पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
एज्रा
1. {#1एज्रा का यरूशलेम को भेजा जाना } [PS]इन बातों के बाद अर्थात् फारस के राजा अर्तक्षत्र के दिनों में, एज्रा बाबेल से यरूशलेम को गया। वह सरायाह का पुत्र था। सरायाह अजर्याह का पुत्र था, अजर्याह हिल्किय्याह का,
2. हिल्किय्याह शल्लूम का, शल्लूम सादोक का, सादोक
3. अहीतूब का, अहीतूब अमर्याह का, अमर्याह अजर्याह का, अजर्याह मरायोत का,
4. मरायोत जरहयाह का, जरहयाह उज्जी का, उज्जी बुक्की का,
5. बुक्की अबीशू का, अबीशू पीनहास का, पीनहास एलीआजर का और एलीआजर हारून महायाजक का पुत्र था।
6. यही एज्रा मूसा की व्यवस्था के विषय जिसे इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा ने दी थी, निपुण शास्त्री था। उसके परमेश्‍वर यहोवा की कृपादृष्टि जो उस पर रही, इसके कारण राजा ने उसका मुँह माँगा वर दे दिया।
7. कुछ इस्राएली, और याजक लेवीय, गवैये, और द्वारपाल और मन्दिर के सेवकों में से कुछ लोग अर्तक्षत्र राजा के सातवें वर्ष में यरूशलेम को गए।
8. वह राजा के सातवें वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम को पहुँचा।
9. पहले महीने के पहले दिन को वह बाबेल से चल दिया, और उसके परमेश्‍वर की कृपादृष्टि उस पर रही, इस कारण पाँचवें महीने के पहले दिन वह यरूशलेम को पहुँचा।
10. क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ जान लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था।
11. जो चिट्ठी राजा अर्तक्षत्र ने एज्रा याजक और शास्त्री को दी थी जो यहोवा की आज्ञाओं के वचनों का, और उसकी इस्राएलियों में चलाई हुई विधियों का शास्त्री था, उसकी नकल यह है;
12. “एज्रा याजक के नाम जो स्वर्ग के परमेश्‍वर की व्यवस्था का पूर्ण शास्त्री है, उसको अर्तक्षत्र महाराजाधिराज की ओर से।
13. मैं यह आज्ञा देता हूँ, कि मेरे राज्य में जितने इस्राएली और उनके याजक और लेवीय अपनी इच्छा से यरूशलेम जाना चाहें, वे तेरे साथ जाने पाएँ।
14. तू तो राजा और उसके सातों मंत्रियों की ओर से इसलिए भेजा जाता है, कि अपने परमेश्‍वर की व्यवस्था के विषय जो तेरे पास है, यहूदा और यरूशलेम की दशा जान ले,
15. और जो चाँदी-सोना, राजा और उसके मंत्रियों ने इस्राएल के परमेश्‍वर को जिसका निवास यरूशलेम में है, अपनी इच्छा से दिया है,
16. और जितना चाँदी-सोना समस्त बाबेल प्रान्त में तुझे मिलेगा, और जो कुछ लोग और याजक अपनी इच्छा से अपने परमेश्‍वर के भवन के लिये जो यरूशलेम में है देंगे, उसको ले जाए।
17. इस कारण तू उस रुपये से फुर्ती के साथ बैल, मेढ़े और मेम्‍ने उनके योग्य अन्नबलि और अर्घ की वस्तुओं समेत मोल लेना और उस वेदी पर चढ़ाना, जो तुम्हारे परमेश्‍वर के यरूशलेम वाले भवन में है।
18. और जो चाँदी-सोना बचा रहे, उससे जो कुछ तुझे और तेरे भाइयों को उचित जान पड़े, वही अपने परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार करना।
19. तेरे परमेश्‍वर के भवन की उपासना के लिये जो पात्र तुझे सौंपे जाते हैं, उन्हें यरूशलेम के परमेश्‍वर के सामने दे देना।
20. इनसे अधिक जो कुछ तुझे अपने परमेश्‍वर के भवन के लिये आवश्यक जानकर देना पड़े, वह राज खजाने में से दे देना।
21. “मैं अर्तक्षत्र राजा यह आज्ञा देता हूँ, कि तुम महानद के पार के सब खजांचियों से जो कुछ एज्रा याजक, जो स्वर्ग के परमेश्‍वर की व्यवस्था का शास्त्री है, तुम लोगों से चाहे, वह फुर्ती के साथ किया जाए*।
22. अर्थात् सौ किक्कार तक चाँदी, सौ कोर तक गेहूँ, सौ बत तक दाखमधु, सौ बत तक तेल और नमक जितना चाहिये उतना दिया जाए।
23. जो-जो आज्ञा स्वर्ग के परमेश्‍वर की ओर से मिले, ठीक उसी के अनुसार स्वर्ग के परमेश्‍वर के भवन के लिये किया जाए, राजा और राजकुमारों के राज्य पर परमेश्‍वर का क्रोध क्यों भड़कने पाए।
24. फिर हम तुम को चिता देते हैं, कि परमेश्‍वर के उस भवन के किसी याजक, लेवीय, गवैये, द्वारपाल, नतीन या और किसी सेवक से कर, चुंगी, अथवा राहदारी लेने की आज्ञा नहीं है*।
25. “फिर हे एज्रा! तेरे परमेश्‍वर से मिली हुई बुद्धि के अनुसार जो तुझ में है, न्यायियों और विचार करनेवालों को नियुक्त कर जो महानद के पार रहनेवाले उन सब लोगों में जो तेरे परमेश्‍वर की व्यवस्था जानते हों न्याय किया करें; और जो-जो उन्हें न जानते हों, उनको तुम सिखाया करो।
26. जो कोई तेरे परमेश्‍वर की व्यवस्था और राजा की व्यवस्था न माने, उसको फुर्ती से दण्ड दिया जाए, चाहे प्राणदण्ड, चाहे देश निकाला, चाहे माल जप्त किया जाना, चाहे कैद करना।”
27. धन्य है हमारे पितरों का परमेश्‍वर यहोवा, जिस ने ऐसी मनसा राजा के मन में उत्‍पन्‍न की है, कि यरूशलेम स्थित यहोवा के भवन को सँवारे,
28. और मुझ पर राजा और उसके मंत्रियों और राजा के सब बड़े हाकिमों को दयालु किया। मेरे परमेश्‍वर यहोवा की कृपादृष्टि जो मुझ पर हुई, इसके अनुसार मैंने हियाव बाँधा, और इस्राएल में से मुख्य पुरुषों को इकट्ठा किया, कि वे मेरे संग चलें। [PE]
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एज्रा का यरूशलेम को भेजा जाना 1 इन बातों के बाद अर्थात् फारस के राजा अर्तक्षत्र के दिनों में, एज्रा बाबेल से यरूशलेम को गया। वह सरायाह का पुत्र था। सरायाह अजर्याह का पुत्र था, अजर्याह हिल्किय्याह का, 2 हिल्किय्याह शल्लूम का, शल्लूम सादोक का, सादोक 3 अहीतूब का, अहीतूब अमर्याह का, अमर्याह अजर्याह का, अजर्याह मरायोत का, 4 मरायोत जरहयाह का, जरहयाह उज्जी का, उज्जी बुक्की का, 5 बुक्की अबीशू का, अबीशू पीनहास का, पीनहास एलीआजर का और एलीआजर हारून महायाजक का पुत्र था। 6 यही एज्रा मूसा की व्यवस्था के विषय जिसे इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा ने दी थी, निपुण शास्त्री था। उसके परमेश्‍वर यहोवा की कृपादृष्टि जो उस पर रही, इसके कारण राजा ने उसका मुँह माँगा वर दे दिया। 7 कुछ इस्राएली, और याजक लेवीय, गवैये, और द्वारपाल और मन्दिर के सेवकों में से कुछ लोग अर्तक्षत्र राजा के सातवें वर्ष में यरूशलेम को गए। 8 वह राजा के सातवें वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम को पहुँचा। 9 पहले महीने के पहले दिन को वह बाबेल से चल दिया, और उसके परमेश्‍वर की कृपादृष्टि उस पर रही, इस कारण पाँचवें महीने के पहले दिन वह यरूशलेम को पहुँचा। 10 क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ जान लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था। 11 जो चिट्ठी राजा अर्तक्षत्र ने एज्रा याजक और शास्त्री को दी थी जो यहोवा की आज्ञाओं के वचनों का, और उसकी इस्राएलियों में चलाई हुई विधियों का शास्त्री था, उसकी नकल यह है; 12 “एज्रा याजक के नाम जो स्वर्ग के परमेश्‍वर की व्यवस्था का पूर्ण शास्त्री है, उसको अर्तक्षत्र महाराजाधिराज की ओर से। 13 मैं यह आज्ञा देता हूँ, कि मेरे राज्य में जितने इस्राएली और उनके याजक और लेवीय अपनी इच्छा से यरूशलेम जाना चाहें, वे तेरे साथ जाने पाएँ। 14 तू तो राजा और उसके सातों मंत्रियों की ओर से इसलिए भेजा जाता है, कि अपने परमेश्‍वर की व्यवस्था के विषय जो तेरे पास है, यहूदा और यरूशलेम की दशा जान ले, 15 और जो चाँदी-सोना, राजा और उसके मंत्रियों ने इस्राएल के परमेश्‍वर को जिसका निवास यरूशलेम में है, अपनी इच्छा से दिया है, 16 और जितना चाँदी-सोना समस्त बाबेल प्रान्त में तुझे मिलेगा, और जो कुछ लोग और याजक अपनी इच्छा से अपने परमेश्‍वर के भवन के लिये जो यरूशलेम में है देंगे, उसको ले जाए। 17 इस कारण तू उस रुपये से फुर्ती के साथ बैल, मेढ़े और मेम्‍ने उनके योग्य अन्नबलि और अर्घ की वस्तुओं समेत मोल लेना और उस वेदी पर चढ़ाना, जो तुम्हारे परमेश्‍वर के यरूशलेम वाले भवन में है। 18 और जो चाँदी-सोना बचा रहे, उससे जो कुछ तुझे और तेरे भाइयों को उचित जान पड़े, वही अपने परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार करना। 19 तेरे परमेश्‍वर के भवन की उपासना के लिये जो पात्र तुझे सौंपे जाते हैं, उन्हें यरूशलेम के परमेश्‍वर के सामने दे देना। 20 इनसे अधिक जो कुछ तुझे अपने परमेश्‍वर के भवन के लिये आवश्यक जानकर देना पड़े, वह राज खजाने में से दे देना। 21 “मैं अर्तक्षत्र राजा यह आज्ञा देता हूँ, कि तुम महानद के पार के सब खजांचियों से जो कुछ एज्रा याजक, जो स्वर्ग के परमेश्‍वर की व्यवस्था का शास्त्री है, तुम लोगों से चाहे, वह फुर्ती के साथ किया जाए*। 22 अर्थात् सौ किक्कार तक चाँदी, सौ कोर तक गेहूँ, सौ बत तक दाखमधु, सौ बत तक तेल और नमक जितना चाहिये उतना दिया जाए। 23 जो-जो आज्ञा स्वर्ग के परमेश्‍वर की ओर से मिले, ठीक उसी के अनुसार स्वर्ग के परमेश्‍वर के भवन के लिये किया जाए, राजा और राजकुमारों के राज्य पर परमेश्‍वर का क्रोध क्यों भड़कने पाए। 24 फिर हम तुम को चिता देते हैं, कि परमेश्‍वर के उस भवन के किसी याजक, लेवीय, गवैये, द्वारपाल, नतीन या और किसी सेवक से कर, चुंगी, अथवा राहदारी लेने की आज्ञा नहीं है*। 25 “फिर हे एज्रा! तेरे परमेश्‍वर से मिली हुई बुद्धि के अनुसार जो तुझ में है, न्यायियों और विचार करनेवालों को नियुक्त कर जो महानद के पार रहनेवाले उन सब लोगों में जो तेरे परमेश्‍वर की व्यवस्था जानते हों न्याय किया करें; और जो-जो उन्हें न जानते हों, उनको तुम सिखाया करो। 26 जो कोई तेरे परमेश्‍वर की व्यवस्था और राजा की व्यवस्था न माने, उसको फुर्ती से दण्ड दिया जाए, चाहे प्राणदण्ड, चाहे देश निकाला, चाहे माल जप्त किया जाना, चाहे कैद करना।” 27 धन्य है हमारे पितरों का परमेश्‍वर यहोवा, जिस ने ऐसी मनसा राजा के मन में उत्‍पन्‍न की है, कि यरूशलेम स्थित यहोवा के भवन को सँवारे, 28 और मुझ पर राजा और उसके मंत्रियों और राजा के सब बड़े हाकिमों को दयालु किया। मेरे परमेश्‍वर यहोवा की कृपादृष्टि जो मुझ पर हुई, इसके अनुसार मैंने हियाव बाँधा, और इस्राएल में से मुख्य पुरुषों को इकट्ठा किया, कि वे मेरे संग चलें।
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