पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
1 कुरिन्थियों
1. {विवाह के सिद्धांत} [PS] उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए।
2. परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्‍नी, और हर एक स्त्री का पति हो। [PE][PS]
3. पति अपनी पत्‍नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्‍नी भी अपने पति का।
4. पत्‍नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्‍नी को। [PE][PS]
5. तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति* से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। [PE][PS]
6. परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा।
7. मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्‍वर की ओर से विशेष वरदान* मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। [PS]
8. {अविवाहितों के लिये सलाह} [PS] परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ।
9. परन्तु यदि वे संयम न कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। [PS]
10. {विवाहितों के लिये सलाह} [PS] जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्‍नी अपने पति से अलग न हो।
11. (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्‍नी को छोड़े। [PE][PS]
12. दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्‍नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो, तो वह उसे न छोड़े।
13. और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो; वह पति को न छोड़े।
14. क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्‍नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्‍नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। [PE][PS]
15. परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्‍वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है।
16. क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्‍नी का उद्धार करा लेगा? परमेश्‍वर की बुलाहट के अनुसार चलो [PE][PS]
17. पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्‍वर ने हर एक को बुलाया है*; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ।
18. जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए।
19. न खतना कुछ है, और न खतनारहित परन्तु परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। [PE][PS]
20. हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे।
21. यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर।
22. क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है।
23. तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो।
24. हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्‍वर के साथ रहे। [PS]
25. {विवाह सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर} [PS] कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिये जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूँ।
26. इसलिए मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे। [PE][PS]
27. यदि तेरे पत्‍नी है, तो उससे अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्‍नी नहीं, तो पत्‍नी की खोज न कर:
28. परन्तु यदि तू विवाह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुँवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसों को शारीरिक दुःख होगा, और मैं बचाना चाहता हूँ। [PE][PS]
29. हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्‍नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्‍नी नहीं।
30. और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, कि मानो उनके पास कुछ है नहीं।
31. और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं। [PE][PS]
32. मैं यह चाहता हूँ, कि तुम्हें चिन्ता न हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को कैसे प्रसन्‍न रखे।
33. परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है, कि अपनी पत्‍नी को किस रीति से प्रसन्‍न रखे।
34. विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपने पति को प्रसन्‍न रखे। [PE][PS]
35. यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिए कि जैसा उचित है; ताकि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो। [PE][PS]
36. और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपनी उस कुँवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल रही है, और प्रयोजन भी हो, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इसमें पाप नहीं, वह उसका विवाह होने दे।
37. परन्तु यदि वह मन में फैसला करता है, और कोई अत्यावश्यकता नहीं है, और वह अपनी अभिलाषाओं को नियंत्रित कर सकता है, तो वह विवाह न करके अच्छा करता है।
38. तो जो अपनी कुँवारी का विवाह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है। [PE][PS]
39. जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उससे बंधी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिससे चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में।
40. परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्‍वर का आत्मा मुझ में भी है। [PE]

Notes

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1 कुरिन्थियों 7:33
1. {विवाह के सिद्धांत} PS उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को छूए।
2. परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्‍नी, और हर एक स्त्री का पति हो। PEPS
3. पति अपनी पत्‍नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्‍नी भी अपने पति का।
4. पत्‍नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्‍नी को। PEPS
5. तुम एक दूसरे से अलग रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति* से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। PEPS
6. परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है कि आज्ञा।
7. मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्‍वर की ओर से विशेष वरदान* मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। PS
8. {अविवाहितों के लिये सलाह} PS परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ।
9. परन्तु यदि वे संयम कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। PS
10. {विवाहितों के लिये सलाह} PS जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्‍नी अपने पति से अलग हो।
11. (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और पति अपनी पत्‍नी को छोड़े। PEPS
12. दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्‍नी विश्वास रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो, तो वह उसे छोड़े।
13. और जिस स्त्री का पति विश्वास रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो; वह पति को छोड़े।
14. क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास रखता हो, वह पत्‍नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्‍नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। PEPS
15. परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्‍वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है।
16. क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्‍नी का उद्धार करा लेगा? परमेश्‍वर की बुलाहट के अनुसार चलो PEPS
17. पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्‍वर ने हर एक को बुलाया है*; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ।
18. जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना कराए।
19. खतना कुछ है, और खतनारहित परन्तु परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। PEPS
20. हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे।
21. यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर।
22. क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है।
23. तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास बनो।
24. हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्‍वर के साथ रहे। PS
25. {विवाह सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर} PS कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिये जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूँ।
26. इसलिए मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे। PEPS
27. यदि तेरे पत्‍नी है, तो उससे अलग होने का यत्न कर: और यदि तेरे पत्‍नी नहीं, तो पत्‍नी की खोज कर:
28. परन्तु यदि तू विवाह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुँवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसों को शारीरिक दुःख होगा, और मैं बचाना चाहता हूँ। PEPS
29. हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्‍नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्‍नी नहीं।
30. और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, कि मानो उनके पास कुछ है नहीं।
31. और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं। PEPS
32. मैं यह चाहता हूँ, कि तुम्हें चिन्ता हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को कैसे प्रसन्‍न रखे।
33. परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है, कि अपनी पत्‍नी को किस रीति से प्रसन्‍न रखे।
34. विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपने पति को प्रसन्‍न रखे। PEPS
35. यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिए कि जैसा उचित है; ताकि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो। PEPS
36. और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपनी उस कुँवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल रही है, और प्रयोजन भी हो, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इसमें पाप नहीं, वह उसका विवाह होने दे।
37. परन्तु यदि वह मन में फैसला करता है, और कोई अत्यावश्यकता नहीं है, और वह अपनी अभिलाषाओं को नियंत्रित कर सकता है, तो वह विवाह करके अच्छा करता है।
38. तो जो अपनी कुँवारी का विवाह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है। PEPS
39. जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उससे बंधी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिससे चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में।
40. परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्‍वर का आत्मा मुझ में भी है। PE
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