1. {एलीहू की वाणी} [PS] फिर एलीहू इस प्रकार और भी कहता गया, [QBR]
2. “क्या तू इसे अपना हक़ समझता है? [QBR] क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म परमेश्वर के धर्म से अधिक है? [QBR]
3. जो तू कहता है, 'मुझे इससे क्या लाभ? [QBR] और मुझे पापी होने में और न होने में कौन सा अधिक अन्तर है?' [QBR]
4. मैं तुझे और तेरे साथियों को भी एक संग उत्तर देता हूँ। [QBR]
5. आकाश की ओर दृष्टि करके देख; [QBR] और आकाशमण्डल को ताक, जो तुझ से ऊँचा है। [QBR]
6. यदि तूने पाप किया है तो परमेश्वर का क्या बिगड़ता है*? [QBR] यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएँ तो भी तू उसका क्या कर लेगा? [QBR]
7. यदि तू धर्मी है तो उसको क्या दे देता है; [QBR] या उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है? [QBR]
8. तेरी दुष्टता का फल तुझ जैसे पुरुष के लिये है, [QBR] और तेरे धर्म का फल भी मनुष्य मात्र के लिये है। [QBR]
9. “बहुत अंधेर होने के कारण वे चिल्लाते हैं; [QBR] और बलवान के बाहुबल के कारण वे दुहाई देते हैं। [QBR]
10. तो भी कोई यह नहीं कहता, 'मेरा सृजनेवाला परमेश्वर कहाँ है, [QBR] जो रात में भी गीत गवाता है, [QBR]
11. और हमें पृथ्वी के पशुओं से अधिक शिक्षा देता, [QBR] और आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धि देता है?' [QBR]
12. वे दुहाई देते हैं परन्तु कोई उत्तर नहीं देता, [QBR] यह बुरे लोगों के घमण्ड के कारण होता है। [QBR]
13. निश्चय परमेश्वर व्यर्थ बातें कभी नहीं सुनता*, [QBR] और न सर्वशक्तिमान उन पर चित्त लगाता है। [QBR]
14. तो तू क्यों कहता है, कि वह मुझे दर्शन नहीं देता, [QBR] कि यह मुकद्दमा उसके सामने है, और तू उसकी बाट जोहता हुआ ठहरा है? [QBR]
15. परन्तु अभी तो उसने क्रोध करके दण्ड नहीं दिया है, [QBR] और अभिमान पर चित्त बहुत नहीं लगाया*; [QBR]
16. इस कारण अय्यूब व्यर्थ मुँह खोलकर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है” [PE]