1. “फिर क्या तू लिव्यातान को बंसी के द्वारा खींच सकता है, [QBR] या डोरी से उसका जबड़ा दबा सकता है? [QBR]
2. क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता [QBR] या उसका जबड़ा कील से बेध सकता है? [QBR]
3. क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा, [QBR] या तुझ से मीठी बातें बोलेगा? [QBR]
4. क्या वह तुझ से वाचा बाँधेगा [QBR] कि वह सदा तेरा दास रहे? [QBR]
5. क्या तू उससे ऐसे खेलेगा जैसे चिड़िया से, [QBR] या अपनी लड़कियों का जी बहलाने को उसे बाँध रखेगा? [QBR]
6. क्या मछुए के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे? [QBR] क्या वह उसे व्यापारियों में बाँट देंगे? [QBR]
7. क्या तू उसका चमड़ा भाले से, [QBR] या उसका सिर मछुए के त्रिशूलों से बेध सकता है? [QBR]
8. तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा, [QBR] और भविष्य में कभी ऐसा न करेगा। [QBR]
9. देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है; [QBR] उसके देखने ही से मन कच्चा पड़ जाता है। [QBR]
10. कोई ऐसा साहसी नहीं, जो लिव्यातान को भड़काए; [QBR] फिर ऐसा कौन है जो मेरे सामने ठहर सके? [QBR]
11. किस ने मुझे पहले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े! [QBR] देख, जो कुछ सारी धरती पर है, सब मेरा है। (रोमि. 11:35-36) [QBR]
12. “मैं लिव्यातान के अंगों के विषय, [QBR] और उसके बड़े बल और उसकी बनावट की शोभा के विषय चुप न रहूँगा। (उत्प. 1:25) [QBR]
13. उसके ऊपर के पहरावे को कौन उतार सकता है? [QBR] उसके दाँतों की दोनों पाँतियों के अर्थात् जबड़ों के बीच कौन आएगा? [QBR]
14. उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है*? [QBR] उसके दाँत चारों ओर से डरावने हैं। [QBR]
15. उसके छिलकों की रेखाएं घमण्ड का कारण हैं; [QBR] वे मानो कड़ी छाप से बन्द किए हुए हैं। [QBR]
16. वे एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं, [QBR] कि उनमें कुछ वायु भी नहीं पैठ सकती। [QBR]
17. वे आपस में मिले हुए [QBR] और ऐसे सटे हुए हैं, कि अलग-अलग नहीं हो सकते। [QBR]
18. फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है, [QBR] और उसकी आँखें भोर की पलकों के समान हैं। [QBR]
19. उसके मुँह से जलते हुए पलीते निकलते हैं, [QBR] और आग की चिंगारियाँ छूटती हैं। [QBR]
20. उसके नथनों से ऐसा धुआँ निकलता है, [QBR] जैसा खौलती हुई हाँड़ी और जलते हुए नरकटों से। [QBR]
21. उसकी साँस से कोयले सुलगते, [QBR] और उसके मुँह से आग की लौ निकलती है। [QBR]
22. उसकी गर्दन में सामर्थ्य बनी रहती है, [QBR] और उसके सामने डर नाचता रहता है। [QBR]
23. उसके माँस पर माँस चढ़ा हुआ है, [QBR] और ऐसा आपस में सटा हुआ है जो हिल नहीं सकता। [QBR]
24. उसका हृदय पत्थर सा दृढ़ है, [QBR] वरन् चक्की के निचले पाट के समान दृढ़ है। [QBR]
25. जब वह उठने लगता है, तब सामर्थी भी डर जाते हैं, [QBR] और डर के मारे उनकी सुध-बुध लोप हो जाती है। [QBR]
26. यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उससे कुछ न बन पड़ेगा; [QBR] और न भाले और न बर्छी और न तीर से। (अय्यू. 39:21-24) [QBR]
27. वह लोहे को पुआल सा, [QBR] और पीतल को सड़ी लकड़ी सा जानता है। [QBR]
28. वह तीर से भगाया नहीं जाता, [QBR] गोफन के पत्थर उसके लिये भूसे से ठहरते हैं*। [QBR]
29. लाठियाँ भी भूसे के समान गिनी जाती हैं; [QBR] वह बर्छी के चलने पर हँसता है। [QBR]
30. उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं, [QBR] कीचड़ पर मानो वह हेंगा फेरता है। [QBR]
31. वह गहरे जल को हण्डे की समान मथता है [QBR] उसके कारण नील नदी मरहम की हाण्डी के समान होती है। [QBR]
32. वह अपने पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है। [QBR] गहरा जल मानो श्वेत दिखाई देने लगता है। (अय्यू. 38:30) [QBR]
33. धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है, [QBR] जो ऐसा निर्भय बनाया गया है। [QBR]
34. जो कुछ ऊँचा है, उसे वह ताकता ही रहता है, [QBR] वह सब घमण्डियों के ऊपर राजा है।” [PE]