पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
1 कुरिन्थियों
1. {प्रेम महान है} [PS] यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ।
2. और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं*।
3. और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। [PE][PS]
4. प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5. अशोभनीय व्यवहार नहीं करता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6. कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
7. वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है*, सब बातों में धीरज धरता है। (1 कुरि. 13:4) [PE][PS]
8. प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्त हो जाएँगी, भाषाएँ मौन हो जाएँगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
9. क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
10. परन्तु जब सर्वसिद्ध* आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। [PE][PS]
11. जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों के समान मन था बालकों सी समझ थी; परन्तु सयाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी।
12. अब हमें दर्पण में धुँधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने-सामने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहचानूँगा, जैसा मैं पहचाना गया हूँ।
13. पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी* है, पर इनमें सबसे बड़ा प्रेम है। [PE]

Notes

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1 कुरिन्थियों 13:31
1. {प्रेम महान है} PS यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूँ, और प्रेम रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ।
2. और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं*।
3. और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। PEPS
4. प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5. अशोभनीय व्यवहार नहीं करता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6. कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
7. वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है*, सब बातों में धीरज धरता है। (1 कुरि. 13:4) PEPS
8. प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्त हो जाएँगी, भाषाएँ मौन हो जाएँगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
9. क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
10. परन्तु जब सर्वसिद्ध* आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। PEPS
11. जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों के समान मन था बालकों सी समझ थी; परन्तु सयाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी।
12. अब हमें दर्पण में धुँधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने-सामने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहचानूँगा, जैसा मैं पहचाना गया हूँ।
13. पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी* है, पर इनमें सबसे बड़ा प्रेम है। PE
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