1. जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! [QBR] वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? [QBR] वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, [QBR] अब क्यों कर देनेवाली हो गई है। [QBR]
2. रात को वह फूट-फूट कर रोती है, उसके आँसू गालों पर ढलकते हैं; [QBR] उसके सब यारों में से अब कोई उसे शान्ति नहीं देता; [QBR] उसके सब मित्रों ने उससे विश्वासघात किया, [QBR] और उसके शत्रु बन गए हैं। [QBR]
3. यहूदा दुःख और कठिन दासत्व के कारण परदेश चली गई; [QBR] परन्तु अन्यजातियों में रहती हुई वह चैन नहीं पाती; [QBR] उसके सब खदेड़नेवालों ने उसकी सकेती में उसे पकड़ लिया है। [QBR]
4. सिय्योन के मार्ग विलाप कर रहे हैं, [QBR] क्योंकि नियत पर्वों में कोई नहीं आता है; [QBR] उसके सब फाटक सुनसान पड़े हैं, उसके याजक कराहते हैं; [QBR] उसकी कुमारियाँ शोकित हैं, [QBR] और वह आप कठिन दुःख भोग रही है। [QBR]
5. उसके द्रोही प्रधान हो गए, उसके शत्रु उन्नति कर रहे हैं, [QBR] क्योंकि यहोवा ने उसके बहुत से अपराधों के कारण उसे दुःख दिया है; [QBR] उसके बाल-बच्चों को शत्रु हाँक-हाँक कर बँधुआई में ले गए। [QBR]
6. सिय्योन की पुत्री का सारा प्रताप जाता रहा है। [QBR] उसके हाकिम ऐसे हिरनों के समान हो गए हैं जिन्हें कोई चरागाह नहीं मिलती; [QBR] वे खदेड़नेवालों के सामने से बलहीन होकर भागते हैं। [QBR]
7. यरूशलेम ने, इन दुःख भरे और संकट के दिनों में, [QBR] जब उसके लोग द्रोहियों के हाथ में पड़े और उसका कोई सहायक न रहा, [QBR] अपनी सब मनभावनी वस्तुओं को जो प्राचीनकाल से उसकी थीं, स्मरण किया है। [QBR] उसके द्रोहियों ने उसको उजड़ा देखकर उपहास में उड़ाया है। [QBR]
8. यरूशलेम ने बड़ा पाप किया*, इसलिए वह अशुद्ध स्त्री सी हो गई है; [QBR] जितने उसका आदर करते थे वे उसका निरादर करते हैं, [QBR] क्योंकि उन्होंने उसकी नंगाई देखी है; [QBR] हाँ, वह कराहती हुई मुँह फेर लेती है। [QBR]
9. उसकी अशुद्धता उसके वस्त्र पर है; [QBR] उसने अपने अन्त का स्मरण न रखा; [QBR] इसलिए वह भयंकर रीति से गिराई गई, [QBR] और कोई उसे शान्ति नहीं देता है। [QBR] हे यहोवा, मेरे दुःख पर दृष्टि कर, [QBR] क्योंकि शत्रु मेरे विरुद्ध सफल हुआ है! [QBR]
10. द्रोहियों ने उसकी सब मनभावनी वस्तुओं पर हाथ बढ़ाया है; [QBR] हाँ, अन्यजातियों को, जिनके विषय में तूने आज्ञा दी थी कि वे तेरी सभा में भागी न होने पाएँगी, [QBR] उनको उसने तेरे पवित्रस्थान में घुसा हुआ देखा है। [QBR]
11. उसके सब निवासी कराहते हुए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे हैं; [QBR] उन्होंने अपना प्राण बचाने के लिये अपनी मनभावनी वस्तुएँ बेचकर भोजन मोल लिया है। [QBR] हे यहोवा, दृष्टि कर, और ध्यान से देख, [QBR] क्योंकि मैं तुच्छ हो गई हूँ। [QBR]
12. हे सब बटोहियों, क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं? [QBR] दृष्टि करके देखो, क्या मेरे दुःख से बढ़कर कोई और पीड़ा है जो यहोवा ने अपने क्रोध के दिन मुझ पर डाल दी है? [QBR]
13. उसने ऊपर से मेरी हड्डियों में आग लगाई है, [QBR] और वे उससे भस्म हो गईं; [QBR] उसने मेरे पैरों के लिये जाल लगाया, और मुझ को उलटा फेर दिया है; [QBR] उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी और रोग से लगातार निर्बल रहती हूँ*। [QBR]
14. उसने जूए की रस्सियों की समान मेरे अपराधों को अपने हाथ से कसा है; [QBR] उसने उन्हें बटकर मेरी गर्दन पर चढ़ाया, और मेरा बल घटा दिया है; [QBR] जिनका मैं सामना भी नहीं कर सकती, उन्हीं के वश में यहोवा ने मुझे कर दिया है। [QBR]
15. यहोवा ने मेरे सब पराक्रमी पुरुषों को तुच्छ जाना; [QBR] उसने नियत पर्व का प्रचार करके लोगों को मेरे विरुद्ध बुलाया कि मेरे जवानों को पीस डाले; [QBR] यहूदा की कुमारी कन्या को यहोवा ने मानो कुण्ड में पेरा है। (प्रकाशितवाक्य 14:20, प्रका. 19:15) [QBR]
16. इन बातों के कारण मैं रोती हूँ; [QBR] मेरी आँखों से आँसू की धारा बहती रहती है; [QBR] क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता था, वह मुझसे दूर हो गया; [QBR] मेरे बच्चे अकेले हो गए, क्योंकि शत्रु प्रबल हुआ है। [QBR]
17. सिय्योन हाथ फैलाए हुए है*, उसे कोई शान्ति नहीं देता; [QBR] यहोवा ने याकूब के विषय में यह आज्ञा दी है कि उसके चारों ओर के निवासी उसके द्रोही हो जाएँ; [QBR] यरूशलेम उनके बीच अशुद्ध स्त्री के समान हो गई है। [QBR]
18. यहोवा सच्चाई पर है, क्योंकि मैंने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है; [QBR] हे सब लोगों, सुनो, और मेरी पीड़ा को देखो! मेरे कुमार और कुमारियाँ बँधुआई में चली गई हैं। [QBR]
19. मैंने अपने मित्रों को पुकारा परन्तु उन्होंने भी मुझे धोखा दिया; [QBR] जब मेरे याजक और पुरनिये इसलिए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे थे कि खाने से उनका जी हरा हो जाए, [QBR] तब नगर ही में उनके प्राण छूट गए। [QBR]
20. हे यहोवा, दृष्टि कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ, [QBR] मेरी अन्तड़ियाँ ऐंठी जाती हैं, मेरा हृदय उलट गया है, क्योंकि मैंने बहुत बलवा किया है। [QBR] बाहर तो मैं तलवार से निर्वंश होती हूँ; [QBR] और घर में मृत्यु विराज रही है। [QBR]
21. उन्होंने सुना है कि मैं कराहती हूँ, [QBR] परन्तु कोई मुझे शान्ति नहीं देता। [QBR] मेरे सब शत्रुओं ने मेरी विपत्ति का समाचार सुना है; [QBR] वे इससे हर्षित हो गए कि तू ही ने यह किया है। [QBR] परन्तु जिस दिन की चर्चा तूने प्रचार करके सुनाई है उसको तू दिखा, [QBR] तब वे भी मेरे समान हो जाएँगे। [QBR]
22. उनकी सारी दुष्टता की ओर दृष्टि कर; [QBR] और जैसा मेरे सारे अपराधों के कारण तूने मुझे दण्ड दिया, वैसा ही उनको भी दण्ड दे; [QBR] क्योंकि मैं बहुत ही कराहती हूँ, [QBR] और मेरा हृदय रोग से निर्बल हो गया है। [PE]