पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
प्रेरितों के काम
1. {पौलुस और तीमुथियुस} [PS] फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था।
2. वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था।
3. पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था। [PE][PS]
4. और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे।
5. इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई। [PS]
6. {पौलुस का दर्शन} [PS] और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया।
7. और उन्होंने मूसिया* के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया।
8. अतः वे मूसिया से होकर त्रोआस* में आए। [PE][PS]
9. वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।”
10. उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्‍वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है। [PE][PS]
11. इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए।
12. वहाँ से हम फिलिप्पी* में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे।
13. सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे। [PS]
14. {यूरोप कि प्रथम विश्वासी} [PS] और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए।
15. और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई। [PS]
16. {बुरी आत्मा से छुटकारा} [PS] जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी।
17. वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्‍वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।”
18. वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।” [PE][PS]
19. जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए।
20. और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; (1 राजा. 18:17)
21. और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। [PS]
22. {पौलुस और सीलास बन्दीगृह में} [PS] तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी।
23. और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे।
24. उसने ऐसी आज्ञा पा कर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। [PS]
25. {पौलुस और सीलास को बन्दीगृह से छुटकारा} [PS] आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे।
26. कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए। [PE][PS]
27. और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा।
28. परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।” [PE][PS]
29. तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा; [PS]
30. {दरोगा का हृदय परिवर्तन} [PS] और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?”
31. उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” [PE][PS]
32. और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया।
33. और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।
34. और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्‍वर पर विश्वास करके आनन्द किया। [PE][PS]
35. जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो।
36. दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।” [PE][PS]
37. परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।”
38. सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए,
39. और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ। [PE][PS]
40. वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए। [PE]

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प्रेरितों के काम 16
1. {पौलुस और तीमुथियुस} PS फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था।
2. वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था।
3. पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था। PEPS
4. और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे।
5. इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई। PS
6. {पौलुस का दर्शन} PS और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया।
7. और उन्होंने मूसिया* के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने दिया।
8. अतः वे मूसिया से होकर त्रोआस* में आए। PEPS
9. वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।”
10. उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्‍वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है। PEPS
11. इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए।
12. वहाँ से हम फिलिप्पी* में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे।
13. सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे। PS
14. {यूरोप कि प्रथम विश्वासी} PS और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए।
15. और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई। PS
16. {बुरी आत्मा से छुटकारा} PS जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी।
17. वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्‍वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।”
18. वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।” PEPS
19. जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए।
20. और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; (1 राजा. 18:17)
21. और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। PS
22. {पौलुस और सीलास बन्दीगृह में} PS तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी।
23. और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे।
24. उसने ऐसी आज्ञा पा कर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। PS
25. {पौलुस और सीलास को बन्दीगृह से छुटकारा} PS आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे।
26. कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए। PEPS
27. और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा।
28. परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।” PEPS
29. तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा; PS
30. {दरोगा का हृदय परिवर्तन} PS और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?”
31. उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” PEPS
32. और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया।
33. और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।
34. और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्‍वर पर विश्वास करके आनन्द किया। PEPS
35. जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो।
36. दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।” PEPS
37. परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।”
38. सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए,
39. और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ। PEPS
40. वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए। PE
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