पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
व्यवस्थाविवरण
1. इस्राएलियों से जो वाचा के बाँधने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके ये ही वचन हैं, और जो वाचा उसने उनसे होरेब पहाड़ पर बाँधी थी यह उससे अलग है।
2. फिर मूसा ने सब इस्राएलियों को बुलाकर कहा, “जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फ़िरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुमने देखा है;
3. वे बड़े-बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े-बड़े चमत्कार तेरी आँखों के सामने हुए;
4. परन्तु यहोवा ने आज तक तुमको न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आँखें, और न सुनने के कान दिए हैं*। (रोमी. 11:8)
5. मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियाँ तेरे पैरों में पुरानी हुईं;
6. रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिए हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्‍वर हूँ।
7. और जब तुम इस स्थान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, ये दोनों युद्ध के लिये हमारा सामना करने को निकल आए, और हमने उनको जीतकर उनका देश ले लिया;
8. और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को निज भाग करके दे दिया।
9. इसलिए इस वाचा की बातों का पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सफल हो।
10. “आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य-मुख्य पुरुष, क्या गोत्र-गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरुष,
11. क्या तुम्हारे बाल-बच्चे और स्त्रियाँ, क्या लकड़हारे, क्या पानी भरने वाले, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने इसलिए खड़े हुए हो,
12. कि जो वाचा तेरा परमेश्‍वर यहोवा आज तुझ से बाँधता है, और जो शपथ वह आज तुझको खिलाता है, उसमें तू सहभागी हो जाए;
13. इसलिए कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझको दिया, और उस शपथ के अनुसार जो उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों से खाई थी, वह आज तुझको अपनी प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्‍वर ठहरे।
14. फिर मैं इस वाचा और इस शपथ में केवल तुम को नहीं,
15. परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहाँ हमारे परमेश्‍वर यहोवा के सामने खड़े हैं, और जो आज यहाँ हमारे संग नहीं हैं, सहभागी करता हूँ।
16. तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियों के बीचों बीच होकर आ रहे थे,
17. तब तुम ने उनकी कैसी-कैसी घिनौनी वस्तुएँ, और काठ, पत्थर, चाँदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं।
18. इसलिए ऐसा न हो, कि तुम लोगों में ऐसा कोई पुरुष, या स्त्री, या कुल, या गोत्र के लोग हों जिनका मन आज हमारे परमेश्‍वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियों के देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिससे विष या कड़वा फल निकले, (प्रेरि. 8:23)
19. और ऐसा मनुष्य इस श्राप के वचन सुनकर अपने को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपने मन के हठ पर चलूँ, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूँ, तो भी मेरा कुशल होगा।
20. यहोवा उसका पाप क्षमा नहीं करेगा, वरन् यहोवा के कोप और जलन का धुआँ उसको छा लेगा, और जितने श्राप इस पुस्तक में लिखे हैं वे सब उस पर आ पड़ेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। (प्रका. 22:18)
21. और व्यवस्था की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब श्रापों के अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रों में से हानि के लिये अलग करेगा।
22. और आनेवाली पीढ़ियों में तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्‍पन्‍न होंगे, और परदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएँगे, वे उस देश की विपत्तियाँ और उसमें यहोवा के फैलाए हुए रोग को देखकर,
23. और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहाँ तक जल गई है कि इसमें न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन् सदोम और गमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपने कोप और जलजलाहट में उलट दिया था;
24. और सब जातियों के लोग पूछेंगे, 'यहोवा ने इस देश से ऐसा क्यों किया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है?'
25. तब लोग यह उत्तर देंगे, 'उनके पूर्वजों के परमेश्‍वर यहोवा ने जो वाचा उनके साथ मिस्र देश से निकालने के समय बाँधी थी उसको उन्होंने तोड़ा है।
26. और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया था;
27. इसलिए यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक में लिखे हुए सब श्राप इस पर आ पड़ें;
28. और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।'
29. “गुप्त बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा के वश में हैं*; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश के वश में रहेंगी, इसलिए कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी की जाएँ। [PE]

Notes

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व्यवस्थाविवरण 29:10
1 इस्राएलियों से जो वाचा के बाँधने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके ये ही वचन हैं, और जो वाचा उसने उनसे होरेब पहाड़ पर बाँधी थी यह उससे अलग है। 2 फिर मूसा ने सब इस्राएलियों को बुलाकर कहा, “जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फ़िरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुमने देखा है; 3 वे बड़े-बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े-बड़े चमत्कार तेरी आँखों के सामने हुए; 4 परन्तु यहोवा ने आज तक तुमको न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आँखें, और न सुनने के कान दिए हैं*। (रोमी. 11:8) 5 मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियाँ तेरे पैरों में पुरानी हुईं; 6 रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिए हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्‍वर हूँ। 7 और जब तुम इस स्थान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, ये दोनों युद्ध के लिये हमारा सामना करने को निकल आए, और हमने उनको जीतकर उनका देश ले लिया; 8 और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को निज भाग करके दे दिया। 9 इसलिए इस वाचा की बातों का पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सफल हो। 10 “आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य-मुख्य पुरुष, क्या गोत्र-गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरुष, 11 क्या तुम्हारे बाल-बच्चे और स्त्रियाँ, क्या लकड़हारे, क्या पानी भरने वाले, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने इसलिए खड़े हुए हो, 12 कि जो वाचा तेरा परमेश्‍वर यहोवा आज तुझ से बाँधता है, और जो शपथ वह आज तुझको खिलाता है, उसमें तू सहभागी हो जाए; 13 इसलिए कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझको दिया, और उस शपथ के अनुसार जो उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों से खाई थी, वह आज तुझको अपनी प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्‍वर ठहरे। 14 फिर मैं इस वाचा और इस शपथ में केवल तुम को नहीं, 15 परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहाँ हमारे परमेश्‍वर यहोवा के सामने खड़े हैं, और जो आज यहाँ हमारे संग नहीं हैं, सहभागी करता हूँ। 16 तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियों के बीचों बीच होकर आ रहे थे, 17 तब तुम ने उनकी कैसी-कैसी घिनौनी वस्तुएँ, और काठ, पत्थर, चाँदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं। 18 इसलिए ऐसा न हो, कि तुम लोगों में ऐसा कोई पुरुष, या स्त्री, या कुल, या गोत्र के लोग हों जिनका मन आज हमारे परमेश्‍वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियों के देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिससे विष या कड़वा फल निकले, (प्रेरि. 8:23) 19 और ऐसा मनुष्य इस श्राप के वचन सुनकर अपने को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपने मन के हठ पर चलूँ, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूँ, तो भी मेरा कुशल होगा। 20 यहोवा उसका पाप क्षमा नहीं करेगा, वरन् यहोवा के कोप और जलन का धुआँ उसको छा लेगा, और जितने श्राप इस पुस्तक में लिखे हैं वे सब उस पर आ पड़ेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। (प्रका. 22:18) 21 और व्यवस्था की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब श्रापों के अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रों में से हानि के लिये अलग करेगा। 22 और आनेवाली पीढ़ियों में तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्‍पन्‍न होंगे, और परदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएँगे, वे उस देश की विपत्तियाँ और उसमें यहोवा के फैलाए हुए रोग को देखकर, 23 और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहाँ तक जल गई है कि इसमें न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन् सदोम और गमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपने कोप और जलजलाहट में उलट दिया था; 24 और सब जातियों के लोग पूछेंगे, 'यहोवा ने इस देश से ऐसा क्यों किया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है?' 25 तब लोग यह उत्तर देंगे, 'उनके पूर्वजों के परमेश्‍वर यहोवा ने जो वाचा उनके साथ मिस्र देश से निकालने के समय बाँधी थी उसको उन्होंने तोड़ा है। 26 और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया था; 27 इसलिए यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक में लिखे हुए सब श्राप इस पर आ पड़ें; 28 और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।' 29 “गुप्त बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा के वश में हैं*; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश के वश में रहेंगी, इसलिए कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी की जाएँ।
Total 34 अध्याय, Selected अध्याय 29 / 34
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