पवित्र बाइबिल

भगवान का अनुग्रह उपहार
लूका
1. {#1पिलातुस द्वारा यीशु से प्रश्न } [PS]तब सारी सभा उठकर यीशु को पिलातुस के पास ले गई।
2. और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, “हमने इसे लोगों को बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपने आप को मसीह, राजा कहते हुए सुना है।”
3. पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसे उत्तर दिया, “तू आप ही कह रहा है।”
4. तब पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, “मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता।”
5. पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को भड़काता है।”
6. यह सुनकर पिलातुस ने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलीली है?”
7. और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत* का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था। [PE]
8. {#1यीशु का हेरोदेस के पास भेजा जाना } [PS]हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनों से उसको देखना चाहता था : इसलिए कि उसके विषय में सुना था, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता था।
9. वह उससे बहुत सारी बातें पूछता रहा, पर उसने उसको कुछ भी उत्तर न दिया।
10. और प्रधान याजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे।
11. तब हेरोदेस ने अपने सिपाहियों के साथ उसका अपमान करके उपहास किया, और भड़कीला वस्त्र पहनाकर उसे पिलातुस के पास लौटा दिया।
12. उसी दिन पिलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहले वे एक दूसरे के बैरी थे। [PE]
13. {#1पिलातुस द्वारा यीशु को मृत्यु दण्ड } [PS]पिलातुस ने प्रधान याजकों और सरदारों और लोगों को बुलाकर उनसे कहा,
14. “तुम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैंने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की, पर जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उसमें कुछ भी दोष नहीं पाया है;
15. न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए।
16. इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”
17. पिलातुस पर्व के समय उनके लिए एक बन्दी को छोड़ने पर विवश था।
18. तब सब मिलकर चिल्ला उठे, “इसका काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।”
19. वह किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ था, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था।
20. पर पिलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया।
21. परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!”
22. उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों उसने कौन सी बुराई की है? मैंने उसमें मृत्यु दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”
23. परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उनका चिल्लाना प्रबल हुआ।
24. अतः पिलातुस ने आज्ञा दी, कि उनकी विनती के अनुसार किया जाए।
25. और उसने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था, और जिसे वे माँगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उनकी इच्छा के अनुसार सौंप दिया। [PE]
26. {#1यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना } [PS]जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले।
27. और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं।
28. यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ।
29. क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ [PE]
30. [QS]उस समय [QE][QS]‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, [QE][QS]और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’ [QE]
31. [PS]क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?”
32. वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले।
33. जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया।
34. तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर*, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (1 पत. 3:9, प्रका. 7:60, यशा. 53:12, भज. 22:18) [PE]
35. [PS]लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्‍वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (भज. 22:7)
36. सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (भज. 69:21)
37. “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!”
38. और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।” [PE]
39. {#1क्रूस पर मन फिराने वाला कुकर्मी } [PS]जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!”
40. इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है,
41. और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।”
42. तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।”
43. उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक* में होगा।” [PE]
44. {#1यीशु का प्राण त्यागना } [PS]और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा,
45. और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (आमो. 8:9, इब्रा. 10:19)
46. और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।
47. सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्‍वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।”
48. और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई।
49. और उसके सब जान-पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (भज. 38:11, भज. 88:8) [PE]
50. {#1अरिमतियाह का यूसुफ के द्वारा यीशु को दफनाना } [PS]और वहाँ, यूसुफ नामक महासभा का एक सदस्य था, जो सज्जन और धर्मी पुरुष था।
51. और उनके विचार और उनके इस काम से प्रसन्‍न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतियाह का रहनेवाला और परमेश्‍वर के राज्य की प्रतीक्षा करनेवाला था।
52. उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा,
53. और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था।
54. वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था।
55. और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे-पीछे, जाकर उस कब्र को देखा और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया हैं।
56. और लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। (निर्ग. 20:10, व्य. 5:14) [PE]
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पिलातुस द्वारा यीशु से प्रश्न 1 तब सारी सभा उठकर यीशु को पिलातुस के पास ले गई। 2 और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, “हमने इसे लोगों को बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपने आप को मसीह, राजा कहते हुए सुना है।” 3 पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसे उत्तर दिया, “तू आप ही कह रहा है।” 4 तब पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, “मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता।” 5 पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को भड़काता है।” 6 यह सुनकर पिलातुस ने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलीली है?” 7 और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत* का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था। यीशु का हेरोदेस के पास भेजा जाना 8 हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनों से उसको देखना चाहता था : इसलिए कि उसके विषय में सुना था, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता था। 9 वह उससे बहुत सारी बातें पूछता रहा, पर उसने उसको कुछ भी उत्तर न दिया। 10 और प्रधान याजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे। 11 तब हेरोदेस ने अपने सिपाहियों के साथ उसका अपमान करके उपहास किया, और भड़कीला वस्त्र पहनाकर उसे पिलातुस के पास लौटा दिया। 12 उसी दिन पिलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहले वे एक दूसरे के बैरी थे। पिलातुस द्वारा यीशु को मृत्यु दण्ड 13 पिलातुस ने प्रधान याजकों और सरदारों और लोगों को बुलाकर उनसे कहा, 14 “तुम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैंने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की, पर जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उसमें कुछ भी दोष नहीं पाया है; 15 न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। 16 इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 17 पिलातुस पर्व के समय उनके लिए एक बन्दी को छोड़ने पर विवश था। 18 तब सब मिलकर चिल्ला उठे, “इसका काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” 19 वह किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ था, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था। 20 पर पिलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया। 21 परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” 22 उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों उसने कौन सी बुराई की है? मैंने उसमें मृत्यु दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” 23 परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उनका चिल्लाना प्रबल हुआ। 24 अतः पिलातुस ने आज्ञा दी, कि उनकी विनती के अनुसार किया जाए। 25 और उसने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था, और जिसे वे माँगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उनकी इच्छा के अनुसार सौंप दिया। यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना 26 जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले। 27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं। 28 यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। 29 क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ 30 उस समय ‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’ 31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?” 32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले। 33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। 34 तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर*, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (1 पत. 3:9, प्रका. 7:60, यशा. 53:12, भज. 22:18) 35 लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्‍वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (भज. 22:7) 36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (भज. 69:21) 37 “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” 38 और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।” क्रूस पर मन फिराने वाला कुकर्मी 39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” 40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, 41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” 42 तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” 43 उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक* में होगा।” यीशु का प्राण त्यागना 44 और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा, 45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (आमो. 8:9, इब्रा. 10:19) 46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। 47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्‍वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।” 48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। 49 और उसके सब जान-पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (भज. 38:11, भज. 88:8) अरिमतियाह का यूसुफ के द्वारा यीशु को दफनाना 50 और वहाँ, यूसुफ नामक महासभा का एक सदस्य था, जो सज्जन और धर्मी पुरुष था। 51 और उनके विचार और उनके इस काम से प्रसन्‍न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतियाह का रहनेवाला और परमेश्‍वर के राज्य की प्रतीक्षा करनेवाला था। 52 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा, 53 और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। 54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। 55 और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे-पीछे, जाकर उस कब्र को देखा और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया हैं। 56 और लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। (निर्ग. 20:10, व्य. 5:14)
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