1. मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, [QBR] परन्तु मुँह से कहना यहोवा की ओर से होता है। [QBR]
2. मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में पवित्र ठहरता है*, [QBR] परन्तु यहोवा मन को तौलता है। [QBR]
3. अपने कामों को यहोवा पर डाल दे*, [QBR] इससे तेरी कल्पनाएँ सिद्ध होंगी। [QBR]
4. यहोवा ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिये बनाई हैं, [QBR] वरन् दुष्ट को भी विपत्ति भोगने के लिये बनाया है। (कुलुस्सियों. 1:16) [QBR]
5. सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है; [QBR] मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे। [QBR]
6. अधर्म का प्रायश्चित कृपा, और सच्चाई से होता है, [QBR] और यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं। [QBR]
7. जब किसी का चालचलन यहोवा को भावता है, [QBR] तब वह उसके शत्रुओं का भी उससे मेल कराता है। [QBR]
8. अन्याय के बड़े लाभ से, [QBR] न्याय से थोड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है। [QBR]
9. मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है, [QBR] परन्तु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है। [QBR]
10. राजा के मुँह से दैवीवाणी निकलती है, [QBR] न्याय करने में उससे चूक नहीं होती। [QBR]
11. सच्चा तराजू और पलड़े यहोवा की ओर से होते हैं, [QBR] थैली में जितने बटखरे हैं, सब उसी के बनवाए हुए हैं। [QBR]
12. दुष्टता करना राजाओं के लिये घृणित काम है, [QBR] क्योंकि उनकी गद्दी धर्म ही से स्थिर रहती है। [QBR]
13. धर्म की बात बोलनेवालों से राजा प्रसन्न होता है, [QBR] और जो सीधी बातें बोलता है, उससे वह प्रेम रखता है। [QBR]
14. राजा का क्रोध मृत्यु के दूत के समान है, [QBR] परन्तु बुद्धिमान मनुष्य उसको ठण्डा करता है। [QBR]
15. राजा के मुख की चमक में जीवन रहता है, [QBR] और उसकी प्रसन्नता बरसात के अन्त की घटा के समान होती है। [QBR]
16. बुद्धि की प्राप्ति शुद्ध सोने से क्या ही उत्तम है! [QBR] और समझ की प्राप्ति चाँदी से बढ़कर योग्य है। [QBR]
17. बुराई से हटना धर्मियों के लिये उत्तम मार्ग है, [QBR] जो अपने चालचलन की चौकसी करता, वह अपने प्राण की भी रक्षा करता है। [QBR]
18. विनाश से पहले गर्व, [QBR] और ठोकर खाने से पहले घमण्ड आता है। [QBR]
19. घमण्डियों के संग लूट बाँट लने से, [QBR] दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है। [QBR]
20. जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, [QBR] और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है*। [QBR]
21. जिसके हृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है, [QBR] और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। [QBR]
22. जिसमें बुद्धि है, उसके लिये वह जीवन का स्रोत है, [QBR] परन्तु मूर्ख का दण्ड स्वयं उसकी मूर्खता है। [QBR]
23. बुद्धिमान का मन उसके मुँह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, [QBR] और उसके वचन में विद्या रहती है। [QBR]
24. मनभावने वचन मधुभरे छत्ते के समान प्राणों को मीठे लगते, [QBR] और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं। [QBR]
25. ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा जान पड़ता है, [QBR] परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। [QBR]
26. परिश्रमी की लालसा उसके लिये परिश्रम करती है, [QBR] उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है। [QBR]
27. अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है*, [QBR] और उसके वचनों से आग लग जाती है। [QBR]
28. टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है, [QBR] और कानाफूसी करनेवाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है। [QBR]
29. उपद्रवी मनुष्य अपने पड़ोसी को फुसलाकर कुमार्ग पर चलाता है। [QBR]
30. आँख मूँदनेवाला छल की कल्पनाएँ करता है, [QBR] और होंठ दबानेवाला बुराई करता है। [QBR]
31. पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; [QBR] वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं। [QBR]
32. विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, [QBR] और अपने मन को वश में रखना, नगर को जीत लेने से उत्तम है। [QBR]
33. चिट्ठी डाली जाती तो है, [QBR] परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है। (प्रेरि. 1:26) [PE]