1. {#1अय्यूब का वचन }
2. [PS]तब अय्यूब ने कहा, [PE][QS]“निर्बल जन की तूने क्या ही बड़ी सहायता की, [QE][QS]और जिसकी बाँह में सामर्थ्य नहीं, उसको तूने कैसे सम्भाला है? [QE]
3. [QS]निर्बुद्धि मनुष्य को तूने क्या ही अच्छी सम्मति दी, [QE][QS]और अपनी खरी बुद्धि कैसी भली-भाँति प्रगट की है? [QE]
4. [QS]तूने किसके हित के लिये बातें कही? [QE][QS]और किसके मन की बातें तेरे मुँह से निकलीं?” [QE]
5. [QS]“बहुत दिन के मरे हुए लोग भी [QE][QS]जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं। [QE]
6. [QS]अधोलोक उसके सामने उघड़ा रहता है, [QE][QS]और विनाश का स्थान ढँप नहीं सकता। (भज. 139:8-11 नीति. 15:11, इब्रा. 4:13) [QE]
7. [QS]वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, [QE][QS]और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है। [QE]
8. [QS]वह जल को अपनी काली घटाओं में बाँध रखता*, [QE][QS]और बादल उसके बोझ से नहीं फटता। [QE]
9. [QS]वह अपने सिंहासन के सामने बादल फैलाकर [QE][QS]चाँद को छिपाए रखता है। [QE]
10. [QS]उजियाले और अंधियारे के बीच जहाँ सीमा बंधा है, [QE][QS]वहाँ तक उसने जलनिधि का सीमा ठहरा रखा है। [QE]
11. [QS]उसकी घुड़की से [QE][QS]आकाश के खम्भे थरथराकर चकित होते हैं। [QE]
12. [QS]वह अपने बल से समुद्र को शान्त, [QE][QS]और अपनी बुद्धि से रहब को छेद देता है। [QE]
13. [QS]उसकी आत्मा से आकाशमण्डल स्वच्छ हो जाता है, [QE][QS]वह अपने हाथ से वेग से भागनेवाले नाग को मार देता है। [QE]
14. [QS]देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; [QE][QS]और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, [QE][QS]फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?” [QE]