिस किसी काम में वे उन से सेवा करवाते थे उस में वे कठोरता का व्यवहार करते थे।
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16. कि जब तुम इब्री स्त्रियों को बच्चा उत्पन्न होने के समय जन्मने के पत्थरों पर बैठी देखो, तब यदि बेटा हो, तो उसे मार डालना; और बेटी हो, तो जीवित रहने देना।
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17. परन्तु वे धाइयां परमेश्वर का भय मानती थीं, इसलिये मि के राजा की आज्ञा न मानकर लड़कों को भी जीवित छोड़ देती थीं।
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19. धाइयों ने फिरौन को उतर दिया, कि इब्री स्त्रियों मिद्दी स्त्रियों के समान नहीं हैं; वे ऐसी फुर्तीली हैं कि धाइयों के पहुंचने से पहिले ही उनको बच्चा उत्पन्न हो जाता है।
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22. तब फिरौन ने अपनी सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी, कि इब्रियों के जितने बेटे उत्पन्न हों उन सभों को तुम नील नदी में डाल देना, और सब बेटियों को जीवित रख छोड़ना।।
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