पवित्र बाइबिल

इंडियन रिवाइज्ड वर्शन (ISV)
इब्रानियों
1. {#1धीरज की बुलाहट } [PS]इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हमको घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।
2. और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले* यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुःख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दाहिने जा बैठा। (1 पत. 2:23-24, तीतु. 2:13-14) [PE]
3. {परमेश्‍वर द्वारा ताड़ना }
4. [PS]इसलिए उस पर ध्यान करो, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो। [PE][PS]तुम ने पाप से लड़ते हुए उससे ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लहू बहा हो।
5. और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों के समान दिया जाता है, भूल गए हो: [PE][QS]“हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, [QE][QS]और जब वह तुझे घुड़के तो साहस न छोड़। [QE]
6. [QS]क्योंकि प्रभु, जिससे प्रेम करता है, उसको अनुशासित भी करता है; [QE][QS]और जिसे पुत्र बना लेता है, उसको ताड़ना भी देता है ।” [QE]
7. [PS]तुम दुःख को अनुशासन समझकर सह लो; परमेश्‍वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नहीं करता? (नीति. 3:11-12, व्य. 8:5, 2 शमू. 7:14)
8. यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे! [PE]
9. [PS]फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें।
10. वे तो अपनी-अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उसकी पवित्रता के भागी हो जाएँ। [PE]
11. {#1आत्मिक जीवन शक्ति का नवीनीकरण }
12. [PS]और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तो भी जो उसको सहते-सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धार्मिकता का प्रतिफल मिलता है। [PE][PS]इसलिए ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो। (यशा. 35:3)
13. और अपने पाँवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ, कि लँगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए। (नीति. 4:26) [PE]
14. [PS]सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा*। (1 पत. 3:11, भज. 34:14)
15. और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्‍वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएँ। (2 यूह. 1:8, व्य. 29:18)
16. ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव के समान अधर्मी हो, जिसने एक बार के भोजन के बदले अपने पहलौठे होने का पद बेच डाला। (कुलु. 3:5, उत्प. 25:31-34)
17. तुम जानते तो हो, कि बाद में जब उसने आशीष पानी चाही, तो अयोग्य गिना गया, और आँसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला। [PE]
18. [PS]तुम तो उस पहाड़ के पास जो छुआ जा सकता था और आग से प्रज्वलित था, और काली घटा, और अंधेरा, और आँधी के पास।
19. और तुरही की ध्वनि, और बोलनेवाले के ऐसे शब्द के पास नहीं आए, जिसके सुननेवालों ने विनती की, कि अब हम से और बातें न की जाएँ। (निर्ग. 20:18-21, व्य. 5:23,25)
20. क्योंकि वे उस आज्ञा को न सह सके “यदि कोई पशु भी पहाड़ को छूए, तो पत्थराव किया जाए।” (निर्ग. 19:12-13)
21. और वह दर्शन ऐसा डरावना था, कि मूसा ने कहा, “मैं बहुत डरता और काँपता हूँ।” (व्य. 9:19) [PE]
22. [PS]पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीविते परमेश्‍वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास और लाखों स्वर्गदूतों,
23. और उन पहलौठों की साधारण सभा और कलीसिया जिनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं और सब के न्यायी परमेश्‍वर के पास, और सिद्ध किए हुए धर्मियों की आत्माओं। (भज. 50:6, कुलु. 1:12)
24. और नई वाचा के मध्यस्थ यीशु, और छिड़काव के उस लहू के पास आए हो, जो हाबिल के लहू से उत्तम बातें कहता है। [PE]
25. [PS]सावधान रहो, और उस कहनेवाले से मुँह न फेरो, क्योंकि वे लोग जब पृथ्वी पर के चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर न बच सके, तो हम स्वर्ग पर से चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे?
26. उस समय तो उसके शब्द ने पृथ्वी को हिला दिया पर अब उसने यह प्रतिज्ञा की है, “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, वरन् आकाश को भी हिला दूँगा।” (हाग्गै. 2:6, न्याय. 5:4, भज. 68:8) [PE]
27. [PS]और यह वाक्य ‘एक बार फिर’ इस बात को प्रगट करता है, कि जो वस्तुएँ हिलाई जाती हैं, वे सृजी हुई वस्तुएँ होने के कारण टल जाएँगी; ताकि जो वस्तुएँ हिलाई नहीं जातीं, वे अटल बनी रहें। (हाग्गै 2:6)
28. इस कारण हम इस राज्य को पा कर जो हिलने का नहीं*, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिसके द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्‍वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिससे वह प्रसन्‍न होता है।
29. क्योंकि हमारा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है। (व्य. 4:24, व्य. 9:3, यशा. 33:14) [PE]
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धीरज की बुलाहट 1 इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हमको घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। 2 और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले* यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुःख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दाहिने जा बैठा। (1 पत. 2:23-24, तीतु. 2:13-14) 3 {परमेश्‍वर द्वारा ताड़ना } 4 इसलिए उस पर ध्यान करो, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो। तुम ने पाप से लड़ते हुए उससे ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लहू बहा हो। 5 और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों के समान दिया जाता है, भूल गए हो: “हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो साहस न छोड़। 6 क्योंकि प्रभु, जिससे प्रेम करता है, उसको अनुशासित भी करता है; और जिसे पुत्र बना लेता है, उसको ताड़ना भी देता है ।” 7 तुम दुःख को अनुशासन समझकर सह लो; परमेश्‍वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नहीं करता? (नीति. 3:11-12, व्य. 8:5, 2 शमू. 7:14) 8 यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे! 9 फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें। 10 वे तो अपनी-अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उसकी पवित्रता के भागी हो जाएँ। आत्मिक जीवन शक्ति का नवीनीकरण 11 12 और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तो भी जो उसको सहते-सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धार्मिकता का प्रतिफल मिलता है। इसलिए ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो। (यशा. 35:3) 13 और अपने पाँवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ, कि लँगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए। (नीति. 4:26) 14 सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा*। (1 पत. 3:11, भज. 34:14) 15 और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्‍वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएँ। (2 यूह. 1:8, व्य. 29:18) 16 ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव के समान अधर्मी हो, जिसने एक बार के भोजन के बदले अपने पहलौठे होने का पद बेच डाला। (कुलु. 3:5, उत्प. 25:31-34) 17 तुम जानते तो हो, कि बाद में जब उसने आशीष पानी चाही, तो अयोग्य गिना गया, और आँसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला। 18 तुम तो उस पहाड़ के पास जो छुआ जा सकता था और आग से प्रज्वलित था, और काली घटा, और अंधेरा, और आँधी के पास। 19 और तुरही की ध्वनि, और बोलनेवाले के ऐसे शब्द के पास नहीं आए, जिसके सुननेवालों ने विनती की, कि अब हम से और बातें न की जाएँ। (निर्ग. 20:18-21, व्य. 5:23,25) 20 क्योंकि वे उस आज्ञा को न सह सके “यदि कोई पशु भी पहाड़ को छूए, तो पत्थराव किया जाए।” (निर्ग. 19:12-13) 21 और वह दर्शन ऐसा डरावना था, कि मूसा ने कहा, “मैं बहुत डरता और काँपता हूँ।” (व्य. 9:19) 22 पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीविते परमेश्‍वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास और लाखों स्वर्गदूतों, 23 और उन पहलौठों की साधारण सभा और कलीसिया जिनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं और सब के न्यायी परमेश्‍वर के पास, और सिद्ध किए हुए धर्मियों की आत्माओं। (भज. 50:6, कुलु. 1:12) 24 और नई वाचा के मध्यस्थ यीशु, और छिड़काव के उस लहू के पास आए हो, जो हाबिल के लहू से उत्तम बातें कहता है। 25 सावधान रहो, और उस कहनेवाले से मुँह न फेरो, क्योंकि वे लोग जब पृथ्वी पर के चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर न बच सके, तो हम स्वर्ग पर से चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे? 26 उस समय तो उसके शब्द ने पृथ्वी को हिला दिया पर अब उसने यह प्रतिज्ञा की है, “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, वरन् आकाश को भी हिला दूँगा।” (हाग्गै. 2:6, न्याय. 5:4, भज. 68:8) 27 और यह वाक्य ‘एक बार फिर’ इस बात को प्रगट करता है, कि जो वस्तुएँ हिलाई जाती हैं, वे सृजी हुई वस्तुएँ होने के कारण टल जाएँगी; ताकि जो वस्तुएँ हिलाई नहीं जातीं, वे अटल बनी रहें। (हाग्गै 2:6) 28 इस कारण हम इस राज्य को पा कर जो हिलने का नहीं*, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिसके द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्‍वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिससे वह प्रसन्‍न होता है। 29 क्योंकि हमारा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है। (व्य. 4:24, व्य. 9:3, यशा. 33:14)
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