1. {#3हन्ना की प्रार्थना } [PS]तब हन्ना ने प्रार्थना करके कहा, [PE][QS]“मेरा मन यहोवा के कारण मगन है; [QE][QS]मेरा सींग यहोवा के कारण ऊँचा हुआ है। [QE][QS]मेरा मुँह मेरे शत्रुओं के विरुद्ध खुल गया, [QE][QS]क्योंकि मैं तेरे किए हुए उद्धार से आनन्दित हूँ। (लूका 1:46,47) [QE]
2. [QS]“यहोवा के तुल्य कोई पवित्र नहीं, [QE][QS]क्योंकि तुझको छोड़ और कोई है ही नहीं; [QE][QS]और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है। [QE]
3. [QS]फूलकर अहंकार की ओर बातें मत करो, [QE][QS]और अंधेर की बातें तुम्हारे मुँह से न निकलें; [QE][QS]क्योंकि यहोवा ज्ञानी परमेश्वर है, [QE][QS]और कामों को तौलनेवाला है। [QE]
4. [QS]शूरवीरों के धनुष टूट गए, [QE][QS]और ठोकर खानेवालों की कटि में बल का फेंटा कसा गया। [QE]
5. [QS]जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिये मजदूरी करनी पड़ी, [QE][QS]जो भूखे थे वे फिर ऐसे न रहे। [QE][QS]वरन् जो बाँझ थी उसके सात हुए, [QE][QS]और अनेक बालकों की माता घुलती जाती है। (लूका 1:53) [QE]
6. [QS]यहोवा मारता है और जिलाता भी है; [QE][QS]वही अधोलोक में उतारता और उससे निकालता भी है। [QE]
7. [QS]यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, [QE][QS]वही नीचा करता और ऊँचा भी करता है। (लूका 1:52) [QE]
8. [QS]वह कंगाल को धूलि में से उठाता; [QE][QS]और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है, [QE][QS]ताकि उनको अधिपतियों के संग बैठाए, [QE][QS]और महिमायुक्त सिंहासन के अधिकारी बनाए। [QE][QS]क्योंकि पृथ्वी के खम्भे यहोवा के हैं, [QE][QS]और उसने उन पर जगत को धरा है। [QE]
9. [QS]“वह अपने भक्तों के पाँवों को सम्भाले रहेगा, [QE][QS]परन्तु दुष्ट अंधियारे में चुपचाप पड़े रहेंगे; [QE][QS]क्योंकि कोई मनुष्य अपने बल के कारण प्रबल न होगा। [QE]
10. [QS]जो यहोवा से झगड़ते हैं वे चकनाचूर होंगे; [QE][QS]वह उनके विरुद्ध आकाश में गरजेगा। [QE][QS]यहोवा पृथ्वी की छोर तक न्याय करेगा; [QE][QS]और अपने राजा को बल देगा*, [QE][QS]और अपने अभिषिक्त के सींग को ऊँचा करेगा।” (लूका 1:69) [QE]
11. [PS]तब एल्काना रामाह को अपने घर चला गया। और वह बालक एली याजक के सामने यहोवा की सेवा टहल करने लगा। [QE]
12. {#1एली के पुत्र } [PS]एली के पुत्र तो लुच्चे थे*; उन्होंने यहोवा को न पहचाना।
13. याजकों की रीति लोगों के साथ यह थी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता था तब याजक का सेवक माँस पकाने के समय एक त्रिशूली काँटा हाथ में लिये हुए आकर,
14. उसे कड़ाही, या हाँड़ी, या हंडे, या तसले के भीतर डालता था; और जितना माँस काँटे में लग जाता था उतना याजक आप ले लेता था। ऐसा ही वे शीलो में सारे इस्राएलियों से किया करते थे जो वहाँ आते थे।
15. और चर्बी जलाने से पहले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ानेवाले से कहता था, “भूनने के लिये याजक को माँस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही माँस लेगा।”
16. और जब कोई उससे कहता, “निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना,” तब वह कहता था, “नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूँगा।”
17. इसलिए उन जवानों का पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे। [QE]
18. {#1बालक शमूएल की सेवकाई } [PS]परन्तु शमूएल जो बालक था सनी का एपोद* पहने हुए यहोवा के सामने सेवा टहल किया करता था।
19. और उसकी माता प्रति वर्ष उसके लिये एक छोटा सा बागा बनाकर जब अपने पति के संग प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने आती थी तब बागे को उसके पास लाया करती थी।
20. एली ने एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देकर कहा, “यहोवा इस अर्पण किए हुए बालक के बदले जो उसको अर्पण किया गया है तुझको इस पत्नी से वंश दे;” तब वे अपने यहाँ चले गए।
21. यहोवा ने हन्ना की सुधि ली, और वह गर्भवती हुई और उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ उत्पन्न हुईं। और बालक शमूएल यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया। [QE]
22. {#1एली के घराने के विरुद्ध भविष्यद्वाणी } [PS]एली तो अति बूढ़ा हो गया था, और उसने सुना कि उसके पुत्र सारे इस्राएल से कैसा-कैसा व्यवहार करते हैं, वरन् मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियों के संग कुकर्म भी करते हैं।
23. तब उसने उनसे कहा, “तुम ऐसे-ऐसे काम क्यों करते हो? मैं इन सब लोगों से तुम्हारे कुकर्मों की चर्चा सुना करता हूँ।
24. हे मेरे बेटों, ऐसा न करो, क्योंकि जो समाचार मेरे सुनने में आता है वह अच्छा नहीं; तुम तो यहोवा की प्रजा से अपराध कराते हो।
25. यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का अपराध करे, तब तो परमेश्वर उसका न्याय करेगा; परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरुद्ध पाप करे, तो उसके लिये कौन विनती करेगा?” तो भी उन्होंने अपने पिता की बात न मानी; क्योंकि यहोवा की इच्छा उन्हें मार डालने की थी।
26. परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उससे प्रसन्न रहते थे। (लूका 2:52)
27. परमेश्वर का एक जन एली के पास जाकर उससे कहने लगा, “यहोवा यह कहता है, कि जब तेरे मूलपुरुष का घराना मिस्र में फ़िरौन के घराने के वश में था, तब क्या मैं उस पर निश्चय प्रगट न हुआ था?
28. और क्या मैंने उसे इस्राएल के सब गोत्रों में से इसलिए चुन नहीं लिया था, कि मेरा याजक होकर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावे चढ़ाए, और धूप जलाए, और मेरे सामने एपोद पहना करे? और क्या मैंने तेरे मूलपुरुष के घराने को इस्राएलियों के सारे हव्य न दिए थे?
29. इसलिए मेरे मेलबलि और अन्नबलि को जिनको मैंने अपने धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, उन्हें तुम लोग क्यों पाँव तले रौंदते हो? और तू क्यों अपने पुत्रों का मुझसे अधिक आदर करता है, कि तुम लोग मेरी इस्राएली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेटें खा खाके मोटे हो जाओ?
30. इसलिए इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैंने कहा तो था, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरुष का घराना मेरे सामने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझसे दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूँगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएँगे।
31. सुन, वे दिन आते हैं, कि मैं तेरा भुजबल और तेरे मूलपुरुष के घराने का भुजबल ऐसा तोड़ डालूँगा, कि तेरे घराने में कोई बूढ़ा होने न पाएगा।
32. इस्राएल का कितना ही कल्याण क्यों न हो, तो भी तुझे मेरे धाम का दुःख देख पड़ेगा, और तेरे घराने में कोई कभी बूढ़ा न होने पाएगा।
33. मैं तेरे कुल के सब किसी से तो अपनी वेदी की सेवा न छीनूँगा, परन्तु तो भी तेरी आँखें देखती रह जाएँगी, और तेरा मन शोकित होगा, और तेरे घर की बढ़ती सब अपनी पूरी जवानी ही में मर मिटेंगे।
34. और मेरी इस बात का चिन्ह वह विपत्ति होगी जो होप्नी और पीनहास नामक तेरे दोनों पुत्रों पर पड़ेगी; अर्थात् वे दोनों के दोनों एक ही दिन मर जाएँगे।
35. और मैं अपने लिये एक विश्वासयोग्य याजक ठहराऊँगा, जो मेरे हृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊँगा और स्थिर करूँगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे-आगे सब दिन चला फिरा करेगा।
36. और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घराने में बचा रहेगा वह उसी के पास जाकर एक छोटे से टुकड़े चाँदी के या एक रोटी के लिये दण्डवत् करके कहेगा, याजक के किसी काम में मुझे लगा, जिससे मुझे एक टुकड़ा रोटी मिले।” [QE]