पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
अय्यूब
1. {एलीपज का वचन} [PS] तब तेमानी एलीपज ने कहा, [QBR]
2. “यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, [QBR] तो क्या तुझे बुरा लगेगा? [QBR] परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है? [QBR]
3. सुन, तूने बहुतों को शिक्षा दी है, [QBR] और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है*। [QBR]
4. गिरते हुओं को तूने अपनी बातों से सम्भाल लिया, [QBR] और लड़खड़ाते हुए लोगों को तूने बलवन्त किया*। [QBR]
5. परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, [QBR] और तू निराश हुआ जाता है; [QBR] उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा। [QBR]
6. क्या परमेश्‍वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? [QBR] और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं? [QBR]
7. “क्या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी [QBR] कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए? [QBR]
8. मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और [QBR] दुःख बोते हैं, वही उसको काटते हैं। [QBR]
9. वे तो परमेश्‍वर की श्‍वास से नाश होते, [QBR] और उसके क्रोध के झोके से भस्म होते हैं। (2 थिस्सलु. 2:8, यशा. 30:33) [QBR]
10. सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो जाता है। [QBR] और जवान सिंहों के दाँत तोड़े जाते हैं। [QBR]
11. शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, [QBR] और सिंहनी के बच्चे तितर बितर हो जाते हैं। [QBR]
12. “एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, [QBR] और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी। [QBR]
13. रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब [QBR] मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं, [QBR]
14. मुझे ऐसी थरथराहट और कँपकँपी लगी कि [QBR] मेरी सब हड्डियाँ तक हिल उठी। [QBR]
15. तब एक आत्मा मेरे सामने से होकर चली; [QBR] और मेरी देह के रोएँ खड़े हो गए। [QBR]
16. वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहचान न सका। [QBR] परन्तु मेरी आँखों के सामने कोई रूप था; [QBR] पहले सन्‍नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा, [QBR]
17. 'क्या नाशवान मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी होगा? [QBR] क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है? [QBR]
18. देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, [QBR] और अपने स्वर्गदूतों को दोषी ठहराता है; [QBR]
19. फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं, [QBR] और जिनकी नींव मिट्टी में डाली गई है, [QBR] और जो पतंगे के समान पिस जाते हैं, [QBR] उनकी क्या गणना। (2 कुरि. 5:1) [QBR]
20. वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, [QBR] वे सदा के लिये मिट जाते हैं, [QBR] और कोई उनका विचार भी नहीं करता। [QBR]
21. क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही [QBR] अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुद्धि के ही मर जाते हैं?' [PE]

Notes

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अय्यूब 4:6
एलीपज का वचन 1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 2 “यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है? 3 सुन, तूने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है*। 4 गिरते हुओं को तूने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तूने बलवन्त किया*। 5 परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, और तू निराश हुआ जाता है; उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा। 6 क्या परमेश्‍वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं? 7 “क्या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए? 8 मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दुःख बोते हैं, वही उसको काटते हैं। 9 वे तो परमेश्‍वर की श्‍वास से नाश होते, और उसके क्रोध के झोके से भस्म होते हैं। (2 थिस्सलु. 2:8, यशा. 30:33) 10 सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो जाता है। और जवान सिंहों के दाँत तोड़े जाते हैं। 11 शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, और सिंहनी के बच्चे तितर बितर हो जाते हैं। 12 “एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी। 13 रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं, 14 मुझे ऐसी थरथराहट और कँपकँपी लगी कि मेरी सब हड्डियाँ तक हिल उठी। 15 तब एक आत्मा मेरे सामने से होकर चली; और मेरी देह के रोएँ खड़े हो गए। 16 वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहचान न सका। परन्तु मेरी आँखों के सामने कोई रूप था; पहले सन्‍नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा, 17 'क्या नाशवान मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी होगा? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है? 18 देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को दोषी ठहराता है; 19 फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं, और जिनकी नींव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे के समान पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना। (2 कुरि. 5:1) 20 वे भोर से सांझ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता। 21 क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुद्धि के ही मर जाते हैं?'
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