पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
अय्यूब
1. [QS]“परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझसे कम है, वे मेरी हँसी करते हैं, [QE][QS]वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़-बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था। [QE]
2. [QS]उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? [QE][QS]उनका पौरुष तो जाता रहा। [QE]
3. [QS]वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, [QE][QS]वे अंधेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फाँकते हैं। [QE]
4. [QS]वे झाड़ी के आस-पास का लोनिया साग तोड़ लेते, [QE][QS]और झाऊ की जड़ें खाते हैं। [QE]
5. [QS]वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, [QE][QS]उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी चोर के पीछे। [QE]
6. [QS]डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, [QE][QS]और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है। [QE]
7. [QS]वे झाड़ियों के बीच रेंकते, [QE][QS]और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं। [QE]
8. [QS]वे मूर्खों और नीच लोगों के वंश हैं [QE][QS]जो मार-मार के इस देश से निकाले गए थे। [QE]
9. [QS]“ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, [QE][QS]और मुझ पर ताना मारते हैं। [QE]
10. [QS]वे मुझसे घिन खाकर दूर रहते*, [QE][QS]व मेरे मुँह पर थूकने से भी नहीं डरते। [QE]
11. [QS]परमेश्‍वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे दुःख दिया है, [QE][QS]इसलिए वे मेरे सामने मुँह में लगाम नहीं रखते। [QE]
12. [QS]मेरी दाहिनी ओर बाज़ारू लोग उठ खड़े होते हैं, [QE][QS]वे मेरे पाँव सरका देते हैं, [QE][QS]और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बाँधते हैं। [QE]
13. [QS]जिनके कोई सहायक नहीं, [QE][QS]वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, [QE][QS]और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं। [QE]
14. [QS]मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, [QE][QS]और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं। [QE]
15. [QS]मुझ में घबराहट छा गई है, [QE][QS]और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, [QE][QS]और मेरा कुशल बादल के समान जाता रहा। [QE]
16. [QS]“और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; [QE][QS]दुःख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है। [QE]
17. [QS]रात को मेरी हड्डियाँ मेरे अन्दर छिद जाती हैं [QE][QS]और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती [QE]
18. [QS]मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्र का रूप बदल गया है; [QE][QS]वह मेरे कुत्ते के गले के समान मुझसे लिपटी हुई है। [QE]
19. [QS]उसने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, [QE][QS]और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ। [QE]
20. [QS]मैं तेरी दुहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; [QE][QS]मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है। [QE]
21. [QS]तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; [QE][QS]और अपने बलवन्त हाथ से मुझे सताता हे। [QE]
22. [QS]तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, [QE][QS]और आँधी के पानी में मुझे गला देता है। [QE]
23. [QS]हाँ, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा*, [QE][QS]और उस घर में पहुँचाएगा, [QE][QS]जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है। [QE]
24. [QS]“तो भी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? [QE][QS]और क्या कोई विपत्ति के समय दुहाई न देगा? [QE]
25. [QS]क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? [QE][QS]और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुःखित न होता था? [QE]
26. [QS]जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; [QE][QS]और जब मैं उजियाले की आशा लगाए था, तब अंधकार छा गया। [QE]
27. [QS]मेरी अन्तड़ियाँ निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; [QE][QS]मेरे दुःख के दिन आ गए हैं। [QE]
28. [QS]मैं शोक का पहरावा पहने हुए मानो बिना सूर्य की गर्मी के काला हो गया हूँ। [QE][QS]और मैं सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दुहाई देता हूँ। [QE]
29. [QS]मैं गीदड़ों का भाई [QE][QS]और शुतुर्मुर्गों का संगी हो गया हूँ। [QE]
30. [QS]मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, [QE][QS]और ताप के मारे मेरी हड्डियाँ जल गई हैं। [QE]
31. [QS]इस कारण मेरी वीणा से विलाप [QE][QS]और मेरी बाँसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है। [QE]
Total 42 अध्याय, Selected अध्याय 30 / 42
1 “परन्तु अब जिनकी अवस्था मुझसे कम है, वे मेरी हँसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़-बकरियों के कुत्तों के काम के योग्य भी न जानता था। 2 उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता था? उनका पौरुष तो जाता रहा। 3 वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पड़े हुए हैं, वे अंधेरे और सुनसान स्थानों में सुखी धूल फाँकते हैं। 4 वे झाड़ी के आस-पास का लोनिया साग तोड़ लेते, और झाऊ की जड़ें खाते हैं। 5 वे मनुष्यों के बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी चोर के पीछे। 6 डरावने नालों में, भूमि के बिलों में, और चट्टानों में, उन्हें रहना पड़ता है। 7 वे झाड़ियों के बीच रेंकते, और बिच्छू पौधों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं। 8 वे मूर्खों और नीच लोगों के वंश हैं जो मार-मार के इस देश से निकाले गए थे। 9 “ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं। 10 वे मुझसे घिन खाकर दूर रहते*, व मेरे मुँह पर थूकने से भी नहीं डरते। 11 परमेश्‍वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे दुःख दिया है, इसलिए वे मेरे सामने मुँह में लगाम नहीं रखते। 12 मेरी दाहिनी ओर बाज़ारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पाँव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिये अपने उपाय बाँधते हैं। 13 जिनके कोई सहायक नहीं, वे भी मेरे रास्तों को बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं। 14 मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं। 15 मुझ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल के समान जाता रहा। 16 “और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दुःख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है। 17 रात को मेरी हड्डियाँ मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसों में चैन नहीं पड़ती 18 मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्र का रूप बदल गया है; वह मेरे कुत्ते के गले के समान मुझसे लिपटी हुई है। 19 उसने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ। 20 मैं तेरी दुहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है। 21 तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपने बलवन्त हाथ से मुझे सताता हे। 22 तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आँधी के पानी में मुझे गला देता है। 23 हाँ, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा*, और उस घर में पहुँचाएगा, जो सब जीवित प्राणियों के लिये ठहराया गया है। 24 “तो भी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दुहाई न देगा? 25 क्या मैं उसके लिये रोता नहीं था, जिसके दुर्दिन आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुःखित न होता था? 26 जब मैं कुशल का मार्ग जोहता था, तब विपत्ति आ पड़ी; और जब मैं उजियाले की आशा लगाए था, तब अंधकार छा गया। 27 मेरी अन्तड़ियाँ निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दुःख के दिन आ गए हैं। 28 मैं शोक का पहरावा पहने हुए मानो बिना सूर्य की गर्मी के काला हो गया हूँ। और मैं सभा में खड़ा होकर सहायता के लिये दुहाई देता हूँ। 29 मैं गीदड़ों का भाई और शुतुर्मुर्गों का संगी हो गया हूँ। 30 मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और ताप के मारे मेरी हड्डियाँ जल गई हैं। 31 इस कारण मेरी वीणा से विलाप और मेरी बाँसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है।
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